कहीं OPD की समस्या, कहीं दवाओं की परेशानी… अस्पताल में भर्ती मरीजों की देखरेख के लिए इधर-उधर भागते नजर आए परिजन
डिंडौरी | मध्यप्रदेश संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी संघ के आह्वान पर 24 मई से प्रारंभ डिंडौरी जिले के 350 से अधिक कॉन्ट्रैक्चुअल हेल्थ वर्कर्स की सामूहिक हड़ताल ने महज 24 घंटे में ही जिले की सेहत पर बुरा असर डालना शुरू कर दिया। मंगलवार को जिला अस्पताल सहित शहपुरा, बजाग, समनापुर, अमरपुर, करंजिया और मेहंदवानी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में हड़ताल का सीधा असर देखा गया। नागरिकों को कहीं OPD की समस्या तो कहीं दवाओं की परेशानी से दो-चार होना पड़ा। अस्पतालों में भर्ती मरीजों के परिजन उनकी देखरेख के लिए स्वास्थ्य कर्मियों को इधर-उधर ढूंढ़ते नजर आए। परिजनों ने दु:खी मन से कहा कि संविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों ने हड़ताल के लिए गलत समय चुना है। आज कोरोना के विकट दौर में जब लोगों की जान हर वक्त जोखिम में है, तब जिले के सैकड़ों संविदा स्वास्थ्य कर्मी अपनी जिम्मेदारी भूलकर अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। इधर, संविदा कर्मियों का कहना है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत प्रदेश 19000 से अधिक कर्मचारी कोरोना काल में दो साल से आधे वेतन पर 24 घंटे सेवाएं दे रहे हैं। वह पूर्व में भी कई बार सरकार से अपनी मांगें बता चुके हैं, लेकिन उनकी किसी भी समस्या का निदान अब तक नहीं हो सका है। लिहाजा, उनके पास हड़ताल के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा। उनकी मांग है कि 05 जून 2018 की नीति के अनुसार नियमित कर्मचारी के वेतनमान का न्यूनतम 90% भुगतान मिले और आउटसोर्सिंग एजेंसी में शामिल निष्कासित व सपोर्ट स्टाफ की तत्काल राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में वापसी कराई जाए।
अस्पतालों में पहले ही स्टाफ की कमी और अब हड़ताल की मार
संविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने से जिले के अस्पतालों में एक ही दिन में हाहाकार की स्थिति बन गई है। वैसे भी जिले में पहले से ही स्टाफ की कमी थी और अब सामूहिक हड़ताल की वजह से स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं। डिंडौरी जिला अस्पताल में कार्यरत 70 से अधिक संविदा स्वास्थ्य कर्मियों सहित जिलेभर के लगभग 350 कर्मचारियों की गैर-मौजूदगी आम नागरिकों के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है। गाड़ासरई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में मंगलवार को 11 साल की बेटी का इलाज कराने पहुंचे रामकुमार साहू ने बताया कि बिटिया तीन दिन से ठीक से सो नहीं पा रही है। उसे सांस लेने में तकलीफ है और हर दो-तीन घंटे में बुखार आ रहा है। वह करीब तीन घंटे तक OPD के आसपास घूमते रहे, लेकिन उन्हें मदद नहीं मिली। अंतत: एक मित्र के सहयोग से उन्होंने गांव में ही किसी अन्य डॉक्टर से बेटी की जांच करवाई। रामकुमार की तरह ऐसे कई नागरिक हैं, जिन्हें संविदा स्वास्थ्य कर्मियों की हड़ताल का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।