जबलपुर, नुक्कड़ नाटक जनता को रोचक ढंग से जानकारी देने या सामजिक विषयों पर जागरूक करने का एक अच्छा माध्यम है. जबलपुर पुलिस भी अपने पुलिस कप्तान के मार्गदर्शन में जबलपुरवासियों के लिए नुक्कड़ नाटकों का आयोजन करवा रही है. जिसका उद्देश्य संस्कारधानी के लोगों को कोरोना संक्रमण से बचने के लिए सावधानियाँ बरतने हेतु प्रेरित करना है. जिनका मंचन जबलपुर के स्थानीय थिएटर कलाकारों के द्वारा किया जा रहा है. जबलपुर पुलिस की निगरानी में ये नुक्कड़ नाटक “जागरूकता रथ” के ज़रिये शहर के विभिन्न इलाकों में लोगों को जागरूक करने और ज़िम्मेदार नागरिक बनाने हेतु किये भी जा रहे हैं. लेकिन प्रश्न उठता है कि जब नुक्कड़ में जनता कोरोना कर्फ्यू लगा हुआ है और जनता के नुक्कड़ पर भी जाने में पाबंदी है तो आख़िर ये नुक्कड़ नाटक देख कौन रहा है?
जबलपुर पुलिस जिस सक्रियता से इस कोरोना संक्रमण के दौर में काम कर रही है वो अतुलनीय है. नुक्कड़ नाटक जैसी विधा का प्रयोग भी अच्छा है लेकिन नुक्कड़ नाटक आयोजित करने की टाइमिंग सही नहीं है. क्यूंकि नुक्कड़ नाटक के जो दर्शक है वो तो अपने-अपने घरों में बंद है. सड़कों पर वो ही लोग मौजूद हैं जो या तो किसी आवश्यक कार्य से निकले हैं या फिर इस कठिन समय में अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं. ऐसे में कौन है जिसके पास सड़क पर रूककर इन नुक्कड़ नाटकों को देखने का समय है? अगर कोई इन्हें रूककर देख भी रहा है तो उसका उसके घर से बाहर निकलने का कारण अवश्य पूछना चाहिए. क्यूंकि ऐसे समय में जब कोरोना संक्रमण के रफ़्तार बहुत तेज़ है तब सड़क पर नुक्कड़ नाटक के दर्शक का होना एक गम्भीर बात है. नुक्कड़ नाटक आयोजन की सार्थकता तब होती है जब दर्शकों का बड़ा समूह नुक्कड़ पर मौजूद हो और जबलपुर के पुलिस कप्तान इस बात को बेहद अच्छे से जानते हैं कि इस समय दर्शक कहाँ है. इससे तो बेहतर ये हो सकता है कि वे स्वयं सोशल मीडिया के माध्यम से अपने शहरवासियों से सम्वाद करें. और जब जनता कोरोना कर्फ्यू समाप्त हो तब वे नुक्कड़ नाटकों का आयोजन ज़ोर-शोर से करवायें. ताकि पुलिस प्रशासन और आयोजन में लगने वाले तमाम संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग किया जा सके. सोचने वाली बात है!