भारतीय परिवारों में दिवाली के दिन भी कुछ न कुछ काम चलते रहते हैं। ऐसे में भागमभाग के चलते पूजन के समय ज़रूरी चीजें छूट जाती हैं। जो बाद में मन में खटकती रहती हैं। आपके साथ ये स्थिति न हो इसलिए कुछ ज़रूरी तैयारियां और चीजें यहाँ दी जा रही हैं।
ज़रूरी है लिपाई-पुताई: वर्षा के कारण गंदगी होने के बाद संपूर्ण घर की सफाई और लिपाई-पुताई करना जरूरी होता है। मान्यता के अनुसार जहां ज्यादा साफ-सफाई और साफ-सुथरे लोग नजर आते हैं, वहीं लक्ष्मी निवास करती हैं। किसी कारणवश यदि लिपाई-पुताई न कर पाए हों तो पूजा के कमरे में पोछा लगाकर ही पूजन की तैयारी करें।
वंदनवार: आम या पीपल के नए कोमल पत्तों की माला को वंदनवार कहा जाता है। इसे अक्सर शुभ कार्यों के समय द्वार पर बांधा जाता है। दीपावली के दिन भी द्वार पर इसे बांधना चाहिए। वंदनवार इस बात का प्रतीक है कि देवगण इन पत्तों की भीनी-भीनी सुगंध से आकर्षित होकर घर में प्रवेश करते हैं।
रंगोली: रंगोली या मांडना को ‘चौंसठ कलाओं’ में स्थान प्राप्त है। उत्सव-पर्व तथा अनेकानेक मांगलिक अवसरों पर रंगोली से घर-आंगन को खूबसूरती के साथ अलंकृत किया जाता है। इससे घर-परिवार में मंगल रहता है।
दीपक: पारंपरिक दीपक मिट्टी का ही होता है। इसमें 5 तत्व हैं- मिट्टी, आकाश, जल, अग्नि और वायु। हिन्दू अनुष्ठान में पंच तत्वों की उपस्थिति अनिवार्य होती है।
चांदी का ठोस हाथी: विष्णु तथा लक्ष्मी को हाथी प्रिय रहा है इसीलिए घर में ठोस चांदी या सोने का हाथी रखना चाहिए। ठोस चांदी के हाथी के घर में रखे होने से शांति रहती है और यह राहू के किसी भी प्रकार के बुरे प्रभाव को होने से रोकता है।
कौड़ियां: पीली कौड़ी को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। कुछ सफेद कौड़ियों को केसर या हल्दी के घोल में भिगोकर उसे लाल कपड़े में बांधकर घर में स्थित तिजोरी में रखें। ये कौड़ियां धनलक्ष्मी को आकर्षित करती हैं।
चांदी की गढ़वी: चांदी का एक छोटा-सा घड़ा, जिसमें 10-12 तांबे, चांदी, पीतल या कांसे के सिक्के रख सकते हैं, उसे गढ़वी कहते हैं। इसे घर की तिजोरी या किसी सुरक्षित स्थान पर रखने से धन और समृद्धि बढ़ती है। दीपावली पूजन में इसकी भी पूजा होती है।
मंगल कलश: एक कांस्य या ताम्र कलश में जल भरकर उसमें कुछ आम के पत्ते डालकर उसके मुख पर नारियल रखा होता है। कलश पर रोली, स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर उसके गले पर मौली बांधी जाती है।
पूजा-आराधना: दीपावली पूजा की शुरुआत धन्वंतरि पूजा से होती है। दूसरा दिन यम, कृष्ण और काली की पूजा होती है। तीसरे दिन लक्ष्मी माता के साथ गणेशजी की पूजा होती है। चौथे दिन गोवर्धन पूजा होती है और अंत में पांचवें दिन भाईदूज या यम द्वीतिया मनाई जाती है।
मजेदार पकवान: दीपावली के 5 दिनी उत्सव के दौरान पारंपरिक व्यंजन और मिठाई बनाई जाती है। हर प्रांत में अलग-अलग पकवान बनते हैं। उत्तर भारत में ज्यादातर गुझिये, शकरपारे, चटपटा पोहा चिवड़ा, चकली आदि बनाते हैं। इस दिन पूजन के पश्चात भगवान को घर में बने पकवानों या भोजन का भोग लगाकर ही परिवार सहित भोजन ग्रहण करें।
ज्योतिर्विद् वास्तु दैवज्ञ पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री मो. 9993874848
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भारत विश्वाकर्षण का केंद्र बन रहा है, माँ नर्मदा के तट पर बसे जाबालि ऋषि की तपोभूमि के साथ ही देश के मध्य में बसा हमारा जबलपुर देश भर में आकर्षण का केंद्र बने और जिसकी सबसे बड़ी ताकत हमारी सांस्कृतिक विरासत है। यह इच्छा साँसद राकेश सिंह नर्मदा के ग्वारीघात तट पर “नर्मदा तट में एक दीप – जबलपुर की समृद्धि के नाम” कार्यक्रम में व्यक्त की।
