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साहब, छात्र हैं आतंकवादी नहीं !

कभी व्ही डी शर्मा ने भी भाजपा सरकार में ही झेलीं थी पुलिस की लाठियां ।
जबलपुर – NSUI पर कल हुए बर्बर लाठीचार्ज ने ज़ेहन में एक सवाल पैदा कर दिया कि छात्रों पर लाठियां बरसाते इन पुलिस कर्मियों के बच्चे क्या छात्र नहीं है या कभी इन्होंने छात्र जीवन नहीं जिया,जो इस बर्बरता से उन छात्रों को पीट रहे हैं जिनकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि ही नही है, पर दूसरी ओर आदेश को बिना प्रश्न मानना भी इन कर्मियों की शपथ और डयूटी का हिस्सा है।

छात्रों को पड़े डंडों के निशान

जबलपुर में NSUI के विरोध प्रदर्शन पर पुलिस के बर्बर रवैये ने हमें याद दिला दिया जब 2003 में उमा भारती की सरकार बनी ही थी और महाकौशल कॉलेज में प्रदर्शन के दौरान ABVP के कार्यकर्ताओं सहित अभी के प्रदेश अध्यक्ष व्ही.डी.शर्मा को पुलिस ने इस कदर पीटा था कि जामदार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था, हालांकि पिछली सरकार के ढर्रे पर सालों से चल रही पुलिस को जब तक गलती का एहसास हुआ तब तक देर हो चुकी थी, मुख्यमंत्री उमाभारती सहित सभी बड़े नेता अपने पिटे हुए कार्यकर्ताओं के हालचाल लेने भी पहुचे, थाना प्रभारी को लाइन हाजिर किया गया, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक उपेंद्र जैन जब अस्पताल पहुँचे तो उनसे धक्कामुक्की कर उनकी टोपी तक गिरा दी गई जिसके बाद कार्यकर्ताओं को कुछ सुकून मिला, जंहा तक मुझे याद है तब परिषद के नगर अध्यक्ष लालू श्रीवास्तव थे, अब के पार्षद बाबा श्रीवास्तव सहित रेलवे बोर्ड के सदस्य अभिलाष पाण्डे मात्र कार्यकर्ता थे, आंखों देखे हाल के अनुसार आज के सभी दिग्गज, व्ही.डी.शर्मा को छोड़ कर भाग खड़े हुए थे एवं अम्बेडकर नगर इकाई के गुमनाम कार्यकर्ताओं शेलेन्द्र शुक्ला,टोनी सोनकर, नील कमल तिवारी,अभिलेश कोरी,रंजीत सोनकर (तब के जी एस कॉलेज उपाध्यक्ष),अभिषेक सोनकर(टीटू), प्रशांत पाठक, ललित तिवारी, विपिन पटेल जैसे कई गुमनाम कार्यकर्ताओं ने उनको ढक कर उनके हिस्से की लाठियां झेलीं थी, जिसमे शेलेन्द्र शुक्ला की पीठ पर तो व्ही डी भाईसाहब को बचाने के कारण पुलिस ने भारत सहित अन्य देशों का नक्शा तक उभार दिया था,खैर परिवर्तन और शासन की कहानी बड़ी लंबी है पर इसका उद्देश्य है आपका रुझान इस ओर खींचने का कि सत्ता में बैठा हर एक शासक आखिर में हिटलर ही बन बैठता है और ट्रांसफर प्रमोशन के भार के नीचे दबी पुलिस उनकी कठपुतली बन मात्र नाचती दिखाई देती है।

राजनीति के गलियारों में कहा जाता है कि जब तक पुलिस लाठीचार्ज में पिटो नहीं तब तक नाम नही होता, पर यह तो दिल को तस्सल्ली देने ग़ालिब ख्याल अच्छा है, छात्रों पर बरसने वाली लाठियां तब डरी सहमी सी नज़र आती हैं जब शक्ति भवन को मुख्य धारा के नेताओं सहित विधायक घेर लेते हैं, उस समय इस्तेमाल होने वाली वाटर कैनन का पानी भी छात्रों के लिए खत्म हो जाता है और उन्हें सीधे लाठी से ही तितर बितर किया जाता है, सत्ता में बैठे हुए माई बाप सहित लाठी चलाने वाले भी किसी के पिता, चाचा, मामा, ताऊ हैं तो आखिर कैसे विरोध प्रदर्शन करने वाले छात्रों को किसी दुर्दान्त अपराधी के तरह लाठियों से इस तरह पीटा जा सकता है कि किसी का लाल अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति में आ जाये, प्रदेश के मामा होने का दम्भ भरने वाले क्यों इन भांजों से सौतेला व्यवहार कर देते हैं,क्या सत्तारूढ़ उस दर्द को भूल जाते हैं जो उन्होंने भी महसूस किया है या फिर बदला पूरा करना ही उनका सत्त्ता में आने का उद्देश्य था । युवा शक्ति को कमज़ोर समझना बहुत बड़ा भ्रम साबित हो सकता है क्योंकि देश का भविष्य बनाने वाला युवा सत्ता धारियों का भविष्य बिगाड़ भी सकता है, बस सत्ता में बैठे सभी एक बार इतना ही सोच लें कि साहब ये छात्र हैं आतंकवादी नही ।

इस लेख में प्रकाशित सभी विचार सह संपादक नील तिवारी के है जो उनके वास्तविक अनुभव से प्रेरित हैं।

Neel Tiwari
Neel Tiwarihttps://www.prathmikmedia.com/
Neel Kamal Tiwari was a Techie by Profession, Worked with Wipro, HCL, IBM and Google for around 16 year meanwhile got opportunity to follow the passion to work with media industry as media relations manager with HCL Noida, Studied mass communication in IBM international academy while working, afterwards following the passion to keep democracy alive with help of journalism and keen to dig deep and reveal the truth.
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