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मंगलवार, नवम्बर 26, 2024
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युधिष्ठिर को भीष्म पितामह ने बताया था यम द्वितीया का व्रत, पूजन और फल

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मनोवांछित फल, पुत्र प्राप्ति और पाप मुक्ति के लिए यम द्वितिया/ कार्तिक द्वितीया और भैया दूज पर श्री चित्रगुप्त जी की पढ़ी-सुनी जाने वाली पौराणिक कथा, धर्मराज सहित उनका पूजन और विधि पाठकों के लिए यहाँ दी जा रही है।

मंत्री श्री धर्मराजस्य चित्रगुप्त: शुभंकर: ।
पायान्मां सर्वपापेभ्य: शरणागत वत्सल: ॥

एक बार युधिष्ठिर भीष्म पितामह से बोले: हे पितामह! आपकी कृपा से मैंने धर्मशास्त्र सुने, परंतु यम द्वितीया का क्या पुण्य है? क्या फल है? यह मैं सुनना चाहता हूं। आप कृपा करके मुझे विस्तारपूर्वक कहिए।

पितामह: तुमने अच्छी बात पूछी। मैं उस उत्तम व्रत को विस्तारपूर्वक बताता हूं। कार्तिक मास के उजले और चैत्र के अंधेरे की पक्ष जो द्वितीया होती है, वह यम द्वितीया कहलाती है।

युधिष्ठिर: उस कार्तिक के उजले पक्ष की द्वितीया में किसका पूजन करना चाहिए और चैत्र महीने में यह व्रत कैसे हो? इसमें किसका पूजन करें?

पितामह: हे युधिष्ठिर! पुराण संबंधी कथा कहता हूं। इसमें संशय नहीं कि इस कथा को सुनकर प्राणी सब पापों से छूट जाता है। सतयुग में नारायण भगवान से, जिनकी नाभि में कमल है, उससे चार मुंह वाले ब्रह्माजी उत्पन्न हुए जिनसे वेदवेत्ता भगवान ने चारों वेद कहे।

नारायण: हे ब्रह्माजी! आप सबकी तुरीय अवस्था, रूप और योगियों की गति हो, मेरी आज्ञा से संपूर्ण जगत को शीघ्र रचो।

हरि के ऐसे वचन सुनकर हर्ष से प्रफुल्लित हुए ब्रह्माजी ने मुख से ब्राह्मणों को, बाहुओं से क्षत्रियों को, जंघाओं से वैश्यों को और पैरों से शूद्रों को उत्पन्न किया। उनके पीछे देव, गंधर्व, दानव, राक्षस, सर्प, नाग, जल के जीव, स्थल के जीव, नदी, पर्वत और वृक्ष आदि को पैदा कर मनुजी को पैदा किया। इनके बाद दक्ष प्रजापतिजी को पैदा किया और तब उनसे आगे और सृष्टि उत्पन्न करने को कहा। दक्ष प्रजापतिजी से 60 कन्याएं उत्पन्न हुईं जिनमें से 10 धर्मराज को, 13 कश्यप को और 27 चन्द्रमा को दीं।

कश्यपजी से देव, दानव, राक्षस इनके सिवाय और भी गंधर्व, पिशाच, गौ और पक्षियों की जातियां पैदा हुईं। धर्मराज को धर्म प्रधान जानकर सबके पितामह ब्रह्माजी ने उन्हें सब लोकों का अधिकार दिया और धर्मराज से कहा कि तुम आलस्य त्यागकर काम करो। जीवों ने जैसे-जैसे शुभ व अशुभ कर्म किए हैं, उसी प्रकार न्यायपूर्वक वेद शास्त्र में कही विधि के अनुसार कर्ता को कर्म का फल दो और सदा मेरी आज्ञा का पालन करो।

ब्रह्माजी की आज्ञा सुनकर बुद्धिमान धर्मराज ने हाथ जोड़कर सबके परम-पूज्य ब्रह्माजी को कहा: हे प्रभो! मैं आपका सेवक निवेदन करता हूं कि इस सारे जगत के कर्मों का विभागपूर्वक फल देने की जो आपने मुझे आज्ञा दी है, वह एक महान कर्म है। आपकी आज्ञा शिरोधार्य कर मैं यह काम करूंगा जिससे कि कर्ताओं को फल मिलेगा, परंतु पूरी सृष्टि में जीव और उनके देह भी अनंत हैं। देशकाल ज्ञात-अज्ञात आदि भेदों से कर्म भी अनंत हैं। उनमें कर्ता ने कितने किए, कितने भोगे, कितने शेष हैं और कैसा उनका भोग है तथा इन कर्मों के भी मुख्य व गौण भेद से अनेक हो जाते हैं एवं कर्ता ने कैसे किया, स्वयं किया या दूसरे की प्रेरणा से किया आदि कर्म चक्र महागहन हैं। अत: मैं अकेला किस प्रकार इस भार को उठा सकूंगा? इसलिए मुझे कोई ऐसा सहायक दीजिए, जो धार्मिक, न्यायी, बुद्धिमान, शीघ्रकारी, लेख कर्म में विज्ञ, चमत्कारी, तपस्वी, ब्रह्मनिष्ठ और वेद शास्त्र का ज्ञाता हो।

धर्मराज के इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक किए हुए कथन को विधाता सत्य जान मन में प्रसन्न हुए और यमराज का मनोरथ पूर्ण करने की चिंता करने लगे कि उक्त सब गुणों वाला ज्ञानी लेखक पुरुष होना चाहिए। उसके बिना धर्मराज का मनोरथ पूर्ण न होगा।

तब ब्रह्माजी ने कहा: हे धर्मराज! तुम्हारे अधिकार में मैं सहायता करूंगा।

इतना कह ब्रह्माजी ध्यानमग्न हो गए। उसी अवस्था में उन्होंने 1,000 वर्ष तक तपस्या की। जब समाधि खुली तब अपने सामने श्याम रंग, कमल नयन, शंख की-सी गर्दन, गूढ़ सिर, चन्द्रमा के समान मुख वाले, कलम-दवात और पानी हाथ में लिए हुए, महाबुद्धि, देवताओं का मान बढ़ाने वाला, धर्माधर्म के विचार में महाप्रवीण लेखक, कर्म में महाचतुर पुरुष को देख उससे पूछा कि तू कौन है?

तब उसने कहा: हे प्रभो! मैं माता-पिता को तो नहीं जानता किंतु आपके शरीर से प्रकट हुआ हूं इसलिए मेरा नामकरण कीजिए और कहिए कि मैं क्या करूं?