यह कार्यक्रम संतजनों की उपस्थिति में दीपावली की पूर्व संध्या साँसद राकेश सिंह के आह्वान पर 51 हजार दीपों को प्रज्वलित कर किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत नर्मदा आरती और अष्टक के साथ की गई। जिसके बाद शंखनाद और फिर स्वस्तिवाचन के साथ दीप प्रज्वलित किये गए। जिसमें नर्मदा तट ग्वारीघाट के आठों घाट जिनमें सिद्ध घाट, उमा घाट, नाग मंदिर घाट, पंडा घाट, नाव घाट, महिला घाट, दरोगा घाट, श्रीबाबाश्री घाट के साथ ही दूसरी ओर गुरुद्वारा के सामने के घाट में भी दीप प्रज्वलित किये गए। इसके बाद उपस्थित संतजनों का पूजन और स्वागत साँसद राकेश सिंह द्वारा किया गया।
साँसद सिंह ने कार्यक्रम के दौरान उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति है, हम किसी भी पवित्र कार्य की शुरुआत दीप प्रज्वलित कर करते है लेकिन कुछ वर्षों में शासनगत व्यवस्था के कारण हमारी प्राचीन परंपरा धीरे धीरे क्षीण हुई है। वर्तमान का समय सांस्कृतिक पुनरुथान का है और जब हम सांस्कृतिक पुनरुथान की बात करते है तो आज देश में वो परिस्थितियां है जिनकी हमे वर्षो से प्रतीक्षा थी। जैसे भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर अयोध्या जी मे बनने जा रहा है, कश्मीर धारा 370 के बंधन से मुक्त हो गया है, विकास की नई इबारत लिखी जा रही, पूरे देश में साधु संतों के आशीर्वाद से भक्तिमय और धर्ममय माहौल है।
जबलपुर की सांस्कृतिक पहचान बने: उन्होंने आगे कहा कि माँ नर्मदा के तट में रहने वाले हम लोग प्राचीन काल से ही उन्हें नमन करने आते रहे है और समय समय पर उनके तट पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए पर्व मानते आ रहे है और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की वजह से अपनी प्रसन्नता जाहिर करने के हमारे पास अब अवसर ज्यादा हैं। साँसद सिंह ने कहा इस वर्ष से दीपोत्सव जबलपुर का आयोजन हमने इस संकल्प के साथ किया है कि आने वाले वर्षो में हम इसकी निरंतरता और भव्यता बनाये रखेंगे और नर्मदा तट के किनारे का यह दीपोत्सव जबलपुर की सांस्कृतिक पहचान बनेगा। उन्होंने कार्यक्रम के उपरांत उपस्थित सभी संतजनों, जनप्रतिनिधियों, सामाजिक, सांस्कृतिक, धर्मिक संगठनों के के साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं की प्रति कार्यक्रम को भव्यता प्रदान करने आभार व्यक्त किया।
स्थानीय मिट्टी के कारीगरों से दिए खरीदे गए 51 हज़ार दिए: साँसद सिंह ने कहा हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरे देश से लोकल फ़ॉर वोकल के लिए आह्वान किया था और उनके आह्वान पर हमने जबलपुर के स्थानीय मिट्टी के कारीगरों से दिए खरीद कर आज नर्मदा जी के तट में दीपोत्सव मनाया है और ऐसे आयोजन जबलपुर को समृद्ध भी करेंगे साथ ही हमारी सांस्कृतिक विरासत को मजबूत भी करेंगे।
दो दर्जन से अधिक संत रहे मौजूद: दीपोत्सव कार्यक्रम में संत जगतगुरु राघवदेवाचार्य, महामंडलेश्वर अखिलेश्वरानंद, दण्डीस्वामी कालिकानंद सरस्वती, नृसिंहपीठाधीश्वर डॉ नरसिंह दास, स्वामी गिरिशानंद सरस्वती, साध्वी विभानंद गिरी, साध्वी ज्ञानेश्वरी, स्वामी पगलानंद, स्वामी रामदास, स्वामी डॉ मुकुंददास, स्वामी चैतन्यानंद, डॉ राधे चैतन्य, स्वामी अशोकानंद, साध्वी सम्पूर्णा, साध्वी शिरोमणि, स्वामी राम भारती, सन्त केवलपुरी महाराज, स्वामी कालीनन्द जी, स्वामी रामशरण, श्री रामकृष्ण दास महाराज, स्वामी त्रिलोक दास, नागा साधु श्यामदास महाराज, स्वामी रामाचार्य महाराज, स्वामी राजेश दास, स्वामी मृतुन्जय दास मौनी बाबा, साध्वी लक्ष्मीनन्द सरस्वती, महन्त प्रकाशानंद ने अपना आशीर्वाद प्रदान किया।
