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शनिवार, अप्रैल 19, 2025
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एक नहीं, तीन-तीन मान्यताएँ जुड़ी हैं छठ महापर्व से

three beliefs are associated with Chhath festival

भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश समेत उत्तर भारत के हिस्सों में छठ महापर्व का विशेष महत्त्व है। चार दिन के इस व्रत में स्त्रियाँ निर्जल और निराहार उपवास रखती हैं। स्नान से शुरू होने वाला ये पर्व डूबते और उगने वाले सूर्य को अर्ध्य देने की परंपराओं से बंधा हुआ है। साल में दो बार चैत्र और कार्तिक में यह पर्व आता है। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर इसे ‘चैती छठ’ और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को ‘कार्तिकी छठ’ कहा जाता है। संतान प्राप्ति, पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता है।

आस्था के साथ है जुड़ा है विज्ञान : धार्मिक मतों से संबंध रखने वाले विशेषज्ञ बताते हैं कि छठ पर्व से आस्था के साथ विज्ञान भी जुड़ा हुआ है, षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला ये पर्व एक खगोलीय अवसर के साथ आता है। जब सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। उसके संभावित कुप्रभावों से प्राणियों की यथासंभव रक्षा करने का सामर्थ्य इस परंपरा में है। इससे पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है।

Chhath Pooja

पर्व का नाम छठ कैसे पड़ा: यह पर्व कर्तिक और चैत्र मास की अमावस्या के छ: दिन बाद यानि ज्योतिषीय गणना के आधार पर षष्ठी तिथि को आता है इसलिए इसे छठ कहा गया।

क्यूँ मनाते हैं?: छठ पर्व को लेकर काफी मान्यताएँ प्रचलित हैं जिसमें से एक है कि वनवास से लौटकर प्रभु राम और देवी सीता ने  रावण वध के पाप से मुक्त होने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ किया। जिसकी पूजा में पूजा मुग्दल ऋषि ने करवायी। मुग्दल ऋषि ने माता सीता पर गंगाजल छिड़ककर उन्हें पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने को कहा। तब माता सीता मुग्दल ऋषि के आश्रम में छः दिन तक रहीं और सूर्यदेव की पूजा की।

महाभारत में भी है ज़िक्र: महाभारत काल में कर्ण के सूर्य उपासक होने की बात सामने आती है। कारण प्रतिदिन घंटों तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते। सूर्य ने ही कर्ण को कवच और कुंडल दिए। इस तरह से आज भी अर्घ्य देने की यह परंपरा जारी है।

द्रोपदी ने किया था छठ व्रत: ऐसी मान्यता है कि जब जुएँ में पांडव अपना सारा वैभव हार गए  तब द्रोपदी ने यह व्रत किया। जिससे पांडवों को खोया राज्य और हारा हुआ वैभव वापिस मिला। ऐसा भी कहा जाता है कि सूर्य देव और छठी मईया का भाई-बहिन हैं। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना शुभ मानी गई।

Chhath Pooja Chhathi Maiya

छठी मैया की सुनी जाती है ये कथा: राजा मनु के पुत्र प्रियवत की कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने प्रियवत ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रयेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। इसके बाद प्रियवत की पत्नि को पुत्र पैदा हुआ। लेकिन वह जीवित नहीं था। इससे सम्पूर्ण राज्य में शोक छा गया। इस शोक में डूबा प्रियवत अपने मृत पुत्र को लेकर शमशान गया और अपने भी प्राण त्यागने की तैयारी करने लगा। उसी समय वहां विमान से षष्ठीदेवी आ पहुंची। मृत बालक को भूमि पर रखकर राजा ने देवी को प्रणाम किया। देवी ने अपना परिचय दिया कि वे ब्रह्मा की मानस कन्या देवसेना हैं। मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण विश्व में षष्ठी नाम से मेरी प्रसिद्धि है। देवी ने बालक को उठा लिया और पुनः जीवित कर दिया। राजा ने उसी दिन नगर में जाकर षष्ठी देवी की महिमा के बारे में सबको बताया और बड़े उत्साह से नियमानुसार षष्ठीदेवी की पूजा की। कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को यह विधान होने से षष्ठी देवी का व्रत होने लगा।

Chhath Pooja (9)

कैसे मानते हैं छठ? :यह पर्व चार दिनों का है जो भाईदूज के तीसरे दिन से शुरू होता है। छठ के पहले दिन सेंधा नमक और घी से पकाया हुआ अरवा चावल कद्दू की सब्जी के साथ प्रसाद के रूप में लेते है। इसके अगले दिन से व्रत शुरू होता है। इस रात खीर बनती है। व्रत करने वाली स्त्रियाँ रात में इसे प्रसाद के रूप में लेते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं और व्रत के अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। व्रत के दौरान लहसुन, प्याज का सेवन वर्जित होता है इसलिए जिन घरों में यह व्रत रखा जाता है वहाँ व्रत के दिनों तक लहसुन-प्याज के बिना ही भोजन पकाया जाता है। घरों में भक्तिमय गीत गाए जाते हैं, मंडलियाँ बैठती है। आजकल पंडालों में सूर्यदेवता की मूर्ति की स्थापित होने लगी हैं, ये नया चलन है। सुबह अर्घ्य के बाद आयोजक माइक पर चिल्लाकर प्रसाद मांगते हैं। पटाखे भी छोड़े जाते हैं। कहीं-कहीं आर्केस्ट्रा का आयोजन भी होता है।

Chakreshhar Singh Surya
Chakreshhar Singh Suryahttps://www.prathmikmedia.com
चक्रेशहार सिंह सूर्या…! इतना लम्बा नाम!! अक्सर लोगों से ये प्रतिक्रया मिलती है। हालाँकि इन्टरनेट में ढूँढने पर भी ऐसे नाम का और कोई कॉम्बिनेशन नहीं मिलता। आर्ट्स से स्नातक करने के बाद पत्रकारिता से शुरुआत की उसके बाद 93.5 रेड एफ़एम में रेडियो जॉकी, 94.3 माय एफएम में कॉपीराइटर, टीवी और फिल्म्स में असिस्टेंट डायरेक्टर और डायलॉग राइटर के तौर पर काम किया। अब अलग-अलग माध्यमों के लिए फीचर फ़िल्म्स, ऑडियो-विज़ुअल एड, डॉक्यूमेंट्री, शॉर्ट फिल्म्स डायरेक्शन, स्टोरी, स्क्रिप्ट् राइटिंग, वॉईस ओवर का काम करते हैं। इन्हें लीक से हटकर काम और खबरें करना पसंद हैं। वर्तमान में प्राथमिक मीडिया साप्ताहिक हिन्दी समाचार पत्र और न्यूज़ पोर्टल के संपादक हैं। इनकी फोटो बेशक पुरानी है लेकिन आज भी इतने ही खुशमिज़ाज।
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