ब्रह्माजी ने उस पुरुष के वचन सुन अपने हृदय से उत्पन्न हुए उस पुरुष को हंसकर कहा: तू मेरी काया से प्रकट हुआ है इससे मेरी काया में तुम्हारी स्थिति है इसलिए तुम्हारा नाम कायस्थ चित्रगुप्त है। धर्मराज के पुर में प्राणियों के शुभाशुभ कर्म लिखने में उसका तू सखा बने इसलिए तेरी उत्पत्ति हुई है।

ब्रह्माजी ने चित्रगुप्त से यह कहकर धर्मराज से कहा: हे धर्मराज! यह उत्तम लेखक तुझको मैंने दिया है, जो संसार में सब कर्मसूत्र की मर्यादा पालने के लिए है। इतना कहकर ब्रह्माजी अंतर्ध्यान हो गए।

फिर वह पुरुष (चित्रगुप्त) कोटि नगर को जाकर चंड-प्रचंड ज्वालामुखी कालीजी के पूजन में लग गया। उपवास कर उसने भक्ति के साथ चंडिकाजी की भावना मन में की। उसने उत्तमता से चित्त लगाकर ज्वालामुखी देवी का जप और स्तोत्रों से भजन-पूजन और उपासना इस प्रकार की: हे जगत को धारण करने वाली, तुमको नमस्कार है महादेवी! तुमको नमस्कार है। स्वर्ग, मृत्यु, पाताल आदि लोक-लोकांतरों को रोशनी देने वाली, तुमको नमस्कार है। संध्या और रात्रि रूप भगवती, तुमको नमस्कार है। श्वेत वस्त्र धारण करने वाली सरस्वती, तुमको नमस्कार है। सत, रज, तमोगुण रूप देवगणों को कांति देने वाली देवी, हिमाचल पर्वत पर स्थापित आदिशक्ति चंडी देवी तुमको नमस्कार है।

उत्तम और न्यून गुणों से रहित वेद की प्रवृत्ति करने वाली, 33 कोटि देवताओं को प्रकट करने वाली त्रिगुण रूप, निर्गुण, गुणरहित, गुणों से परे, गुणों को देने वाली, 3 नेत्रों वाली, 3 प्रकार की मूर्ति वाली, साधकों को वर देने वाली, दैत्यों का नाश करने वाली, इन्द्रादि देवों को राज्य देने वाली, श्रीहरि से पूजित देवी हे चण्डिका! आप इन्द्रादि देवों को जैसे वरदान देती हैं, वैसे ही मुझको वरदान दीजिए। मैंने लोकों के अधिकार के लिए आपकी स्तुति की है, इसमें संशय नहीं है।

ऐसी स्तुति को सुन देवी ने चित्रगुप्तजी को वर दिया।

देवीजी बोलीं: हे चित्रगुप्त! तूने मेरा आराधन-पूजन किया, इसलिए मैं आज तुमको वर देती हूँ कि तू परोपकार में कुशल अपने अधिकार में सदा स्थिर और असंख्य वर्षों की आयु वाला होगा। यह वर देकर देवी दुर्गा अंतर्ध्यान हो गईं। उसके बाद चित्रगुप्त धर्मराज के साथ उनके स्थान पर गए और वे आराधना करने योग्य अपने आसन पर स्थित हुए।

उसी समय ऋषियों में उत्तम ऋषि सुशर्मा, जिसको संतान की चाहना थी, ने ब्रह्माजी का आराधन किया। तब ब्रह्माजी ने प्रसन्नता से उसकी इरावती नाम की कन्या को पाकर चित्रगुप्त के साथ उसका विवाह किया। उस कन्या से चित्रगुप्त के 8 पुत्र उत्पन्न हुए, जिनके नाम ये हैं: चारु, सुचारु, चित्र, मतिमान, हिमवान, चित्रचारु, अरुण और 8वां अतीन्द्रिय। दूसरी जो मनु की कन्या दक्षिणा चित्रगुप्त से विवाही गई, उसके 4 पुत्र हुए। उनके भी नाम सुनो: भानु, विभानु, विश्वभानु और वीर्य्यावान्‌। चित्रगुप्त के ये 12 पुत्र विख्यात हुए और पृथ्वी-तल पर विचरे।

उनमें से चारु मथुराजी को गए और वहां रहने से मथुरा हुए। हे राजन्‌, सुचारु गौड़ बंगाले को गए, इससे वे गौड़ हुए। चित्रभट्ट नदी के पास के नगर को गए, इससे वे भट्टनागर कहलाए। श्रीवास नगर में भानु बसे, इससे वे श्रीवास्तव्य कहलाए। हिमवान अम्बा दुर्गाजी की आराधन कर अम्बा नगर में ठहरे, इससे वे अम्बष्ट कहलाए। सखसेन नगर में अपनी भार्या के साथ मतिमान गए, इससे वे सूर्यध्वज कहलाए और अनेक स्थानों में बसे अनेक जाति कहलाए।

उस समय पृथ्वी पर एक राजा जिसका नाम सौदास था, सौराष्ट्र नगर में उत्पन्न हुआ। वह महापापी, पराया धन चुराने वाला, पराई स्त्रियों में आसक्त, महाअभिमानी, चुगलखोर और पाप कर्म करने वाला था। हे राजन्‌! जन्म से लेकर सारी आयुपर्यन्त उसने कुछ भी धर्म नहीं किया। किसी समय वह राजा अपनी सेना लेकर उस वन में, जहां बहुत हिरण आदि जीव रहते थे, शिकार खेलने गया। वहां उसने निरंतर व्रत करते हुए एक ब्राह्मण को देखा। वह ब्राह्मण चित्रगुप्त और यमराजजी का पूजन कर रहा था।

यम द्वितीया का दिन था। राजा ने पूछा: महाराज! आप क्या कर रहे हैं? ब्राह्मण ने यम द्वितीया व्रत कह सुनाया। यह सुनकर राजा ने वहीं उसी दिन कार्तिक के महीने में शुक्ल पक्ष की द्वितीया को धूप तथा दीपादि सामग्री से चित्रगुप्तजी के साथ धर्मराजजी का पूजन किया। व्रत करके उसके बाद वह अपने घर में आया। कुछ दिन पीछे उसके मन को विस्मरण हुआ और वह व्रत भूल गया। याद आने पर उसने फिर से व्रत किया।