कार्यक्रम में विधायक अशोक रोहाणी, अजय विश्नोई, सुशील तिवारी इंदु, नंदनी मरावी, विनोद गोंटिया, डॉ जितेंद्र जामदार, जिला पंचायत अध्यक्ष संतोष बरकड़े, प्रदेश कोषाध्यक्ष अखिलेश जैन, जीएस ठाकुर, रानू तिवारी, शरद जैन, अंचल सोनकर, हरेन्द्रजीत सिंह बब्बू, प्रभात साहू, सदानंद गोडबोले, स्वाति गोडबोले, नगर निगम अध्यक्ष रिंकू बिज, नेता प्रतिपक्ष कमलेश अग्रवाल, अभिलाष पांडे, राममूर्ति मिश्रा, अरविंद पाठक, पंकज दुबे, रत्नेश सोनकर, रजनीश यादव, भाजपा जिला पदाधिकारी, मंडल अध्यक्ष, पार्षदो के साथ बड़ी संख्या में सामजिक संगठनों के कार्यकर्ता और बीजेपी के पार्टी कार्यकर्ता उपस्थित थे।
कल देश में के साथ-साथ प्रदेश और शहर में दीपावली का त्योहार मनाया जाएगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार घर-घर महालक्ष्मी माता पधारेंगी। इन्हीं मान्यताओं के मद्देनजर महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नू ने पूरी संस्कारधानी को दूधिया रोशनी और विविध रंगों की रंगोली से सजवाया है। उनके मुताबिक आज मां लक्ष्मी घर घर जाकर संस्कारधानी के समस्त नागरिकों को धन-धान्य और उत्तम स्वास्थ्य का वरदान देंगी। महापौर ने दीपोत्सव पर्व को ध्यान में रखते हुए शहर के सभी प्रमुख चौराहों, बाजारों, मार्गों एवं भवनों को आकर्षक साज सज्जा और विविध रंगों की रंगोली से सजवाया है। जिसका उन्होंने आज शाम निरीक्षण भी किया और व्यवस्था की सराहना भी की। उन्होंने छोटी लाइन फाटक, गोरखपुर, सिविक सेंटर, तीन पत्ती, ब्लूम चौक, मदन महल, नौदराब्रिज, रसल चौक के साथ साथ अन्य चौराहों, बाजारों आदि क्षेत्रों का निरीक्षण किया। निरीक्षण के अवसर पर महापौर ने कहा कि उनके ऊपर माता रानी की विशेष कृपा रहती है, मां नर्मदा, मां भगवती की प्रेरणा और उनसे मिली शक्ति के कारण ये सब मैं करवा पाया। उन्होंने बताया कि दीपावली का ये महापर्व हमारे संस्कारधानी के लोग सतरंगी खुशुबुओं के बीच दूधिया रोशनी में मनाएंगे और मां लक्ष्मी की विधि विधान से अपने घर आंगन में पूजा करेंगे।
इस अवसर पर महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नू ने निर्धन परिवारों के बीच पहुंचकर उनके साथ पर्व की खुशियां बांटी। रोशनी के महापर्व दीपावली की पूर्व संध्या पर उन्होंने शहर के अनेक क्षेत्रों में पहुंचकर निर्धन और असहाय परिवारों के साथ पर्व की खुशियां मनाते हुए उन्हें आकर्षक उपहार प्रदान कर किए और उन्हें दीपावली पर्व की शुभकामनाएं दी। महापौर के अनुसार आज हम कह सकते हैं कि दीपोत्सव की पूर्व संध्या पर संस्कारधानी की धरती रंगों से सज गई है और आसमान रोशनी से जगमगा गया है। सतरंगी खुशबू से संस्कारधानी का कोना कोना सुगंधित है। संस्कारधानी के समस्त नागरिकों को आज फिर से दीपोत्सव पर्व की बधाई और शुभकामनाएं देता हूँ और मां लक्ष्मी से प्रार्थना करते हैं कि मां की कृपा सभी घरों और आंगन में बरसे।
लोग रोज़ी-रोटी की तलाश में घर से इतना दूर निकल जाते हैं कि कभी-कभी उनके लिए घर लौटना बड़ा मुश्किल हो जाता है। ऐसे में अगर कोई त्योहार हो तो घर की अहमियत और बढ़ जाती है। दीपवाली के मौके पर ऐसे ही 70 मजदूर घर लौटने की उम्मीद छोड़ चुके थे। लेकिन तभी जबलपुर पुलिस उनके लिए मसीहा बनकर पहुंची और उनकी घर वापसी करवायी।
