25.1 C
Delhi
गुरूवार, नवम्बर 21, 2024
होमसाहित्यकहानीप्रेम - बाध्यता, अनिवार्यता या कर्तव्य?

प्रेम – बाध्यता, अनिवार्यता या कर्तव्य?

ये चीजें हर रिश्ते में होती हैं। लेकिन इन वजहों से उस इंसान को अनदेखा नहीं किया जा सकता जो उससे बेहद और निस्वार्थ प्यार करता है। वैसे भी प्रेम का कोई लिखित संविधान नहीं है इसलिए वो अपने इस रिश्ते में किसी लिखित-अलिखित या सुने-सुनाए नियमों पर नहीं चलेगा। वो अपनी ओर से प्रेम भरा रिश्ता ही निभाएगा।

शौर्य अपने होटल के कमरे की बालकनी में खड़े-खड़े बादलों के की परत को पार करते सूरज को उगते हुए देख रहा है। इन बादलों को देखते हुए वो उन खयालों में डूबने लगता है जब उसने ऐसी किसी सुबह की कल्पना भी नहीं की थी। शौर्य अपने बीते हुए सालों को याद करने लगता है और याद करते-करते उस लम्हे में पहुँच जाता है जब उसका मन करता था कि वो दुनियादारी से बहुत दूर चला जाए लेकिन सोची हुई बातें हमेशा सच हो जाएँ ऐसा ज़रूरी तो नहीं।