समयोपरांत काल संयोग से वह राजा सौदास मर गया। यमदूतों ने उसे दृढ़ता से बांधकर यमराजजी के पास पहुंचाया। यमराजजी ने उस घबराते हुए मन वाले राजा को अपने दूतों से पिटते हुए देखा तो चित्रगुप्तजी से पूछा कि इस राजा ने क्या कर्म किया? उस समय धर्मराजजी का वचन सुन चित्रगुप्तजी बोले: इसने बहुत ही दुष्कर्म किए हैं, परंतु दैवयोग से एक व्रत किया, जो कार्तिक के शुक्ल पक्ष में यम द्वितीया होती है, उस दिन आपका और मेरा गंध, चंदन, फूल आदि सामग्री से एक बार भोजन के नियम से और रात्रि में जागने से पूजन किया। हे देव! हे महाराज! इस कारण से यह राजा नरक में डालने योग्य नहीं है। चित्रगुप्तजी के ऐसा कहने से धर्मराजजी ने उसे छुड़ा दिया और वह इस यम द्वितीया के व्रत के प्रभाव से उत्तम गति को प्राप्त हुआ।

ऐसा सुनकर राजा युधिष्ठिर पितामह से बोले: हे पितामह! इस व्रत में मनुष्यों को धर्मराज और चित्रगुप्तजी का पूजन कैसे करना चाहिए? सो मुझे कहिए।

पितामह: यम द्वितीया के विधान को सुनो। एक पवित्र स्थान पर धर्मराज और चित्रगुप्तजी की मूर्ति बनाएं और उनकी पूजा की कल्पना करें। वहां उन दोनों की प्रतिष्ठा कर क्रमशः 16 प्रकार व 5 प्रकार की सामग्री से श्रद्धा-भक्तियुक्त नाना प्रकार के पकवानों, लड्डुओं, फल, फूल, पान तथा दक्षिणादि सामग्रियों से धर्मराजजी और चित्रगुप्तजी का पूजन करना चाहिए। बारंबार नमस्कार करें। हे धर्मराज जी! आपको नमस्कार है। हे चित्रगुप्तजी! आपको नमस्कार है। पुत्र दीजिए, धन दीजिए सब मनोरथों को पूरे कर दीजिए। इस प्रकार चित्रगुप्तजी के साथ श्री धर्मराजजी का पूजन कर विधि से दवात और कलम की पूजा करें। चंदन, कपूर, अगर और नैवेद्य, पान, दक्षिणादि सामग्रियों से पूजन करें और कथा सुनें। बहन के घर भोजन कर उसके लिए धन आदि पदार्थ दें। इस प्रकार भक्ति के साथ यम द्वितीया का व्रत करने वाला पुत्रों से युक्त होता है और मनोवांछित फलों को पाता है।

(अस्वीकरण: यह पौराणिक कथा श्रुतियों, मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। प्राथमिक मीडिया किसी भी तरह की श्रुतियों, मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह अवश्य ले लें।)

व्हाट्सएप का सर्वर पड़ा ठप्प यूज़र होते रहे परेशान

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दिवाली के दूसरे दिन जब लोग एक-दूसरे को गोवर्धन पूजा के मेसेजस व्हाट्सएप पर फ़ॉरवर्ड कर रहे थे, तभी अचानक 12:30 बजे के लगभग व्हाट्सएप पर मेसेजस जाना बंद हो गए। जिसके बाद यूज़र्स ने अपना इंटरनेट कनेक्शन और डेटा कनेक्शन चेक करना शुरू कर दिया। कुछ ने इसके बाद तो व्हाट्सएप रिइंस्टॉल भी करके देखा। लेकिन परेशानी से छुटकारा न मिल सका। कुछ ही देर में यह स्पष्ट हो गया कि ये उनके फोन या नेट कनेक्शन की वजह से नहीं हो रहा है। बल्कि देश भर में व्हाट्सएप उसे दौरान डाउन हो गया। जिससे मेसेजेस का आदान-प्रदान रुक गया। साथ ही व्हाट्सएप कॉल फीचर ने भी काम करना बंद कर दिया। इससे यूजर्स को दिक्कतों का सामना करना पड़ा। कुछ देर बाद सर्वर ठप्प पड़ने की जानकारी मेटा कंपनी द्वारा सार्वजनिक रूप से जारी की गई। जिसमें कहा गया कि भारत में कुछ लोगों को फिलहाल संदेश भेजने में परेशानी आ रही है। हम सभी के लिए सेवाएं, जितनी जल्दी हो बहाल करने में जुटे हैं। एंड्रॉयड, आईओएस और वेब तीनों ही वर्जन के यूज़र्स ने इस दिक्कत का सामना किया। परेशान यूज़र्स ट्विटर पर भी शिकायत करते रहे कि न उन्हें किसी का मैसेज मिल रहा है और न ही वह किसी को मैसेज कर पा रहे हैं। इस दौरान ट्विटर पर “वॉट्सऐप डाउन” ट्रेंड करता रहा। अभी तक व्हाट्सएप के भारत में डाउन होने के किसी कारण का खुलासा नहीं हो पाया है।

“कांतारा” – गाँव का लेजेंड जिसने केजीएफ 2 का रेकॉर्ड तोड़ दिया

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हो सकता है आपने इस फिल्म का नाम सुन हो, न्यूज़ में पढ़ा भी हो और फिर ट्रेलर देखा हो। वैसे फिल्म के ट्रेलर में जंगल और गाँव देखकर लोग इसे इन्सान बनाम कुदरत के बारे में समझते हैं। लेकिन ट्रेलर में और भी चीज़ों को सिर्फ छूकर निकला गया है। ट्रेलर की यही खासियत भी होती है कि वो फिल्म के बारे में कुछ सवाल छोड़ जाता है। जब आप फिल्म देखते हैं तो पता चलता है कि फिल्म विश्वास, आस्था, लालच और व्यवस्था की कहानी है। जिसमें एक लोकल लेजेंड भी शामिल है। दर्शक इसे मार्वल के वकाँडा से जोड़कर देखेंगे लेकिन इस तरह के लेजेंड्स गाँव में बहुत पहले से पाए जाते रहे हैं। हर गाँव में दूल्हा देव या गाँव के देवटों का स्थान होता है जो आपदाओं से गाँव की रक्षा करते हैं। ये हमारे पूर्वजों की आस्था रही है और गाँव में इससे जुड़ी कहानियाँ भी सुनने को मिलती हैं।