मामला जबलपुर थाना मझोली अंतर्गत ग्राम उमरधा, खितौला, पडवार, खमरिया और थाना मझगवॉ अंतर्गत ग्राम खिरहनी के 70 मजदूरों का है। जो महाराष्ट्र के ज़िला सोलापुर थाना पंढरपुर अतंर्गत ग्राम सुस्ते और ग्राम हुनूर मजदूरी करने गये थे। लेकिन पैसों की कमी होने के कारण दीपावली त्योहार में गॉव वापिस नहीं आ पा रहे थे। मजदूरों के परिजनों के ने 70 मजदूरों के जिला सोलापुर में फंसे होने की सूचना विधायक अजय विश्नोई और थाना प्रभारी मझोली अभिलाष मिश्रा को दी।विधायक विश्नोई ने पुलिस अधीक्षक जबलपुर सिद्धार्थ बहुगुणा से सोलापुर में 70 मजदूरो के फंसे होने के सम्बंध मे चर्चा की और मदद के लिए कहा। वहीं थाना प्रभारी मझोली अभिलाष मिश्रा द्वारा भी तत्काल सूचना से जबलपुर पुलिस अधीक्षक , अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ग्रामीण शिवेश सिंह बघेल और एसडीओपी सिहोरा भावना मरावी को अवगत कराया गया। एसपी ने सूचना को गम्भीरता से लेते हुये तत्काल जिला सोलापुर पुलिस अधीक्षक तेजस्वी सतपुते से चर्चा करते हुये वस्तुस्थिति से अवगत कराया और तत्काल चौकी प्रभारी इंद्राना उप निरीक्षक ऋषभ सिंह बघेल, सहायक उप निरीक्षक रामसनेही पटेल, आरक्षक सुमित, थाना सिहोरा के आरक्षक मनोज की सोलापुर की टीम गठित कर महाराष्ट्र रवाना भेजी। ये टीम सोलापुर पहुंची और स्थानीय पुलिस की मदद से 31 मजदूर ग्राम सुस्ते से और ग्राम हुनूर से 39 मजदूर को साथ लेकर रेल्वेस्टेशन पंढरपुर पहुंची। स्टेशन में इन 70 मजदूरों की भोजन इत्यादि की व्यवस्था करवाकर उसी परिसर में ही जी.आर.पी. और आर.पी.एफ. की मदद से रात्रि कालीन आराम की व्यवस्था भी की। इसके बाद जी.आर.पी. और आर.पी.एफ. की मदद से दीक्षा भूमि एक्सप्रेस से जबलपुर के लिये सभी मजदूरों को रवाना किया और सकुशल जबलपुर स्टेशन लेकर पहुंचे। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ग्रामीण, एस.डी.ओ.पी. सिहोरा, थाना प्रभारी मझोली ने जबलपुर रेल्वे स्टेशन में फूलमाला पहनाकर पुलिस टीम और मजदूरों का स्वागत किया और सभी मजदूरों को बस में बैठाकर अपने-अपने गाँव भेजा। ये क्षण मजदूरों के लिए भी भावुक करने वाला था। उन्होंने उनकी मदद करने वाली जबलपुर पुलिस और विधायक विश्नोई को धन्यवाद दिया।
धनतेरस के दिन उस वक़्त परिवारों की आँखें नम हों गयीं जब उन्हें समस्त सुविधाओं से भरे मकान में गृह प्रवेश का मौका मिला। इस अवसर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में प्रधानमंत्री आवास योजना में बने 4.51 लाख आवासों में गृह प्रवेश कर रहे परिवारों को शुभकामनाएँ दी हैं। मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि आज से दीपावली आरंभ हो रही है और इस शुभ दिन में लोग अपने आवासों में गृह प्रवेश करेंगे। इस कार्यक्रम का वर्चुअल शुभारंभ धनतेरस के दिन प्रधानमंत्री मोदी ने किया। प्रधानमंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री के संबोधन को आम जन ने लाइव टेलीकास्ट के माध्यम से सुना। ज़िले में सांसद राकेश सिंह और कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी ने गृह प्रवेशम कार्यक्रम के दौरान सालीवाड़ा ग्राम पंचायत भवन में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के संबोधन को सुना। साथ ही हितग्राहियों को हितलाभ का वितरण किया। सालीवाड़ा ग्राम पंचायत के नीमखेड़ा में जवाहर लाल बर्मन व मुंशीलाल बर्मन के पीएम आवास में सांसद सिंह ने फीता काटकर गृह प्रवेश कराया और दीपावली की शुभकामनाएं दी। विदित हो कि ज़िले में आज साढ़े बारह सौ मकानों में गृह प्रवेश का कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम के दौरान जिला पंचायत के अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी मनोज सिंह, सीईओ जनपद पंचायत, तहसीलदार, सरपंच सहित गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। इसके साथ ही नीमखेड़ा में कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी ने स्थानीय लोगों की समस्याओं को सुना तथा उनके समुचित समाधान करने के निर्देश संबंधित अधिकारियों को दिये।
