हाल ही में न्यूज़ लौंड्री की वायरल हुई एक रिपोर्ट ने देश के हर नागरिक को सोचने पर मजबूर कर दिया है। न्यूज़ लॉन्ड्री की इस वायरल न्यूज़ रिपोर्ट के मुताबिक सत्ता में आने के 2,528 दिनों में मोदी सरकार ने कुल 23 अरब 3 करोड़ 44 लाख 40 हजार 961 रुपए सिर्फ प्रिंट मीडिया को दिए गए विज्ञापन पर खर्च किया। यानि प्रतिदिन जनता के टैक्स का करीब 71 लाख रुपये सिर्फ़ अखबारों को विज्ञापन देने पर खर्च हो रहा है। रिपोर्ट पिछले 9 सालों में हुए विज्ञापन के खर्च की राशि का अनुपात भी बताया गया है। इसमें 50% से ज्यादा राशि (16 अरब 71 करोड़ 12 लाख 11 हजार 741 रुपए) करीब 30 मीडिया संस्थानों को मिली और बाकी दूसरे अखबारों को। हर साल सरकारी विज्ञापन पाने वाले अखबारों की संख्या कुछ इस प्रकार है, जैसे 2015-16 में 8315 और 2022-23 में 3123। हालांकि इस विज्ञापन वाली सरकार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली की आम आदमी पार्टी के संस्थापक और दिल्ली के मुख्यमंत्री पर जनता के पैसे से विज्ञापन के जरिए अपने इमेज चमकाने पर खरी-खोटी सुना चुके हैं। लेकिन न्यूज़ लौंड्री की ये रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद सरकार की ओर से किसी ने कोई सफाई नहीं दी है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। सरकारें जो भी खर्च करती हैं वो आम जनता की कमाई के हिस्से से ही जुड़ा होता है। कभी सरकारी कोष में जमा धन इस्तेमाल होता है तो कभी अंतर्राष्ट्रीय बैंक से उधार ली हुई राशि। जैसे जेएनएनयूआरएम के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक ने लोन दिया था। चाहे ये लोन हो या विज्ञापन पर खर्च की गई राशि। राजनीतिक दल अपनी जेब से ये खर्च नहीं करते हैं। इसलिए सामाजिक जागरूकता फैलानी वाली संस्थाएँ आपको सोच समझकर अपना जनप्रतिनिधि चुनने के लिए कहती हैं। जो आपके बीच शुरू से रहा हो। जिसे आपका वोट मांगने के लिए महंगे प्रचार करने की आवश्यकता न पड़ी हो। ताकि आप भविष्य में होने वाले संभावित नुक्सानों से खुद को बचा सकें।
प्रेम – बाध्यता, अनिवार्यता या कर्तव्य?
शौर्य अपने होटल के कमरे की बालकनी में खड़े-खड़े बादलों के की परत को पार करते सूरज को उगते हुए देख रहा है। इन बादलों को देखते हुए वो उन खयालों में डूबने लगता है जब उसने ऐसी किसी सुबह की कल्पना भी नहीं की थी। शौर्य अपने बीते हुए सालों को याद करने लगता है और याद करते-करते उस लम्हे में पहुँच जाता है जब उसका मन करता था कि वो दुनियादारी से बहुत दूर चला जाए लेकिन सोची हुई बातें हमेशा सच हो जाएँ ऐसा ज़रूरी तो नहीं।
कुछ सालों पहले की बात है जब शौर्य का परिवार चाहता है कि उसकी उम्र काफी हो गई है इसलिए वो शादी कर ले। इसके लिए उसे आए दिन कम्युनिटी के व्हाट्सएप ग्रुप पर आने वाली लड़कियों के फोटो और bio डाटा उसके पिता उसे फॉरवर्ड करते। लेकिन किसी का फोटो और bio डाटा देखकर क्या उससे मिलने का मन बनाया जा सकता है। मतलब शादी को लोग जॉब की तरह ट्रीट क्यूँ करते हैं कि इस कैंडीडेट की शक्ल और बैकग्राउंड पसंद है इसलिए उसे इस वैकन्सी के लिए बुलाया जाए। ये बात शौर्य को बहुत खराब लगती। इसलिए