इस फिल्म में भी ऐसी ही कुछ कहानी है। जिसमें गांव वालों का रक्षक “देव” है, जिस पर उनकी अटूट आस्था है। जिसने राजा के वचन से मिली ज़मीन उन्हें रहने को दी है लेकिन आज उसी राजा के वंशज उस जमीन हड़पना चाहते हैं। आपने देखा होगा कि नवरात्रि या जँवारे विसर्जन के समय लोगों को “भाव” आते हैं। ऐसा माना जाता है कि उनमें देवी या देवता का अंश आता है। इसी तरह का वाक़या फिल्म में है जहां देवता लोगों से बात करता है। अब वो क्या बात है और उसका क्या अंजाम है उसके लिए आपको फिल्म जरूर देखना ही चाहिए। फिल्म के कुछ दृश आपको डरा सकते हैं और कुछ हमेशा के लिए आपके दिमाग में रच बस जाएंगे। फिल्म में लीड रोल में ऋषभ शेट्टी हैं, उन्होंने ही फिल्म लिखी और निर्देशित भी की है।

फिल्म की पटकथा का चित्रण और आर्ट डायरेक्शन आपको हिन्दी फिल्म तुम्बाड़ की याद दिला सकता है। दिवाली की छुट्टियों में कुछ नया देखना चाहते हैं तो “कांतरा” आपके लिए है। जिसकी कहानी आपको अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर लेकर जाएगी। फिल्म का बीजीएम, सिनेमोटोग्रोफी और एक्टिंग ज़बरदस्त है।

बाक़ी स्टार और रेटिंग देना आपका काम है। फिल्म को भी और हमारे रिव्यू को भी। फिल्म का ट्रेलर आपको गूगल न करना पड़े इसलिए उसे यहाँ देख लीजिए। वैसे कांतरा ने कर्नाटक में केजीएफ 2 के रिकार्ड को तोड़ दिया है। केजीएफ 2 को पछाड़कर कांतरा कर्नाटक में सबसे ज्यादा देखी जाने वाली फिल्म बन गई है। फिल्म में दिखाए गए “देव नर्तक” का प्रभाव कर्नाटक सरकार पर ऐसा पड़ा कि उन्होंने ऐसे वास्तविक कलाकारों के लिए 2000 रुपये मासिक भत्ता देने का ऐलान भी कर दिया।

कल दिवाली आज सूर्यग्रहण, फिर पाँच साल बाद ही मिलेगा मौका! देखें या नहीं?

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आज इस साल का अंतिम सूर्य ग्रहण होगा। ये दुर्लभ संयोग है कि दिवाली के अगले दिन ही सूर्यग्रहण हो रहा है। करीब 27 साल पहले यह खगोलीय घटना 24 अक्टूबर 1995 को दिवाली के दूसरे दिन हुई थी। मध्यप्रदेश में ग्रहण शाम करीब साढ़े 4 बजे शुरू होकर शाम करीब साढ़े 5 बजे समाप्त होगा। प्रदेश में ग्रहण शुरुआत में तो नजर आएगा लेकिन सूर्यास्त होने के कारण पूरा नजारा नहीं दिखेगा। प्रदेश भर में सूर्य ग्रहण 30% से ज्यादा हो जाएगा। अगर इस बार यह घटना देखने से चूक जाते हैं तो फिर 5 साल बाद 2027 अगला सूर्यग्रहण देखने मिलेगा।

विशेषज्ञों के मुताबिक ये आंशिक सूर्यग्रहण भारत में सूर्यास्त के पहले दोपहर में शुरू होगा। इसे अधिकांश जगह से देखा जा सकेगा। हालांकि अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और उत्तर-पूर्व भारत के कुछ हिस्से में नहीं दिखाई देगा।

मध्यप्रदेश में शाम करीब 4 बजकर 42 मिनट से शाम 5 बजकर 38 मिनट तक ग्रहण नजर आएगा। इस दौरान चांद प्रदेश भर में सूर्य के 32% से ज्यादा हिस्से को ढँक लेगा। सूर्यास्त की वजह से ग्रहण का अंत प्रदेश भर में कहीं भी दिखाई नहीं देगा। भारत में उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में अधिकतम ग्रहण के समय चंद्रमा लगभग सूर्य के 40 से 50% के बीच होगा।

दिल्ली-मुंबई में अधिकतम ग्रहण के समय चंद्रमा द्वारा सूर्य ग्रहण का प्रतिशत क्रमशः करीब 44% व 24% होगा। यहां ग्रहण की अवधि क्रमश: 1 घंटे 13 मिनट और 1 घंटे 19 मिनट होगी। चेन्नई और कोलकाता में ग्रहण की अवधि क्रमश: 31 मिनट और 12 मिनट की होगी। ग्रहण यूरोप, मध्य पूर्व अफ्रीका के उत्तर-पूर्वी हिस्सों, पश्चिमी एशिया, उत्तर अटलांटिक महासागर और उत्तर हिंद महासागर के क्षेत्रों में भी दिखाई देगा।

इस कारण होता है: अमावस्या को सूर्य ग्रहण तब घटित होता है जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आ जाता है। यानि जब ये तीनों एक सीध में आ जाते हैं। आंशिक सूर्य ग्रहण तब घटित होता है जब चन्द्र चक्रिका सूर्य चक्रिका को आंशिक रूप से ही ढंक पाती है।

संभलकर देखें ग्रहण: सूर्य ग्रहण को थोड़ी देर के लिए भी नंगी आंखों से नहीं देखना चाहिए। जब चंद्रमा सूर्य के अधिकतम हिस्सों को ढंक दे तब भी इसे नंगी आंखों से न देखें क्योंकि यह आंखों को स्थाई नुकसान पहुंचा सकता है। इससे अंधापन हो सकता है। सूर्य ग्रहण को देखने की सबसे सही तकनीक है एल्युमिनी माइसर, काले पॉलिमर 14 नंबर शेड के लाईदार कांच का उपयोग कर और टेलीस्कोप के माध्यम से सफेद पटल पर सूर्य की छाया को देख सकते हैं।

ज्योतिर्विद वास्तु दैवज्ञ पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री के मुताबिक यह ग्रहण 25 अक्टूबर 2022 को कार्तिक अमावस्या मंगलवार के दिन दिखाई देगा। यह सूर्यग्रहण भूलोक पर दोपहर 02 बजकर 29 मिंट पर शुरू होगा और शाम 06 बजकर 32 पर समाप्त होगा। पूर्वी भारत को छोड़कर यह ग्रहण भारत में सवर्त्र दिखाई देगा। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह ग्रहण स्वाति नक्षत्र, प्रीति योग और तुला राशि में घटित होगा।