आज जलाए जाएंगे 51 हज़ार दीये : सांसद सिंह ने कहा कि जबलपुर की समृद्धि के लिये 23 अक्टूबर की शाम 7 बजे ग्वारीघाट नर्मदा तट में 51 हजार दीपक जलाने का कार्यक्रम है जिसमें अधिक से अधिक संख्या में लोग सहभागी हों।
मौसमी बीमारियां हों या फिर लंबे समय से चला आ रहा कोई पुराना रोगा। कई बार देखने में आता है कि कई बीमारियां लाइलाज सी हो जाती है। ऐसा नहीं है कि उनका इलाज नहीं है लेकिन रोगी बार-बार उनसे पीड़ित होता है। एलर्जी हो सर्दी हो या फिर पेट से जुड़ी कोई समस्या कई बार इन बीमारियों का इलाज कई तरह की चिकित्सा पद्धति में भी नहीं हो पाता। ऐसे में रोगी तो परेशान होता ही है बल्कि ये छोटी सी बीमारियां मानसिक रूप से फ्रस्ट्रेशन भी हो जाता है। लेकिन ऐसी ही मौसमी और कई तरह की बीमारियों में कुछ पत्ते बेहद लाभकारी होते हैं।आइए जानते हैं किस तरह के पत्ते होते हैं ये और कैसे पहुंचाते हैं कई तरह की बीमारियों में राहत? नीम, तुलसी, बबूल, बड़ और बेर के पत्तों में कई औषधीय गुण होते हैं। ये पत्ते कई तरह की बीमारियों में घरेलू नुस्खों के तौर पर इस्तेमाल होते हैं। चर्मरोग से लेकर मंसूड़ों की समस्या और बालों के झड़ने की दिक्कत तक में ये पत्ते अंग्रेजी दवाओं से ज्यादा कारगर साबित होते हैं।
आइए इन पांच पत्तों के औषधीय फायदे जानते हैं
नीम का पत्ता बेहद लाभकारी होता है। अगर आप सुबह खाली पेट नीम के 10-12 पत्तियों को पीसकर पीते हैं तो आपको कभी चर्मरोग नहीं होगा। इसके अलावा, नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर सिर धोने से बाल झड़ने की समस्या भी खत्म हो जाएगी। झुओं की समस्या में भी नीम के पत्ते फायदेमंद होते हैं। तुलसी के पत्ते की चाय पीने से सर्दी-खांसी में आराम मिलता है। अगर आप रोज सुबह तुलसी के पत्ते की चाय पीते हैं या फिर नियमित तौर पर तुलसी के पत्ते खाते हैं तो आपको कई तरह की बीमारियों से छुटकारा मिलता है। नीम और तुलसी की ही तरह बबूल की पत्तियां भी बेहद लाभकारी होती हैं। बबूल की पत्तियों को पानी में उबालकर कुल्ला करने से दांत व मसूड़े मजबूत होते हैं। नीम की ही तरह बेर की पत्तियां भी बाल झड़ने की समस्या से निजात दिलाती हैं। बेर की पत्तियों व नीम की पत्तियों को बारीक पीसकर नींबू का रस मिलाकर बालों में लगाने से बाल मजबूत होते हैं और बाल झड़ने की समस्या भी दूर होती है। नीम और बेर की ही तरह बड़ भी बालों के झड़ने में लाभकारी होते हैं। बड़ के दूध में नींबू का रस मिलाकर सिर पर लगाने और फिर धो लेने से बाल झड़ने की समस्या दूर हो जाती है।
बीते दिनों शासकीय होम साइंस महिला महाविद्यालय में बीएससी पाठ्यक्रम की 200 छात्राओं के फेल होने के मामले में एनएसयूआई के पदाधिकारियों ने शुक्रवार को जबलपुर पहुंचे शिक्षा मंत्री मोहन यादव को ज्ञापन सौंपा। जिसमें उन्होंने महिला महाविद्यालय की प्राचार्य पर लापरवाहीपूर्वक मूल्यांकन कार्य का आरोप लगाते हुए उन्हें हटाए जाने की मांग की।
इसके बारे में एनएसयूआई के अदनान अंसारी और देवकी पटेल ने अधिक जानकारी देते हुए बताया कि शासकीय होम साइंस महिला महाविद्यालय के परीक्षा परिणामों में गड़बड़ी के विरोध में लगातार एनएसयूआई प्रदर्शन कर रही है लेकिन प्राचार्य छात्र हित में कोई फैसला लेने के बजाय महाविद्यालय और आंदोलनकारी छात्रों पर ही कार्यवाही कर रहे हैं। साथ ही नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद भी अधिकारियों के सकारात्मक सहयोग ना मिलने के कारण छात्रों की परेशानियों का समाधान नहीं हो रहा है क्योंकि अध्यापकों को स्वयं नवीन शिक्षा नीति की जानकारी नहीं है। छात्र संघ शुल्क लिए जाने के बाद भी लंबे समय से छात्र संघ चुनाव नहीं आयोजित करवाए जा रहे जबकि प्रदेश में अन्य चुनाव आयोजित करवाए जा रहे हैं। इसके अलावा लंबे समय से गलत रोस्टर तैयार किए जाने के कारण रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के बैकलॉग के पद नहीं भर पा रहे हैं इसलिए रोस्टर का पुनः निर्धारण कर नियम अनुसार भर्ती शीघ्र की जाए।
