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गुरूवार, नवम्बर 21, 2024
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पढ़िए अनिला द्विवेदी तिवारी की कविता “शीत लहर का प्रकोप”

विषय — शरद ऋतु
विधा — कविता
शीर्षक — शीत लहर का प्रकोप
लेखिका — अनिला द्विवेदी तिवारी

ये मौसम कुछ बेईमान है।
धुन्ध छाया हुआ आसमान है।।

बयार रानी इतरा रही हैं।
दे दे ठुमके लहरा रही हैं।।

सूरज दादा भी आजमा रहे हैं।
बाहर निकलने में शरमा रहे हैं।।

पानी छुए तो डंक मारता है।
तन पे पड़े जो करेंट मारता है।।

कोई तो बताए अब क्या करूँ भाई।
पानी छूऊँ या घुस जाऊँ रजाई।।

गजब की शीत लहर आई है।
सबके निकले कम्बल और रजाई है।।

जिन कपड़ों को फेंका था कबाड़े में।
अब वो प्यारे लग रहे हैं इस जाड़े में।।

ठंडा और शीतल पेय सब किनारे हैं।
चाय और कहबे (कॉफी) के बारे न्यारे हैं।।

लइया, चिक्की, गजक सब इतराये हैं।
आम्र पना, नींबू रस को मुँह चिढाये हैं।।

आइसक्रीम बेचारी चुपचाप सुन रही थी।
चिक्की गजक से दोस्ती के सपने बुन रही थी।।

कोरोना ने पहले ही खलबली मचाई है।
बची रस्म जो ठंडी ने खूब निभाई है।।

दोस्त, सखा यार सब तरस रहे मुँह दिखाई को।
और हम याद करते हैं अभी लिहाफ और रजाई को।।
     

स्वरचित
अनिला द्विवेदी तिवारी

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