ज्योतिष में इस सूर्य ग्रहण को समझे: भारतीय 25 अक्टूबर 2022 ई. का ग्रहण इस प्रकार रहेगा।

ग्रहण (प्रारंभ) शाम 04 बजकर 17 मिनट से

परमग्रास (मध्य) शाम 05 बजकर 23 मिनट पर

ग्रहण समाप्त शाम  05 बजे 44 मिनट पर

ग्रहण का सूतक काल 25 अक्टूबर 2022 सुबह सूर्योदय से पहले सुबह 4 बजकर 30 मिनट पर शुरू होगा।

ग्रहण का फल: देश में चोरी से तथा अग्निकांड का भय होगा। साधुजनों, व्यापारी वर्ग को कष्ट एवं हानि होगी, मंत्री मंडल तालमेल का अभाव होगा। कुछ फसलों के मूल्यों में वृद्धि होगी। सीमाओं पर अशांति होगी। भारत के अलावा यूरोप, मध्य पूर्वी तथा उत्तरी अफ्रीका, पश्चिमी एशिया तथा उतरी हिन्द महासागर में दिखाई देगा।

ग्रहण का राशियों प्रभाव

मेष:- पति/स्त्री को कष्ट होगा।

वृष:- कष्ट, रोग एवं गुप्त चिंता होगी।

मिथुन :-  कार्यों में देरी होगी एवं खर्च अधिक होगा।

कर्क :- कार्यों में सफलता प्राप्त होगी।

सिंह :- उन्नति होगी एवं धन लाभ होगा।

कन्या :- धन हानि होगी।

तुला :- दुर्घटना, चोटभय एवं चिन्ता।

वृश्चिक :- धन की हानि होगी।

धनु :- सफलता प्राप्त होगी एवं उन्नति होगी।

मकर :- चिन्ता ,कष्ट एवं रोग भय।

कुंभ :- संतान संबंधी गुप्त चिंता होगी एवं कार्यों में देरी होगी।

मीन :- शत्रु भय एवं साधारण लाभ होगा।

ग्रहण और सूतककाल के समय ये न करें: ग्रहण के सूतक और ग्रहणकाल के दौरान कुछ कार्यों को न करे, ग्रहण काल में सबसे ज्यादा सावधानी गर्भवती महिलाओं को रखनी चाहिए, इस दौरान वे सबसे ज्यादा संवेदनशील होती हैं और गर्भस्थ शिशु पर ग्रहण काल का असर विपरीत पड़ सकता है। आइए जानें कि गर्भवती महिलाएं क्या सावधानी बरतें, गर्भवती महिलाएं ग्रहण काल में एक नारियल अपने पास रखें। इससे गर्भवती महिला पर वायुमंडल से निकलने वाली नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव नहीं पड़ेगा, गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, शरीर पर तेल ना लगाय,बा ल न बांधे, दांत साफ ना करें, घर से बाहर न निकलें ग्रहण के समय भोजन करना,  भोजन पकाना, सोना नहीं चाहिए, सब्जी काटना, सीना-पिरोना आदि से बचना चाहिए, उन पर सूर्य की छाया बिलकुल न पड़े इस बात का ध्यान रखें, नाखुन ना काटे, बाल ना काटे, भोजन न करें, सहवास न करें, झूठ न बोलें, निद्रा का त्याग करें, मल,मूत्र न करे, चोरी न करें, गाय-भैंस का दूध नहीं निकालना चाहिए, किसी भी प्रकार के पाप कर्म से दूर रहें और ग्रहण काल में अपने इष्टदेव, शिव या गायत्री मंत्र का जाप करते रहें। ग्रहण के प्रभाव के चलते सूतक काल से ही मंदिरों के कपाट बंद रहेंगे। ग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है उतने वर्षों तक अरुंतुद नरक में वास करता है। घर में रखे हुए पानी में कुशा डाल देनी चाहिए,  इससे पानी एवं दूषित नहीं होता है, कुशा न हो तो तुलसी का पौधा शास्त्रों के अनुसार पवित्र माना गया है। वैज्ञानिक रूप से भी यह सक्षम है, इसमें मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट आसपास मौजूद दूषित कणों को मार देते हैं। इसलिए खाद्य पदार्थ में डालने से उस भोजन पर ग्रहण का असर नहीं होता।

ग्रहण के समय पति और पत्नी को शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहिए। इस दौरान यदि गर्भ ठहर गया तो संतान विकलांग या मानसिक रूप से विक्षिप्त तक हो सकती है। ग्रहण काल में स्नान, दान, जप, तप, पूजा पाठ, मन्त्र, तीर्थ स्नान, ध्यान, हवनादि करना बहुत लाभकारी रहता है। सूर्य के शुभ प्रभाव प्राप्त करने हेतु सूर्य के वैदिक मंत्र का ज्यादा से ज्यादा जप करना चाहिए। शनि की साढ़े साती या ढईया का प्रभाव होने पर अधिक से अधिक ” ॐ शं शनिचराये नम:” शनि मंत्र का जाप करें, हनुमान जी के मन्त्र एवं हनुमान चालीसा का भी पाठ करें। ग्रहण के नकारात्मक प्रभाव से घर को बचाने के लिए ग्रहण से एक दिन पहले घर के मुख्य द्वार पर सिंदूर में घी मिलाकर ॐ या स्वास्तिक का चिह्न बनाये ।

घर को ग्रहण की नकारात्मकता से बचाने के उपाय: बाजार में गमलो को रंगने के लिए रंगोली बनाने के लिए गेरू मिलता है। ग्रहण से पहले घर के मुख्य द्वार के पास , घर की छत पर एवं घर के आँगन में गेरु के टुकड़े बिखेर दें, और ग्रहण के बाद इसे झाड़ू से बटोर कर घर के बाहर फेंक दे। इस उपाय से घर पर ग्रहण का नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। सूर्यग्रहण मोक्ष होने पर सोलह प्रकार के दान, जैसे अन्न, जल, वस्त्र, फल, दूध, मीठा, स्वर्ण, सूर्य से संबंधित लाल वस्तुएं जैसे तांबा,लाल कपड़ा,राजमाश,गुड़, लाल चंदन,लाल फूल अर्क की लकड़ी, आदि का दान जो भी संभव हो सभी मनुष्यों को अवश्य ही करना चाहिए।