प्रतिनिधिमंडल मे एनएसयूआई पूर्व प्रदेश महासचिव सागर शुक्ला, राष्ट्रीय समन्वयक देवकी पटेल, पूर्व जिला उपाध्यक्ष अदनान अंसारी, एजाज अंसारी, शफी खान, वाजिद कादरी, आकाश कुशवाहा, अंकित कोरी, शादाब अली, अभिषेक रजक, मौसम शिवहरे, सुमित कुशवाहा, राशि, सोनाली झारिया, कामिनी मिश्रा आदि मौजूद रहे।
संस्कारधानी में कोई बात निकले और दूर तलक न पहुँचे, ऐसा नामुमकिन है। एक बात ऐसे ही निकल आई है। दोस्त कहें, हितैषी, समर्थक या कबीला! लेकिन ये जो भी हैं, उससे तो नाराज़ हैं जिसे कुछ महीनों पहले सिर-आँखों पर बैठाकर उस किले का सरदार बनाया जिसके लिए दर्जनों लोग कोशिश में थे। किले का सरदार बनते ही उस सरदार के बचपन के कुछ साथियों ने उसे घेर लिया। और उन्होंने उस सरदार के इर्द-गिर्द ऐसे घेराबंदी कर दी कि कोई और सरदार के करीब न आ सके। अब सरदार के ऊपर किले के साथ-साथ उसकी सीमा में रहने वाले लोगों के प्रति कुछ ज़िम्मेदारियाँ भी हैं। तो सरदार उसमें व्यस्त रहने लगा, जो समय बचता वो उसके समीप रहने वाले लोगों के साथ चला जाता। सरदार को उन लोगों से मिलने नहीं दिया जाता या सरदार खुद नहीं मिलता, जो उसके उस किले का सरदार बनने के सफर में न सिर्फ शामिल रहे बल्कि उन्होंने उसे सरदार बनाने के लिए काफी संघर्ष भी किया। लेकिन कहते हैं किसी इंसान की सही पहचान तब होती है जब उसके पास कोई बड़ा पद, शक्ति, सत्ता, धन या स्त्री आ जाए। उन दोस्तों और कबीले वालों को सरदार की पहचान धीरे-धीरे होने लगी। जब ज़्यादातर उनके साथ रहने वाला सरदार अब गाहे-बगाहे भी उनसे मिलने न आता। बुलाने पर नहीं आता, न किसी के जन्मदिन में और न किसी कि विदाई में। अब दिवाली आ रही है और उसके कुछ सालों बाद फिर अलग तरह की सरदारी का दावा करने का वक़्त भी। सरदार ने दिवाली के पहले खबरनवीसों को तोहफे बांटे हैं, बैठकें कर रहे हैं और मिलन समारोह भी। हालांकि इन सबमें कबीले के पुराने लोग और दोस्त नहीं पहुँचे। दिवाली में प्रभु राम वनवास से लौटकर और रावण से जीतकर आयोध्य लौट आए थे। सरदार भी लौटेंगे या नहीं या लौटने में पाँच साल लगेंगे, ये सरदार बताएंगे या तो समय।
बीते वर्ष की ही तरह इस वर्ष भी कालजयी अनिल कुमार श्रीवास्तव फाउंडेशन की ओर से एक साहित्य उत्सव ‘ शब्द ‘ का आयोजन 29 व 30 अक्टूबर को संस्कृति थिएटर कल्चरल स्ट्रीट में किया जा रहा है। इस दो दिवसीय आयोजन में साहित्य की विविध विधाओं के अंतर्गत अलग-अलग आयोजन दो दिनों तक चलेंगे। 29 को सुबह 11 बजे उद्घाटन सत्र है। फिर अन्य सत्र होंगे। फाउंडेशन के सदस्यों का निवेदन है कि उद्घाटन सत्र से लेकर दिन भर के आयोजन में आप उपस्थित होकर आयोजन की गरिमा बढ़ाएं। साथ ही देश भर से आने वाले साहित्यकारों से रू- ब- रू होने का लाभ भी लें। इसके साथ ही साहित्य में रुचि रखने वाले युवाओं के लिए दोनों दिनों में ओपन माइक का सत्र भी रखा गया है। जिसमे युवा साथी अपनी स्वरचित कविताओं का पाठ करने के लिए आमंत्रित हैं।कृपया इच्छुक युवा साथी व साहित्य साधक – 7748804673 पर सम्पर्क कर सकते हैं। और ओपन माइक के लिए पंजीयन करवा सकते हैं। पंजीयन निःशुल्क है।
राजेन्द्र चंद्रकांत राय ने अपने लेख में तथ्यों के आधार पर बताया कब, कहाँ क्या हुआ...