कुछ सालों पहले की बात है जब शौर्य का परिवार चाहता है कि उसकी उम्र काफी हो गई है इसलिए वो शादी कर ले। इसके लिए उसे आए दिन कम्युनिटी के व्हाट्सएप ग्रुप पर आने वाली लड़कियों के फोटो और bio डाटा उसके पिता उसे फॉरवर्ड करते। लेकिन किसी का फोटो और bio डाटा देखकर क्या उससे मिलने का मन बनाया जा सकता है। मतलब शादी को लोग जॉब की तरह ट्रीट क्यूँ करते हैं कि इस कैंडीडेट की शक्ल और बैकग्राउंड पसंद है इसलिए उसे इस वैकन्सी के लिए बुलाया जाए। ये बात शौर्य को बहुत खराब लगती। इसलिए वो अपने पिता से कहता कि इन फोटोज़ और bio डाटा को देखकर वो उनसे मिले या न मिले, ये वो तय नहीं कर सकता। उसके पिता शायद उसकी बात समझ जाते इसलिए उसे किसी से मिलने के लिए फोर्स नहीं करते लेकिन एक दिन एक लड़की के पिता के बार-बार कॉल करने पर शौर्य अपने परिवार के साथ उनसे मिलने उनके घर गया। जहाँ लड़की ने शौर्य से बात भी की लेकिन घर लौटने के बाद शौर्य को उस लड़की का चेहरा याद नहीं है इसलिए वो कुछ दिन बाद दुबारा उस लड़की से बाहर मिला लेकिन उसके बाद जब वो घर लौटकर आया तब भी उसके चेहरे को याद करने की कोशिश करता ही रह गया। जब उसकी ये कोशिश नाकाम हो गई तो उसने शादी के लिए मना कर दिया। इसके बाद उसने शादी का खयाल ही छोड़ दिया। लेकिन उम्र आपके खयाल छोड़ने से अपना बढ़ना रोक नहीं देती। दो-तीन सालों में वो 35 का हो गया। और तब तक शादी के खयाल से वो काफी दूर जा चुका था। लेकिन जैसा शुरू में ही कह दिया गया है कि सोची हुई बातें हमेशा सच हो जाएँ ऐसा… तो हुआ ये कि एक दिन अपने काम के चलते जब वो एक ईवेंट में पहुँचा तो वहाँ वो एक लड़की कीर्ति से टकराया। जिससे जान-पहचान भी हुई लेकिन बात आई गई हो गई। फिर एक दिन किसी काम के वजह से कीर्ति उसके इनबॉक्स में टकरायी। यहाँ से शुरू हुई उनकी बातचीत, इसके बाद वो मिले भी। उनकी मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया। वो कीर्ति के व्यवहार और व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुआ। दोनों एक-दूसरे को बेहद पसंद करने लगे। दोनों ने तय किया कि वो इस रिश्ते को आगे ले जाएंगे। यहाँ से शुरू हुआ दौर एक-दूसरे को और बेहतर ढंग से समझने का। और यहाँ से शुरू हुआ वो दौर भी जो हर उस रिश्ते में आता है जो पहले प्रेम की शक्ल में शुरू होता है और बाद में उसके अलग-अलग रूप दिखने लगते हैं। शौर्य और कीर्ति शुरू में एक-दूसरे से फोन पर बहुत बातें किया करते। लेकिन फिर शौर्य का काम उनकी बातचीत के आड़े आने लगा। देर रात तक एक-दूसरे से बात करना उसे रोज संभव नहीं दिख रहा है। इसलिए उसने कीर्ति से फोन पर कम बात करने के लिए कहा। कीर्ति ने इस बात का सीधे विरोध नहीं किया लेकिन सीधे समर्थन भी नहीं किया। उसने शौर्य से कहा कि जब भी उसके पास समय हो वो उसे कॉल कर ले। अब शौर्य को ये बाध्यता लगा या कीर्ति ने उस पर बाध्यता डाल दी ये उसके लिए तय करना मुश्किल है। लेकिन अगर बात प्रेम की हो तो प्रेम स्वयं में एक स्वतंत्र अभिव्यक्ति है इसलिए उसमें बाध्यता जैसी बातें नहीं आती होंगी। शौर्य खुद कीर्ति से कहता कि सुबह किसी और का कॉल लेने से पहले वो कोशिश करता है कि कीर्ति से बात कर ले। हालांकि शौर्य ने अपने इस कॉल को किसी अनिवार्यता या कर्तव्य से नहीं जोड़ा और न ही कीर्ति ने इसे अनिवार्यता या बाध्यता समझा। हाँ लेकिन प्रेम में बाध्यता न सही कर्तव्य जरूर होते हैं। ये दो लोगों का कर्तव्य ही है कि वे एक-दूसरे की पसंद-नापसंद और आत्मसमान का ध्यान रखें। जो कि वो दोनों रखते भी हैं लेकिन कई बार शौर्य कीर्ति के द्वारा मज़ाक में दिए जाने वाले लगातार उलटे जवाबों से आहत हो जाता। लेकिन उस पर वो रीऐक्ट भी नहीं कर पाता। क्यूंकि पिछले कुछ दिनों में उसे कीर्ति का वो रूप देखने मिला है जो उसने पहले नहीं देखा। कीर्ति अपनी ही दुनिया की बातों में उलझकर शौर्य से नाराज़ हो जाती। जिसका असर शौर्य के मन और उसके काम पर पड़ता। इस बारे में दोनों की बातें भी होती और कीर्ति ये कहती कि वो अपने इस रवैये पर काम कर रही है। वो शौर्य से कहती कि उसने जो भी लक्ष्य जीवन में तय किए हैं वो दोनों मिलकर पूरा करेंगे। लेकिन जब कीर्ति अचानक से उससे उन बातों को लेकर नाराज़ हो जाती कि वो उसके लिए समय नहीं निकालता तो शौर्य सोचता कि आखिर मैं कहाँ व्यस्त हूँ, अगर कीर्ति के साथ नहीं हूँ तब काम ही कर रहा होता हूँ। शौर्य के मुताबिक उसे लगता कि वो कीर्ति से फोन पर भी बात करता है और पूरे दिन उसके आसपास रहकर उसे अपनी उपस्थिति और साथ होने का एहसास भी कराता है। लेकिन कीर्ति के मुताबिक शौर्य उसके लिए समय नहीं निकालता है और रिश्ते को फॉर ग्रांटेड ले रहा यही। कीर्ति को शौर्य की बातें और व्यवहार देखकर लगता कि शौर्य अपने कम्फर्ट ज़ोन और कंविनियेंस पर ही काम करता है। दोनों के बीच मन-मुटाव या बहस होने पर वो उसे इसके ताने भी मारती, जैसे शौर्य की कभी कोई गलती ही नहीं होती। वो हमेशा सही होता है। हालांकि दोनों अपनी-अपनी गलतियों पर माफी भी मांग लेते। कीर्ति इन लड़ाई-झगड़ों के बारे में शौर्य से कहती कि कोई भी रिश्ता फूलों की गलियों से होकर नहीं गुज़रता। वहाँ ऐसे भी मौके आते हैं जब कटीली झाड़ियों के जंगल से भी गुज़रना पड़ता है। शौर्य फिगर आउट करने में लगा है कि कीर्ति पहले जब उससे मिली तब वो उसके साथ खुश रही। लेकिन अब ऐसा क्या होने लगा कि अक्सर उनके बीच किसी बात को लेकर तना-तानी होने लगी? कीर्ति को लगता कि उसने शौर्य को शुरू से जैसा पाया था शौर्य वैसा ही रहना चाहता है। वो खुद कुछ नया या अलग नहीं करना चाहता है। कीर्ति लगातार कोशिशों में लगी रहती कि शौर्य अपनी दिनचर्या को बदले। कुछ बेहतर करे और कुछ नया करे। शौर्य को कीर्ति की इस सोच की वजह लगती उसकी उम्र, कीर्ति 27 की है। वो अब भी ज़िंदगी में कुछ नया ढूंढ रही है। लेकिन शौर्य इस उम्र के पड़ाव तक आकर काफी कुछ कर चुका है। और अब उसने कुछ कामों में ही सीमित रहना सीख लिया है।