ग्रहण के समय राशि अनुसार करें दान, मिलेगा लाभ:

मेष राशि के लोगों को गुड़, मूंगफली, तिल,तांबा की वस्तु, दही का दान देना चाहिए।

वृषभ राशि के लोगों के लिए सफेद कपड़े,चांदी और तिल का दान  करना उपयुक्त रहेगा।

मिथुन राशि के लोग मूंग दाल, चावल,पीला वस्त्र, गुड़ और कंबल का दान करें।

कर्क राशि के लोगों के लिए चांदी, चावल, सफेद ऊन, तिल और सफेद वस्त्र का दान देना उचित है।

सिंह राशि के लोगों को तांबा,गुड़, गेंहू,गौमाता का घी, सोने और मोती दान करने चाहिए।

कन्या राशि के लोगों को चावल, हरे मूंग या हरे कपड़े का दान देना चाहिए।

तुला राशि के जातकों को हीरे, चीनी या कंबल,गुड़, सात तरह के अनाज का देना चाहिए।

वृश्चिक राशि के लोगों को मूंगा, लाल कपड़ा,लाल वस्त्र, दही और तिल दान करना चाहिए।

धनु राशि के जातकों को वस्‍त्र, चावल, तिल,पीला वस्त्र और गुड़ का दान करना चाहिए।

मकर राशि के लोगों को गुड़,कंबल, और तिल दान करने चाहिए।

कुंभ राशि के जातकों के लिए काला कपड़ा, काली उड़द, खिचड़ी,कंबल, घी और तिल का दान चाहिए।

मीन राशि के लोगों को रेशमी कपड़ा, चने की दाल, चावल,चना दाल और तिल दान देने चाहिए।

पूर्ण चंद्र ग्रहण नवंबर में: अगला ग्रहण पूर्ण चंद्र ग्रहण है जो भारत से दिखाई देगा। यह 8 नवंबर  2022, मंगलवार को होगा। यह चंद्रोदय के समय भारत के सभी स्थानों से दिखाई देगा।

अगला सूर्य ग्रहण 2027 में: भारत में अगला सूर्य ग्रहण करीब 5 साल बाद यानी 2 अगस्त 2027 में नजर आएगा। वह पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा जो देश के सभी हिस्सों से आंशिक सूर्य ग्रहण के रूप में नजर आएगा।

(अस्वीकरण: ज्योतिष से संबंधित सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। प्राथमिक मीडिया किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।)

दर्पण रोटी बैंक ने जरूरमंदों को बांटे कपड़े और उपहार

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कल दीपवाली की पूर्व संध्या पर जबलपुर की कई समाजसेवी संस्थाएँ जरूरतमंदों के साथ दिवाली की खुशियां बाँटते हुए नज़र आईं। इसी तारतम्य में दर्पण रोटी बैंक ने भी छोटी दीपावली के अवसर पर आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की बस्तियों के के साथ गली-चौराहे और विक्टोरिया हॉस्पिटल जाकर भोजन के साथ-साथ दीपावली उपहार वितरण किये। दपर्ण रोटी बैंक की प्रिंसी जैन ने बताया कि कार्यक्रम में मुख्यअथिति के रूप में अपर कलेक्टर नमः शिवाय अर्जरिया, तहसीलदार राजेश पटेल और सुनीता उपस्थित रहे। साथ ही युवा शक्ति के रूप में अखिल भारतीय जैन नवयुविका की गर्ल्स टीम के साथ-साथ समाजसेवी नलिनी कुबेर, पूजा पटेल, नंदनी, नैना, अंजली, साक्षी, रूपाली जैन, अंकित जैन, यश जैन, मोहक आदि मौजूद रहे।

चाट-फुल्की और हाथ ठेलों से बिकने वाली खाद्य सामग्री पर लगा प्रतिबंध

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मंडला, त्योहारों के अवसर पर हाट-बाजारों में चाट-फुलकी के ठेलों में खाद्य सामग्रियों के रख-रखाव और परोसते समय साफ-सफाई पर ध्यान नहीं दिया जाता है। इससे चाट-फुलकी का सेवन करने वालों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है। पिछले दिनों मंडला और चिरईडोंगरी में पानीपुरी(फुल्की) के सेवन से 80 लोगों को उल्टी-दस्त की शिकायत भी हुई। जिससे उनका इलाज जिला अस्पताल मंडला में चल रहा है। इन परिस्थितियों के मद्देनजर अपर कलेक्टर मीना मसराम ने 23 अक्टूबर को सम्पूर्ण मंडला ज़िले में चाट-फुल्की लगाने वाली दुकानों और हाथ ठेलों को उनकी गुणवत्ता की जांच पूरी होने तक इस तरह की खाद्य सामग्रियों का विक्रय प्रतिबंधित कर दिया है। इसके लिए उन्होंने लिखित में आदेश भी जारी किया है।

जानिए दिवाली में भिन्न-भिन्न प्रयोजन के लिए पूजा के अलग-अलग मुहूर्त

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दिवाली के दिन लोग देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के उद्देश्य से पूजन करते हैं। लेकिन बहुत से लोग इस दिन का उपयोग विशेष सिद्धि पाने या तंत्र साधना के लिए भी करते हैं। आप अपने प्रयोजन के अनुसार पूजा का मुहूर्त चुनकर उस समय पूजा करें। ताकि आपको अपने प्रयोजन की पूर्ति में सफलता मिल सके।

आज कार्तिक अमावस्या को प्रदोष काल शाम 5 बजकर 43 मिनट से शुरू होगा। इस समय चर चौघड़िया रहेगा जो शाम में 7 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। उसके बाद रोग चौघड़िया लग जाएगा। शाम में मेष लग्न 6 बजकर 53 मिनट तक है। ऐसे में स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए स्थिर लग्न में शाम 6 बजकर 53 मिनट से 7 बजकर 30 मिनट से पहले गृहस्थ जनों को देवी लक्ष्मी की पूजा आरंभ कर लेनी चाहिए।

निशीथ काल में दीपावली पूजा: जो लोग प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन नहीं कर पाते हैं या विशेष सिद्धि के लिए लक्ष्मी पूजन करना चाहते हैं वह दीपावली की रात में निशीथ काल में 8 बजकर 19 मिनट से रात 10 बजकर 55 मिनट के बीच पूजा कर सकते हैं।