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ग्वालियर के अपने राजमहल में 164 साल बाद झांसी की रानी लक्ष्मी बाई को एक महान् योद्धा के रूप में प्रतिष्ठित करते हुए कहते हैं, ‘एक कविता से इतिहास नहीं बदला जा सकता है। यह भ्रम फैलाया गया कि सिंधिया राजवंश ने रानी लक्ष्मीबाई का साथ नहीं दिया था।’ ऐसा कहते हुए वे यह भूल जाते हैं कि यदि सिंधिया राजवंश ने रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया था, तो 164 सालों तक उनके प्रति उस राजवंश का दुराव क्यों बना रहा। वे इतिहास की तरफ पीठ करके ही ऐसी बातें कर रहे हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान के अमरगीत ‘झांसी की रानी’ को सिंधिया राजवंश के बारे में भ्रम फैलाने वाली कविता बताने के लिये हम ज्योतिरादित्य सिंधिया की कड़े शब्दों में भर्त्सना करते हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान ने ‘झांसी की रानी’ गीत की रचना, स्वाधीनता आंदोलन के दिनों में, जबलपुर कारागार में की थी। सन् 1930 ईस्वी में उनका पहला काव्य संग्रह ‘मुकुल’ का प्रकाशन हुआ था। इसी संग्रह में ‘झाँसी की रानी’ गीत भी संग्रहित है।
पिछले 80-90 सालों से यह गीत संपूर्ण भारतवर्ष में लोगों की जुबान पर बना हुआ है। साहित्य-सृजन किसी राजवंश या व्यक्ति के बारे में भ्रम फैलाने के लिये नहीं किया जाता। उसका महान् उद्देश्य हुआ करता है। इस गीत का भी एक महान् उद्देश्य था, भारत की स्वाधीनता। जिनके राज्य में सूर्यास्त नहीं होता था, उनके चंगुल से देश को मुक्त कराने के लिये आमजन में जोश जगाना।
सुभद्रा जी स्वाधीनता आंदोलन के दौरान स्वयं ही ‘झांसी की रानी’ गीत को गाकर सुनाया करती थीं। वे अपने कथ्य और संवेदना को सरलतम और जनभाषा में अभिव्यक्त करने में निपुण थीं। यह गीत, सुनने वालों को जोश से भर देता था। उनकी इस रचना की लोकप्रियता और आम लोगों पर उसका प्रभाव देख कर, अँग्रेजों ने उसे जब्त कर लिया था।एनसीईआरटी ने भी इसी साल,‘नयी शिक्षा नीति’ के लागू होते ही अपनी स्कूली पाठ्यपुस्तकों से इस गीत को हटा कर अंग्रेजों के पद्चिन्हों पर चलने का ही काम किया है। सुभद्रा जी के इस गीत में एक पंक्ति इस तरह आती है- ‘अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी।’ यह पंक्ति गीत-रचना के लिये चुनी गयी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की शौर्यगाथा के कथानक का ही एक हिस्सा है, जो इतिहास-सिद्ध भी है। क्रिस्टोफर हिबर्ट ने अपनी विख्यात किताब, ‘द ग्रेट म्यूटिनी इंडिया : 1857’ में लिखा है, ‘‘उन्होंने (विप्लवकारियों ने) यह फैसला किया कि वे ग्वालियर कूच करेंगे। दरअसल ब्रिटिश अफ़सर की अगुवाई वाली ग्वालियर की एक सैन्य टुकड़ी के द्रोह करने के बावजूद उन्हें यह भरोसा था कि युवा महाराजा (जयाजीराव) सिंधिया की सेना को साथ देने के लिये मनाया जा सकता है, जिसमें दो हजार से ज्यादा जांबाज सिपाही मौजूद हैं। महाराजा (जयाजीराव सिंधिया) अब भी इसी राय के पक्षधर बताये जा रक थे कि ब्रिटिशों को कभी शिकस्त नहीं दी जा सकती। विप्लवकारी अगुवाओं ने ग्यारह हजार सिपाहियों और बारह तोपों के साथ ग्वालियर मार्च शुरु कर दिया। महाराजा (जयाजीराव सिंधिया) ने उन्हें मुरार के निकट टक्कर दी लेकिन एक चक्र गोलीबारी के बाद ही उनकी तोपों पर कब्ज़ा कर लिया गया। इस अप्रत्याशित हादसे ने महाराजा की सेना को विप्लवकारियों का साथ देने के लिये प्रेरित किया। उनके (जयाजीराव सिंधिया के) निजी अंगरक्षकों ने रुकने का निर्णय लिया, परंतु शीघ्र ही महाराजा को अपने अंगरक्षकों सहित आगरा की सुरक्षा हेतु कूच करने पर मज़बूर होना पड़ा।’’ (प्रकाशक, संवाद प्रकाशन, मेरठ, पहला संस्करण, 2008, पृष्ठ 459) यह एक अंग्रेज लेखक के द्वारा लिखी गयी किताब है, इसलिये जरा नरम भाषा में कहा गया है, कि ‘महाराजा को अपने अंगरक्षकों सहित आगरा की सुरक्षा हेतु कूच करने पर मज़बूर होना पड़ा।’
