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20 साल से प्याले के लिए हिन्दू घर पर दस्तक देती है मकबूल बाबा और दादा दरबार की ताजिया

गंगा जमुनी तहज़ीब की मिसाल बन गया है दो दशक पुराना ये दस्तूर

जबलपुर, हाल ही में पैगम्बर ए इस्लाम हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत के स्मृति पर्व मुहर्रम का समापन हुआ। संस्कारधानी जबलपुर में मुहर्रम का पर्व हजरत इमाम आली मुकाम के उर्स के रूप मे अक़ीदत के साथ मनाया जाता हैं। मुस्लिम धर्मावलंबियो के साथ हिंदू धर्मावलंबी भी श्रद्धा और अक़ीदत के साथ मुहर्रम मनाते हैं। इस दौरान शहर के विभिन्न क्षेत्रों से ताजिये मदन महल स्थित दरगाह शरीफ़ सलामी देने भी आते हैं। इन सवारियों में से दादा दरबार और डॉ.मकबूल की खिदमत वाले दरबार की ताजिया भी हैं। ये दरबार मुजावर मोहल्ला में लगता है। इस दरबार के साथ-साथ दादा दरबार की सवारी जब मदन महल में सलामी देने जाती है। तब ये दोनों सवारियां दरगाह रोड, पीरछाया ड्यूप्लेक्स स्थित शैलेष सक्सेना के घर पर प्याले के लिए दस्तक देती है। इस दौरान आई हुई सवारी को इस हिन्दू घर से पानी की पेशकश की जाती है, साथ ही सवारी के साथ जुलूस में शामिल लोगों को भी पानी पिलाकर सवाब हासिल किया जाता है। इसके बाद सवारी के द्वारा इस घर और इस घर में रहने वाले लोगों को अपने आसरे में लेकर तमाम बुराईयों से बचाने के लिए अपनी रहमत में रखती है। शैलेष सक्सेना ने इस बारे में बताया कि वे पिछले 20 वर्ष से डॉ. मकबूल और दादा दरबार की सवारी को अपने घर आमंत्रित करते हैं और उनको प्याला देने के बाद ससम्मान विदायी भी देते हैं। पिछले दो दशक से चला आ रहा ये दस्तूर हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल प्रतीक बन गया है।

मुहर्रम में ताजिया का महत्त्व – देखा जाए तो मुहर्रम का प्रमुख आकर्षण ताजिया है। हजरत इमाम हुसैन के रोज ए मुबारक की झांकी के रूप में ताजिये बनाये जाते हैं। मुस्लिम बहुल क्षेत्र मंडी मदार टेकरी निवासी बाबा हलीम शाह मरहूम के फर्जन्द बाबा कलीम शाह व शमीम शाह खानदानी ताजियादार है। शाह घराने में पीढ़ियों से ताजियादारी का काम हो रहा है। और उनके बनाये ताजिये जबलपुर के अतिरिक्त समीपवर्ती जिलों मे भी ले जाये जाते है। संस्कारधानी में मुहर्रम का एक और प्रमुख आकर्षण कलात्मक सवारियाँ हैं। सवारियों की परम्परा दो सौ से ढाई सौ साल पुरानी बताई जाती है। वर्षों पहले सदर मे कलात्मक सवारियों का निर्माण शुरू किया गया था। जो अब पूरे शहर मे फैल गया है। गढ़ा के पुराने मुजावर परंपरागत फूल मखाने की सवारियां बनाते है। संस्कारधानी का मुहर्रम पूरे देश मे कौमी एकता तथा सम्प्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल के रूप मे मशहूर है।

Chakreshhar Singh Surya
Chakreshhar Singh Suryahttps://www.prathmikmedia.com
चक्रेशहार सिंह सूर्या…! इतना लम्बा नाम!! अक्सर लोगों से ये प्रतिक्रया मिलती है। हालाँकि इन्टरनेट में ढूँढने पर भी ऐसे नाम का और कोई कॉम्बिनेशन नहीं मिलता। आर्ट्स से स्नातक करने के बाद पत्रकारिता से शुरुआत की उसके बाद 93.5 रेड एफ़एम में रेडियो जॉकी, 94.3 माय एफएम में कॉपीराइटर, टीवी और फिल्म्स में असिस्टेंट डायरेक्टर और डायलॉग राइटर के तौर पर काम किया। अब अलग-अलग माध्यमों के लिए फीचर फ़िल्म्स, ऑडियो-विज़ुअल एड, डॉक्यूमेंट्री, शॉर्ट फिल्म्स डायरेक्शन, स्टोरी, स्क्रिप्ट् राइटिंग, वॉईस ओवर का काम करते हैं। इन्हें लीक से हटकर काम और खबरें करना पसंद हैं। वर्तमान में प्राथमिक मीडिया साप्ताहिक हिन्दी समाचार पत्र और न्यूज़ पोर्टल के संपादक हैं। इनकी फोटो बेशक पुरानी है लेकिन आज भी इतने ही खुशमिज़ाज।
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