वो अपने पिता से कहता कि इन फोटोज़ और bio डाटा को देखकर वो उनसे मिले या न मिले, ये वो तय नहीं कर सकता। उसके पिता शायद उसकी बात समझ जाते इसलिए उसे किसी से मिलने के लिए फोर्स नहीं करते लेकिन एक दिन एक लड़की के पिता के बार-बार कॉल करने पर शौर्य अपने परिवार के साथ उनसे मिलने उनके घर गया। जहाँ लड़की ने शौर्य से बात भी की लेकिन घर लौटने के बाद शौर्य को उस लड़की का चेहरा याद नहीं है इसलिए वो कुछ दिन बाद दुबारा उस लड़की से बाहर मिला लेकिन उसके बाद जब वो घर लौटकर आया तब भी उसके चेहरे को याद करने की कोशिश करता ही रह गया। जब उसकी ये कोशिश नाकाम हो गई तो उसने शादी के लिए मना कर दिया। इसके बाद उसने शादी का खयाल ही छोड़ दिया। लेकिन उम्र आपके खयाल छोड़ने से अपना बढ़ना रोक नहीं देती। दो-तीन सालों में वो 35 का हो गया। और तब तक शादी के खयाल से वो काफी दूर जा चुका था। लेकिन जैसा शुरू में ही कह दिया गया है कि सोची हुई बातें हमेशा सच हो जाएँ ऐसा… तो हुआ ये कि एक दिन अपने काम के चलते जब वो एक ईवेंट में पहुँचा तो वहाँ वो एक लड़की कीर्ति से टकराया। जिससे जान-पहचान भी हुई लेकिन बात आई गई हो गई। फिर एक दिन किसी काम के वजह से कीर्ति उसके इनबॉक्स में टकरायी। यहाँ से शुरू हुई उनकी बातचीत, इसके बाद वो मिले भी। उनकी मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया। वो कीर्ति के व्यवहार और व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुआ। दोनों एक-दूसरे को बेहद पसंद करने लगे। दोनों ने तय किया कि वो इस रिश्ते को आगे ले जाएंगे। यहाँ से शुरू हुआ दौर एक-दूसरे को और बेहतर ढंग से समझने का। और यहाँ से शुरू हुआ वो दौर भी जो हर उस रिश्ते में आता है जो पहले प्रेम की शक्ल में शुरू होता है और बाद में उसके अलग-अलग रूप दिखने लगते हैं। शौर्य और कीर्ति शुरू में एक-दूसरे से फोन पर बहुत बातें किया करते। लेकिन फिर शौर्य का काम उनकी बातचीत के आड़े आने लगा। देर रात तक एक-दूसरे से बात करना उसे रोज संभव नहीं दिख रहा है। इसलिए उसने कीर्ति से फोन पर कम बात करने के लिए कहा। कीर्ति ने इस बात का सीधे विरोध नहीं किया लेकिन सीधे समर्थन भी नहीं किया। उसने शौर्य से कहा कि जब भी उसके पास समय हो वो उसे कॉल कर ले। अब शौर्य को ये बाध्यता लगा या कीर्ति ने उस पर बाध्यता डाल दी ये उसके लिए तय करना मुश्किल है। लेकिन अगर बात प्रेम की हो तो प्रेम स्वयं में एक स्वतंत्र अभिव्यक्ति है इसलिए उसमें बाध्यता जैसी बातें नहीं आती होंगी। शौर्य खुद कीर्ति से कहता कि सुबह किसी और का कॉल लेने से पहले वो कोशिश करता है कि कीर्ति से बात कर ले। हालांकि शौर्य ने अपने इस कॉल को किसी अनिवार्यता या कर्तव्य से नहीं जोड़ा और न ही कीर्ति ने इसे अनिवार्यता या बाध्यता समझा। हाँ लेकिन प्रेम में बाध्यता न सही कर्तव्य जरूर होते हैं। ये दो लोगों का कर्तव्य ही है कि वे एक-दूसरे की पसंद-नापसंद और आत्मसमान का ध्यान रखें। जो कि वो दोनों रखते भी हैं लेकिन कई बार शौर्य कीर्ति के द्वारा मज़ाक में दिए जाने वाले लगातार उलटे जवाबों से आहत हो जाता। लेकिन उस पर वो रीऐक्ट भी नहीं कर पाता। क्यूंकि पिछले