भारतीय लेखक श्री जगदीश जगेश अपनी पुस्तक, ‘कलम आज उनकी जय बोल’ में लिखते हैं, ‘‘ यहाँ (22 मई, 1857 को क्रातिकारियों का दल ग्वालियर पहुंचा था) राजा (जयाजीराव) सिंधिया के विरुद्ध विद्रोह करके (उनकी) सेना क्रांति में सम्मिलित हो गयी। सिधिंया आगरा भाग गया।’’ (प्रकाशक, हिंदी प्रचार संस्थान, 1989, पृष्ठ 34) यानी जयाजीराव सिंधिया तो अंग्रेजों के साथ बने रहे, परंतु उनकी सेना ग़दर के साथ हो गयी थी। सुप्रसिद्ध लेखिका महाश्वेता देवी ने इसी प्रसंग को अपने उपन्यास -झांसी की रानी’ में इस तरह से लिखा है, ‘‘रानी लक्ष्मीबाई ने अपने डेढ़ सौ घुड़सवारों को लेकर आगे आकर सिंधिया की गति को रोक दिया। उसे देख कर जैसा सुना था वैसी असहाय तो सिंधिया को वे नहीं लगीं। इस बीच तात्या और बांदा के नवाब आगे आ गये। तात्या का सांवला रंग, दृढ़ संकल्पपूर्ण चेहरा देख कर शंकित सिंधिया जब सहायता के लिये कातर होकर अपने सरदारों की तरफ देखते हैं, तब भारतीयों की तरफ से एक सैनिक तलवार हाथ में लेकर आगे आ गया। सारे भारतीय नेतागण साथ-ही-साथ तलवार ऊंची करके समवेत स्वर में गर्जन कर उठे- दीन! दीन हर हर महादेव! उसी समय सिंधिया की सारी सेना यन्त्रचालित की तरह भारतीय पक्ष में जाकर खड़ी हो गयी। ‘‘स्थिति पूरी तरह अपने प्रतिकूल देख कर सिंधिया अपने कुछ देहरक्षकों के साथ निकटवर्ती एक पहाड़ की तरफ भाग गये। पीछा करके भारतीय सैनिकों ने प्रायः साठ देहरक्षकों को मार दिया। ‘‘ इसके बाद भगोड़े सिंधिया द्रुतगति से फूलबागवाले प्रासाद में जाकर पोशाक बदलकर आगरा के रास्ते धौलपुर की ओर भाग गये।’’ (प्रकाशक, राधाकृष्ण पेपरबैक्स, हिंदी अनुवाद राधाकृष्ण प्रकाशन, सन् 2000, पृष्ठ 243)
लॉर्ड कैनिंग ने कुल तीन दरबार किए थे। पहला दरबार उस समय किया था, जब भारत में स्वाधीनता पाने के लिये विप्लवी शुरुआत होने को थी। उस समय अंग्रेजों की प्राथमिकता थी , देसी राजाओं-नवाबों को अपने साथ रखना। उस पहले दरबार में ग्वालियर से जयाजी राव सिंधिया भी गए थे। ‘जयाजी विजय” शीर्षक किताब के लेखक सरदार फालके के दादा उस दरबार में जयाजी राव सिंधिया के साथ गए थे और उन्होंने सिंधिया को अंग्रेजों के प्रति वफ़ादारी की क़समें खाते हुए अपनी आांखों से देखा था। कैप्टन मैक्फ़र्सन 1857 की ग़दर के समय ग्वालियर में रेज़ीडेंट पद पर था, उसने भी अपनी डायरी में जयाजी राव द्वारा झांसी की रानी के विरुद्ध मोर्चा बनाने की बात लिखी है। विनायक दामोदर सावरकर ने भी अपनी पुस्तक ‘1857, भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम’ में यह तथ्य स्वीकार किया है।
खोजने पर बहुत सी किताबें और उद्धरण मिल जायेंगे। इतिहास आखि़र इतिहास होता है। उसे दबाया, छिपाया या मिटाया नहीं जा सकता। यह ज्यादा अच्छा होता यदि वे अपने पूर्वजों के कृत्य के लिये सार्वजनिक क्षमा याचना करते और प्रायश्चित करने का संकल्प भी लेते। ऐसा करने की बजाय, उन्होंने एक ओछा रास्ता चुना और स्वाधीनता सेनानी कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान पर ही निम्नस्तरीय आरोप जड़ दिया। उनके इस आचरण की जितनी भी भर्त्सना की जाये, कम ही होगी।