शौर्य के मन में कीर्ति के खिलाफ़ कभी कुछ नहीं आया और न ही कीर्ति के मन में उसके खिलाफ़ कुछ आया। लेकिन प्रेम से शुरू हुआ ये रिश्ता धीरे-धीरे अनिवार्यता, कर्तव्य और बाध्यता में सिमट कर रह गया। कीर्ति शौर्य के काम को लेकर लगातार उससे सवाल करती, जिसके जवाब देता लेकिन कभी-कभार बोल देता कि कितने सवाल करती हो। कीर्ति को लगता कि शौर्य कहीं उसे छोड़ न दे। लेकिन वो उसे अपने रहने और होने का यकीन दिलाता रहता। कीर्ति की बहुत सारे बातों में कुछ बातें बहुत अच्छी हैं जैसे वो किसी भी झगड़े को सुलझाए बिना शौर्य को छोड़कर नहीं जाती। और हमेशा ये कोशिश करती कि शौर्य के काम करने के दौरान वो उसके आसपास ही रहे। ताकि वो उसके साथ वक़्त बिता पाए और उसके काम में कुछ मदद कर पाए। कीर्ति चाहती है कि शौर्य रात में 10 मिनट ही सही उससे बात कर लिया करे या जिस दिन वो उससे मिलने नहीं आ पाती वो उससे मिल लिया करे। हफ्ते में कम से कम एक बार बाहर घुमाने ले जाए। शौर्य को इनमें से किसी भी बात से कोई ऐतराज़ नहीं है। वो अपनी तरफ से प्रयास करता। लेकिन कुछ करने पर जब कीर्ति उससे कहती कि वो ये सब उसके कहने की वजह से तो नहीं कर रहा है, तब वो कुछ कह नहीं पाता। शौर्य की इस रिश्ते से सबसे बड़ी उम्मीद है सुकून, जिसे वो हासिल करने के लिए वो सब करता जो उसके बस में है लेकिन कहीं न कहीं उससे कोई कमी रह जाती। इन सारी उधेड़-बन के बीच कीर्ति उसे शादी के लिए प्रपोज़ कर देती है। शौर्य उसे हाँ कह देता है। उसे लगता है कि ये चीजें हर रिश्ते में होती हैं। लेकिन इन वजहों से उस इंसान को अनदेखा नहीं किया जा सकता जो उससे बेहद और निस्वार्थ प्यार करता है। वैसे भी प्रेम का कोई लिखित संविधान नहीं है इसलिए वो अपने इस रिश्ते में किसी लिखित-अलिखित या सुने-सुनाए नियमों पर नहीं चलेगा। वो अपनी ओर से प्रेम भरा रिश्ता ही निभाएगा। वो कीर्ति की उन कोशिशों को तो बिलकुल भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता जहाँ वो खुदकों एक बेहतर इंसान बनाने की कोशिश में जुटी हुई है। अगर उसने आज कदम पीछे हटाए तो कीर्ति का खुद पर से भी भरोसा उठ जाएगा। और कीर्ति भी तो उस पर कितना यकीन करती है। शौर्य ने तय किया कि वो उन दोनों के के यकीन का मान रखेगा। उसने प्रेम में अपना कर्तव्य निभाया और प्रेम ने उसे एक खुशहाल रिश्ते का उपहार दिया। शौर्य सूरज को उगते हुए देखकर कीर्ति और उसके रिश्ते के बारे में सोच रहा है और मन ही मन यही प्रार्थना कर रहा है कि उसे कीर्ति के साथ रोज सुबह उगता हुआ सूरज देखने का मौका मिले। लेकिन कीर्ति है कहाँ? तभी कीर्ति ट्रैक सूट में पसीने से लथपथ कमरे में दाखिल होती है। वो अभी जॉगिंग करके लौटी है। शौर्य उसे पलटकर देखता है, वो जानता है कि कीर्ति सुबह-सुबह जब तक अपने दस हज़ार स्टेप्स पूरे न कर ले तब तक उसे सुकून नहीं मिलता। चाहे वो छुट्टियाँ ही क्यूँ न मना रही हो। कीर्ति शौर्य को बालकनी में खड़ा देखती है, जब वो बाहर उसके पास जाती है तो पड़ोस की बालकनी में एक लड़की को देखती है। और शौर्य को छेड़ते हुए कहती है, सूरज को देखने के बहाने किसी और के चाँद को ताका जा रहा है। शौर्य उसकी तरफ देखता है और मुस्कुरा देता है। वो कीर्ति का हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींच लेता है। वो दोनों पलटकर अपने साढ़े तीन साल के बेटे को देखते हैं जो अभी भी गहरी नींद में सो रहा है। कीर्ति शौर्य के कंधे पर सिर रखकर सूरज को देखने लगती है। सूरज को देखते-देखते उन दोनों के हाथ की कसाहट बढ़ती जाती है। आज बादलों के ऊपर आते हुए इस सूरज को देखते हुए शौर्य और कीर्ति के रिश्ते ने 5 साल पूरे कर लिए हैं।

