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शनिवार, नवम्बर 23, 2024
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कलेक्ट्रेट में मिला चाय से ज़्यादा केटली गरम के मिज़ाज वाला आदमी

शाम के लगभग छः बजे पुलिस विभाग के कुछ अधिकारी कलेक्टर के कोर्ट रूम में कागज़ी कार्यवाहियों को अंजाम दे रहे थे। थोड़ी ही देर कलेक्टर डॉ इलैयाराजा टी के आने की सुगबुगाहट फैल जाती है। आमतौर पर जिस बड़े से हॉल में कलेक्टर सबकी समस्याओं को सुनते हैं वहाँ 6 बजने के कुछ मिनट के बाद ही कलेक्टर पहुंचते हैं। जहां पहले से ही कुछ पुलिस अधिकारी और कर्मचारी उनका इंतजार कर रहे हैं।

मैं हॉल से थोड़ा आगे बढ़ जाता हूँ। इस वक़्त कलेक्ट्रेट में बहुत कम लोग मौजूद होते हैं। आम जनता तो न के बराबर ही होती है। तभी मैं एक जाना पहचाना चेहरा देखकर उनसे मुस्कुराकर मिलता हूँ। उन्हें बताता हूँ कलेक्टर इस वक़्त भी लोगों से मिल रहे हैं। तब वो कहते हैं कि हाँ, दिन भर वो बेहद व्यस्त रहे हैं। उसके बाद भी वो लोगों से मिल रहे हैं। लेकिन सीएम हैं कि उन्हें काम करने नहीं देते!

उन्होंने जो कहा मैं उसकी उम्मीद नहीं कर रहा था लेकिन जो कहा गया उससे काफ़ी इत्तेफाक़ रखता हूँ। ये सही बात है कि जनप्रतिनिधियों को जनता ने जो दायित्व सौंपा है उसे निभाने के लिए सत्ता को प्रशासन को ही आदेश देने होते हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों से देख रहा हूँ कि प्रदेश सरकार ने हर ज़िले के कलेक्टर से लेकर स्कूल के शिक्षकों को मदारी का बंदर बना दिया है। सीएम अपनी सरकार के प्रमोशन के लिए ज़िले से लेकर प्रदेश स्तर तक विभिन्न “इवेंट्स” आयोजित कर रही है। ऐसा लग रहा है कि बिना “इवेंट्स” के ये सरकार काम नहीं करती। योजनाओं को प्रभावशाली ढंग से लागू करने के बजाए वे उसे ईवेंट का रूप दे देते हैं। हर दिवस और योजना को त्योहार की तरह मनाने के लिए छोटे-छोटे कर्मचारियों को ही दौड़ना-भागना पड़ता है। इससे सरकार का प्रमोशन तो हो रहा है लेकिन इसके बाद क्या? कर्मचारी यदि शासकीय रिसोर्सेज़ का इस्तेमाल कर रहे हैं तो उससे प्रमोशन नहीं रिजल्ट मिलना चाहिए।