महानिशीथ काल में दीपावली पूजा: महानिशीथ काल में दीपावली की साधना साधक लोग करते हैं। तंत्र साधना के लिए यह समय अति उत्तम रहेगा। रात 10 बजकर 55 मिनट से रात 1 बजकर 31 मिनट महानिशीथ काल में तंत्रोक्त विधि से दीपावली पूजन किया जा सकता है।

हेल्पिंग हैंड्स एम.पी.20 टीम ने बच्‍चों के साथ मिलकर मनाया दीपोत्सव

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दीपावली के पावन अवसर पर देश में जगह-जगह पर दीपावली का पर्व मनाया गया । इस पावन मौके पर संस्‍कारधानी जबलपुर में हेल्पिंग हैंड्स एम.पी.20 टीम द्वारा तिलवारा घाट व अन्‍य जगह पर बच्‍चों को पटाखे मिठाई व कपड़े वितरित कर दिवाली मनाई गई । हेल्पिंग हैंड्स एम.पी.20 टीम द्वारा बच्‍चों व जरूरतमंदो के साथ हर त्‍यौहार बनाकर खुशियां बांटते हैं यह टीम लगभग 3 वर्षो से लगातार जरूरतमंदों की मदद कर रही है । इस टीम के प्रमुख सदस्‍य अभय द्विवेदी, पुष्‍पराज सिंह कुशवाहा, संतोष द्विवेदी, सांराश राजपूत, देवराज राजपूत, शिवम मरावी, दीपिका, नीलम, राम, प्रवीण ,अक्षत आदि उपस्थित रहे ।

दिवाली पूजा की टू डू लिस्ट में कहीं कुछ छूटा तो नहीं? यहाँ चेक करें

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भारतीय परिवारों में दिवाली के दिन भी कुछ न कुछ काम चलते रहते हैं। ऐसे में भागमभाग के चलते पूजन के समय ज़रूरी चीजें छूट जाती हैं। जो बाद में मन में खटकती रहती हैं। आपके साथ ये स्थिति न हो इसलिए कुछ ज़रूरी तैयारियां और चीजें यहाँ दी जा रही हैं।

ज़रूरी है लिपाई-पुताई: वर्षा के कारण गंदगी होने के बाद संपूर्ण घर की सफाई और लिपाई-पुताई करना जरूरी होता है। मान्यता के अनुसार जहां ज्यादा साफ-सफाई और साफ-सुथरे लोग नजर आते हैं, वहीं लक्ष्मी निवास करती हैं। किसी कारणवश यदि लिपाई-पुताई न कर पाए हों तो पूजा के कमरे में पोछा लगाकर ही पूजन की तैयारी करें।

वंदनवार: आम या पीपल के नए कोमल पत्तों की माला को वंदनवार कहा जाता है। इसे अक्सर शुभ कार्यों के समय द्वार पर बांधा जाता है। दीपावली के दिन भी द्वार पर इसे बांधना चाहिए। वंदनवार इस बात का प्रतीक है कि देवगण इन पत्तों की भीनी-भीनी सुगंध से आकर्षित होकर घर में प्रवेश करते हैं।

रंगोली: रंगोली या मांडना को ‘चौंसठ कलाओं’ में स्थान प्राप्त है। उत्सव-पर्व तथा अनेकानेक मांगलिक अवसरों पर रंगोली से घर-आंगन को खूबसूरती के साथ अलंकृत किया जाता है। इससे घर-परिवार में मंगल रहता है।

दीपक: पारंपरिक दीपक मिट्टी का ही होता है। इसमें 5 तत्व हैं- मिट्टी, आकाश, जल, अग्नि और वायु। हिन्दू अनुष्ठान में पंच तत्वों की उपस्थिति अनिवार्य होती है।

चांदी का ठोस हाथी: विष्णु तथा लक्ष्‍मी को हाथी प्रिय रहा है इसीलिए घर में ठोस चांदी या सोने का हाथी रखना चाहिए। ठोस चांदी के हाथी के घर में रखे होने से शांति रहती है और यह राहू के किसी भी प्रकार के बुरे प्रभाव को होने से रोकता है।

कौड़ियां: पीली कौड़ी को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। कुछ सफेद कौड़ियों को केसर या हल्दी के घोल में भिगोकर उसे लाल कपड़े में बांधकर घर में स्थित तिजोरी में रखें। ये कौड़ियां धनलक्ष्मी को आकर्षित करती हैं।

चांदी की गढ़वी: चांदी का एक छोटा-सा घड़ा, जिसमें 10-12 तांबे, चांदी, पीतल या कांसे के सिक्के रख सकते हैं, उसे गढ़वी कहते हैं। इसे घर की तिजोरी या किसी सुरक्षित स्थान पर रखने से धन और समृद्धि बढ़ती है। दीपावली पूजन में इसकी भी पूजा होती है।

मंगल कलश: एक कांस्य या ताम्र कलश में जल भरकर उसमें कुछ आम के पत्ते डालकर उसके मुख पर नारियल रखा होता है। कलश पर रोली, स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर उसके गले पर मौली बांधी जाती है।

पूजा-आराधना:  दीपावली पूजा की शुरुआत धन्वंतरि पूजा से होती है। दूसरा दिन यम, कृष्ण और काली की पूजा होती है। तीसरे दिन लक्ष्मी माता के साथ गणेशजी की पूजा होती है। चौथे दिन गोवर्धन पूजा होती है और अंत में पांचवें दिन भाईदूज या यम द्वीतिया मनाई जाती है।

मजेदार पकवान: दीपावली के 5 दिनी उत्सव के दौरान पारंपरिक व्यंजन और मिठाई बनाई जाती है। हर प्रांत में अलग-अलग पकवान बनते हैं। उत्तर भारत में ज्यादातर गुझिये, शकरपारे, चटपटा पोहा चिवड़ा, चकली आदि बनाते हैं। इस दिन पूजन के पश्चात भगवान को घर में बने पकवानों या भोजन का भोग लगाकर ही परिवार सहित भोजन ग्रहण करें।

ज्योतिर्विद् वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 9993874848

(अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं जिनकी पुष्टि प्राथमिक मीडिया नहीं करता है, कृपया अपने बुद्धि-विवेक से इनका अनुसरण करें। लेखक से संपर्क करने के पश्चात उनके द्वारा सुझाए गए किसी भी उपाय या दी गई सलाह या अन्य किसी लेन-देन के लिए प्राथमिक मीडिया उत्तरदायी नहीं होगा।)

वोकल फॉर लोकल को प्रोत्साहित कर स्थानीय कारीगरों से खरीदे 51 हज़ार दीपों से जगमगाया नर्मदा का ग्वारीघाट तट

