कल रात गढ़ा पुलिस ने मानवता का परिचय देते हुए एक शादी समारोह में विवाद करने वाली युवती को सकुशल सूपाताल स्थित एक परिसर पहुँचकर उसे उसके घर तक छोड़ा। उसे घर छोड़ने के लिए गढ़ा पुलिस की रात्रि गश्त टीम के आधा दर्जन पुलिसकर्मियों के साथ गढ़ा थाना प्रभारी राकेश तिवारी भी पहुँचे। उन्होंने कल रात हुए इस मामले की जानकारी देते हुए बताया कि वह महिला किसी वैवाहिक समारोह में घुस गई थी जहां उसकी किसी टिप्पणी से वहाँ विवाद की स्थिति पैदा हो गई थी। जिसकी सूचना मिलते ही रात्रि गश्त टीम उस महिला को महिला पुलिसकर्मी की मौजूदगी में घर छोड़ने पहुंची। जहां उन्हें उस महिला के परिवार से उसके मानसिक इलाज का पता चला। पुलिस ने उसके परिवार को समझाईश देकर महिला को उनके सुपुर्द कर दिया।
कोविड के समय भी कर चुकी है विवाद – परिसरवासियों के मुताबिक इसी महिला का एक विडिओ कोविड काल के समय गढ़ा बाज़ार में सार्वजनिक स्थल पर थूकते हुए वायरल हुआ था। जिसमें लोगों के समझाने पर वो लोगों से ही लड़ने लगी थी।
क्या कहते हैं महिला के परिसरवासी – परिसर की ही शिखा सक्सेना कहती हैं कि वे सुबह-सुबह पूजन के कार्य से शिव मंदिर जाती हैं लेकिन जब घर लौटती हैं तो सुबह-सुबह परिसर में न सिर्फ यह महिला बल्कि इसका परिवार प्रतिदिन जोर-जोर से शोर मचाकर आपस में लड़ता है और अकारण ही पड़ोसियों को अपशब्द कहने लगता है।
उसी परिसर की गीता वाधवानी जो सिलाई का कार्य करती हैं, वे बताती हैं कि अपने इस उद्यम से वे अपना घर चलती हैं। ऐसे में उनके परिसर में ही रहने वाली यह युवती आए दिन उनके ग्राहकों को मारने के धमकी देकर भगा देती हैं। इसकी शिकायत जब वो उस महिला के परिवार से करती हैं तो वे उनसे ही लड़ने लग जाते हैं।
परिसर के अन्य लोगों ने भी इस महिला और उसके परिवार के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इनकी वजह से यहाँ अशान्ति का माहौल बना रहता है। जिसकी शिकायत गढ़ा पुलिस के समक्ष लिखित में पहले भी की जा चुकी है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ – मनोवैज्ञानिक पायल चौरसिया बताती हैं कि कोई भी व्यक्ति जिन्हें कोई मानसिक परेशानी है तो एकदम शुरूआत में उसका इलाज सरलता से किया जा सकता है। लेकिन जब मानसिक परेशानी ज्यादा दिनों तक बनी रहती है तो वो मानसिक रोग का रूप धारण कर लेती है। और मानसिक रोग जितना पुराना होता जाता है उतना अधिक समय उसके इलाज में लगता है। जागरूकता की कमी चलते परिवार के ही लोग अपनों की मानसिक परेशानी को पहले अनदेखा कर देते हैं। बाद में जब उसका रूप बड़ा हो जाता है तो उसका खामियाज़ा परिवार और समाज को भुगतना पड़ता है। जबलपुर में ऐसी फेसिलिटी की बेहद आवश्यकता है जहां मानसिक रोगियों को विशेषज्ञों की देख-रेख में 24 घंटे इलाज दिया जा सके।