खैर, उनसे बात करने के बाद मैं उसे हॉल में दाखिल होता हूँ जहां कलेक्टर और बाकी लोग पहले से मौजूद हैं। मैं देखता हूँ कि एक बालिका उनसे बात कर रही है। कलेक्टर उसकी समस्या बहुत धैर्यपूर्वक सुन रहे हैं। इस बीच संतरी ने मुझे देखकर कहा कि आपको भी मिलना है तो मिल लो। मैंने न में सिर हिला दिया। हॉल में मेरा ध्यान कलेक्टर के चेहरे पर गया। उनके चेहरे पर शिकन नहीं थी लेकिन आँखें साफ बता रहीं थी कि वो आज पूरे दिन से कितना व्यस्त रहे हैं। मैंने अपना मोबाईल निकाला और उनका फोटो लेने लगा। इस बीच एक संतरी ने मुझे इशारे से मना किया। एक पल के लिए मुझे लगा कि लड़की नाबालिक है इसलिए वो नहीं चाहते कि उसका फोटो लिया जाए। पर मैंने दो फोटो ले ही ली। ये सोचकर कि उसकी पहचान छिपायी जा सकती है। वो दोनों संतरी मेरे इस हरकत से एक-दूसरे की तरफ देखने लगते हैं। इस बीच मैं देखता हूँ उस बच्ची के आवेदन पर वो दस हज़ार रुपये की सहायता के लिए लिखते हैं। इसके बाद वो बाकी लोगों से मिलते हैं। इनमें कुछ लोगों के काम से वो असन्तुष्ट हैं। बीच में एक कान्ट्रैक्टर को नेत्रहीन बालिकाओं के स्कूल या छात्रावास में ठीक से निर्माण न करने के लिए वो फटकार भी लगाते हैं। इस दौरान एक विधायक भी उस हॉल से होते हैं कलेक्टर के कैबिन की तरफ जाते हैं। कलेक्टर उनका भी अभिवादन करते हैं। लेकिन उन्हें वहाँ से जाने की कोई जल्दी नहीं है। वो सबकी बातें सुनते हैं। निर्देश देते हैं, सलाह देते हैं। एक नए अधिकारी का पुष्पगुच्छ भी स्वीकार करते हैं लेकिन उसे ही उसके स्वागत में लौटा देते हैं। चंद मिनटों में वे अंदर चले जाते हैं। कुछ 15 मिनटों में ही वहाँ बहुत कुछ हो रहा था। जब वो बच्ची बाहर आती है तो मैं उसके नाबालिक होने की बात की जानकारी लेता हूँ तो पता चलता है कि वो 19 साल की है। फिर मैं संतरी से पूछता हूँ कि वो मुझे मना क्यूँ कर रहे थे? तो वो कहते हैं कि कलेक्टर साहब समय निकालकर सबसे मिलने की कोशिश करते हैं लेकिन वो नहीं चाहते हैं कि हर चीज़ कि फोटो छपे। ये बात सुनकर मुझे महसूस हुआ कि उन्हें प्रचार की कोई लालसा नहीं है। मैं उस बच्ची से कैमरा के सामने बात करता हूँ। अंदर से एक संतरी बाहर आकार उस बच्ची के लिए चाय मँगवाने को कहता है। ऐसा लगा जैसे अंदर से ही ये आदेश आया है। ताकि जितनी समय उसका आवेदन महिला बाल विकास विभाग में जाने में लगेगा वो कम से कम चाय पी ले। क्यूंकि वो काफ़ी देर से उनका वहाँ पहले ही इंतज़ार कर चुकी है।

ये वो नहीं हैं लेकिन…

इसके बाद वहाँ दो लोग आते हैं, देखने में सामान्य व्यक्ति थे। उनमें से एक के मुताबिक ये सबकुछ जो हो रहा था या हो चुका था, वो खबर नहीं है। उसकी प्रतिक्रिया देखकर मुझे ऐसा लगा जैसे कि उसके दौ सौ रुपये का लिफाफा खो गया हो। उसका व्यवहार चाय से ज्यादा केटली गरम वाले हिसाब का था। वो बेहद खीझा हुआ था। उसके हिसाब से न्यूज पोर्टल पर मदन महल थाना पुलिस कार्यवाही कर रही है। और उसने आरएनआई वाले कई अखबार देख लिए। इतना विक्षिप्त व्यक्ति कलेक्ट्रेट परिसर में घूमना वहाँ आने वाले फरियादियों के लिए बेहद खतरनाक है।

Chakreshhar Singh Surya
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चक्रेशहार सिंह सूर्या…! इतना लम्बा नाम!! अक्सर लोगों से ये प्रतिक्रया मिलती है। हालाँकि इन्टरनेट में ढूँढने पर भी ऐसे नाम का और कोई कॉम्बिनेशन नहीं मिलता। आर्ट्स से स्नातक करने के बाद पत्रकारिता से शुरुआत की उसके बाद 93.5 रेड एफ़एम में रेडियो जॉकी, 94.3 माय एफएम में कॉपीराइटर, टीवी और फिल्म्स में असिस्टेंट डायरेक्टर और डायलॉग राइटर के तौर पर काम किया। अब अलग-अलग माध्यमों के लिए फीचर फ़िल्म्स, ऑडियो-विज़ुअल एड, डॉक्यूमेंट्री, शॉर्ट फिल्म्स डायरेक्शन, स्टोरी, स्क्रिप्ट् राइटिंग, वॉईस ओवर का काम करते हैं। इन्हें लीक से हटकर काम और खबरें करना पसंद हैं। वर्तमान में प्राथमिक मीडिया साप्ताहिक हिन्दी समाचार पत्र और न्यूज़ पोर्टल के संपादक हैं। इनकी फोटो बेशक पुरानी है लेकिन आज भी इतने ही खुशमिज़ाज।
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