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भारत विश्वाकर्षण का केंद्र बन रहा है, माँ नर्मदा के तट पर बसे जाबालि ऋषि की तपोभूमि के साथ ही देश के मध्य में बसा हमारा जबलपुर देश भर में आकर्षण का केंद्र बने और जिसकी सबसे बड़ी ताकत हमारी सांस्कृतिक विरासत है। यह इच्छा साँसद राकेश सिंह नर्मदा के ग्वारीघात तट पर “नर्मदा तट में एक दीप – जबलपुर की समृद्धि के नाम” कार्यक्रम में व्यक्त की।

यह कार्यक्रम संतजनों की उपस्थिति में दीपावली की पूर्व संध्या साँसद राकेश सिंह के आह्वान पर 51 हजार दीपों को प्रज्वलित कर किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत नर्मदा आरती और अष्टक के साथ की गई। जिसके बाद शंखनाद और फिर स्वस्तिवाचन के साथ दीप प्रज्वलित किये गए। जिसमें नर्मदा तट ग्वारीघाट के आठों घाट जिनमें सिद्ध घाट, उमा घाट, नाग मंदिर घाट, पंडा घाट, नाव घाट, महिला घाट, दरोगा घाट, श्रीबाबाश्री घाट के साथ ही दूसरी ओर गुरुद्वारा के सामने के घाट में भी दीप प्रज्वलित किये गए। इसके बाद उपस्थित संतजनों का पूजन और स्वागत साँसद राकेश सिंह द्वारा किया गया।

साँसद सिंह ने कार्यक्रम के दौरान उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति है, हम किसी भी पवित्र कार्य की शुरुआत दीप प्रज्वलित कर करते है लेकिन कुछ वर्षों में शासनगत व्यवस्था के कारण हमारी प्राचीन परंपरा धीरे धीरे क्षीण हुई है। वर्तमान का समय सांस्कृतिक पुनरुथान का है और जब हम सांस्कृतिक पुनरुथान की बात करते है तो आज देश में वो परिस्थितियां है जिनकी हमे वर्षो से प्रतीक्षा थी। जैसे भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर अयोध्या जी मे बनने जा रहा है, कश्मीर धारा 370 के बंधन से मुक्त हो गया है, विकास की नई इबारत लिखी जा रही, पूरे देश में साधु संतों के आशीर्वाद से भक्तिमय और धर्ममय माहौल है।

जबलपुर की सांस्कृतिक पहचान बने: उन्होंने आगे कहा कि माँ नर्मदा के तट में रहने वाले हम लोग प्राचीन काल से ही उन्हें नमन करने आते रहे है और समय समय पर उनके तट पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए पर्व मानते आ रहे है और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की वजह से अपनी प्रसन्नता जाहिर करने के हमारे पास अब अवसर ज्यादा हैं। साँसद सिंह ने कहा इस वर्ष से दीपोत्सव जबलपुर का आयोजन हमने इस संकल्प के साथ किया है कि आने वाले वर्षो में हम इसकी निरंतरता और भव्यता बनाये रखेंगे और नर्मदा तट के किनारे का यह दीपोत्सव जबलपुर की सांस्कृतिक पहचान बनेगा। उन्होंने कार्यक्रम के उपरांत उपस्थित सभी संतजनों, जनप्रतिनिधियों, सामाजिक, सांस्कृतिक, धर्मिक संगठनों के के साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं की प्रति कार्यक्रम को भव्यता प्रदान करने आभार व्यक्त किया।

स्थानीय मिट्टी के कारीगरों से दिए खरीदे गए 51 हज़ार दिए: साँसद सिंह ने कहा हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरे देश से लोकल फ़ॉर वोकल के लिए आह्वान किया था और उनके आह्वान पर हमने जबलपुर के स्थानीय मिट्टी के कारीगरों से दिए खरीद कर आज नर्मदा जी के तट में दीपोत्सव मनाया है और ऐसे आयोजन जबलपुर को समृद्ध भी करेंगे साथ ही हमारी सांस्कृतिक विरासत को मजबूत भी करेंगे।

दो दर्जन से अधिक संत रहे मौजूद: दीपोत्सव कार्यक्रम में संत जगतगुरु राघवदेवाचार्य, महामंडलेश्वर अखिलेश्वरानंद, दण्डीस्वामी कालिकानंद सरस्वती, नृसिंहपीठाधीश्वर डॉ नरसिंह दास, स्वामी गिरिशानंद सरस्वती, साध्वी विभानंद गिरी, साध्वी ज्ञानेश्वरी, स्वामी पगलानंद, स्वामी रामदास, स्वामी डॉ मुकुंददास, स्वामी चैतन्यानंद, डॉ राधे चैतन्य, स्वामी अशोकानंद, साध्वी सम्पूर्णा, साध्वी शिरोमणि, स्वामी राम भारती, सन्त केवलपुरी महाराज, स्वामी कालीनन्द जी, स्वामी रामशरण, श्री रामकृष्ण दास महाराज, स्वामी त्रिलोक दास, नागा साधु श्यामदास महाराज, स्वामी रामाचार्य महाराज, स्वामी राजेश दास, स्वामी मृतुन्जय दास मौनी बाबा, साध्वी लक्ष्मीनन्द सरस्वती, महन्त प्रकाशानंद ने अपना आशीर्वाद प्रदान किया।

कार्यक्रम में विधायक अशोक रोहाणी, अजय विश्नोई, सुशील तिवारी इंदु, नंदनी मरावी, विनोद गोंटिया, डॉ जितेंद्र जामदार, जिला पंचायत अध्यक्ष संतोष बरकड़े, प्रदेश कोषाध्यक्ष अखिलेश जैन, जीएस ठाकुर, रानू तिवारी, शरद जैन, अंचल सोनकर, हरेन्द्रजीत सिंह बब्बू, प्रभात साहू, सदानंद गोडबोले, स्वाति गोडबोले, नगर निगम अध्यक्ष रिंकू बिज, नेता प्रतिपक्ष कमलेश अग्रवाल, अभिलाष पांडे, राममूर्ति मिश्रा, अरविंद पाठक, पंकज दुबे, रत्नेश सोनकर, रजनीश यादव,  भाजपा जिला पदाधिकारी, मंडल अध्यक्ष, पार्षदो के साथ बड़ी संख्या में सामजिक संगठनों के कार्यकर्ता और बीजेपी के पार्टी कार्यकर्ता उपस्थित थे।