Chakreshhar Singh Surya
Chakreshhar Singh Suryahttps://www.prathmikmedia.com
चक्रेशहार सिंह सूर्या…! इतना लम्बा नाम!! अक्सर लोगों से ये प्रतिक्रया मिलती है। हालाँकि इन्टरनेट में ढूँढने पर भी ऐसे नाम का और कोई कॉम्बिनेशन नहीं मिलता। आर्ट्स से स्नातक करने के बाद पत्रकारिता से शुरुआत की उसके बाद 93.5 रेड एफ़एम में रेडियो जॉकी, 94.3 माय एफएम में कॉपीराइटर, टीवी और फिल्म्स में असिस्टेंट डायरेक्टर और डायलॉग राइटर के तौर पर काम किया। अब अलग-अलग माध्यमों के लिए फीचर फ़िल्म्स, ऑडियो-विज़ुअल एड, डॉक्यूमेंट्री, शॉर्ट फिल्म्स डायरेक्शन, स्टोरी, स्क्रिप्ट् राइटिंग, वॉईस ओवर का काम करते हैं। इन्हें लीक से हटकर काम और खबरें करना पसंद हैं। वर्तमान में प्राथमिक मीडिया साप्ताहिक हिन्दी समाचार पत्र और न्यूज़ पोर्टल के संपादक हैं। इनकी फोटो बेशक पुरानी है लेकिन आज भी इतने ही खुशमिज़ाज।
सम्बंधित लेख

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

सर्वाधिक पढ़े गए

हाल ही की प्रतिक्रियाएँ

Pradeep on वक़्त