कुछ दिनों में उसे कीर्ति का वो रूप देखने मिला है जो उसने पहले नहीं देखा। कीर्ति अपनी ही दुनिया की बातों में उलझकर शौर्य से नाराज़ हो जाती। जिसका असर शौर्य के मन और उसके काम पर पड़ता। इस बारे में दोनों की बातें भी होती और कीर्ति ये कहती कि वो अपने इस रवैये पर काम कर रही है। वो शौर्य से कहती कि उसने जो भी लक्ष्य जीवन में तय किए हैं वो दोनों मिलकर पूरा करेंगे। लेकिन जब कीर्ति अचानक से उससे उन बातों को लेकर नाराज़ हो जाती कि वो उसके लिए समय नहीं निकालता तो शौर्य सोचता कि आखिर मैं कहाँ व्यस्त हूँ, अगर कीर्ति के साथ नहीं हूँ तब काम ही कर रहा होता हूँ। शौर्य के मुताबिक उसे लगता कि वो कीर्ति से फोन पर भी बात करता है और पूरे दिन उसके आसपास रहकर उसे अपनी उपस्थिति और साथ होने का एहसास भी कराता है। लेकिन कीर्ति के मुताबिक शौर्य उसके लिए समय नहीं निकालता है और रिश्ते को फॉर ग्रांटेड ले रहा यही। कीर्ति को शौर्य की बातें और व्यवहार देखकर लगता कि शौर्य अपने कम्फर्ट ज़ोन और कंविनियेंस पर ही काम करता है। दोनों के बीच मन-मुटाव या बहस होने पर वो उसे इसके ताने भी मारती, जैसे शौर्य की कभी कोई गलती ही नहीं होती। वो हमेशा सही होता है। हालांकि दोनों अपनी-अपनी गलतियों पर माफी भी मांग लेते। कीर्ति इन लड़ाई-झगड़ों के बारे में शौर्य से कहती कि कोई भी रिश्ता फूलों की गलियों से होकर नहीं गुज़रता। वहाँ ऐसे भी मौके आते हैं जब कटीली झाड़ियों के जंगल से भी गुज़रना पड़ता है। शौर्य फिगर आउट करने में लगा है कि कीर्ति पहले जब उससे मिली तब वो उसके साथ खुश रही। लेकिन अब ऐसा क्या होने लगा कि अक्सर उनके बीच किसी बात को लेकर तना-तानी होने लगी? कीर्ति को लगता कि उसने शौर्य को शुरू से जैसा पाया था शौर्य वैसा ही रहना चाहता है। वो खुद कुछ नया या अलग नहीं करना चाहता है। कीर्ति लगातार कोशिशों में लगी रहती कि शौर्य अपनी दिनचर्या को बदले। कुछ बेहतर करे और कुछ नया करे। शौर्य को कीर्ति की इस सोच की वजह लगती उसकी उम्र, कीर्ति 27 की है। वो अब भी ज़िंदगी में कुछ नया ढूंढ रही है। लेकिन शौर्य इस उम्र के पड़ाव तक आकर काफी कुछ कर चुका है। और अब उसने कुछ कामों में ही सीमित रहना सीख लिया है।
शौर्य के मन में कीर्ति के खिलाफ़ कभी कुछ नहीं आया और न ही कीर्ति के मन में उसके खिलाफ़ कुछ आया। लेकिन प्रेम से शुरू हुआ ये रिश्ता धीरे-धीरे अनिवार्यता, कर्तव्य और बाध्यता में सिमट कर रह गया। कीर्ति शौर्य के काम को लेकर लगातार उससे सवाल करती, जिसके जवाब देता लेकिन कभी-कभार बोल देता कि कितने सवाल करती हो। कीर्ति को लगता कि शौर्य कहीं उसे छोड़ न दे। लेकिन वो उसे अपने रहने और होने का यकीन दिलाता रहता। कीर्ति की बहुत सारे बातों में कुछ बातें बहुत अच्छी हैं जैसे वो किसी भी झगड़े को सुलझाए बिना शौर्य को छोड़कर नहीं जाती। और हमेशा ये कोशिश करती कि शौर्य के काम करने के दौरान वो उसके आसपास ही रहे। ताकि वो उसके साथ वक़्त बिता पाए और उसके काम में कुछ मदद कर पाए। कीर्ति चाहती है कि शौर्य रात में 10 मिनट ही सही उससे बात कर लिया करे या जिस दिन वो उससे मिलने नहीं आ पाती वो उससे मिल लिया करे। हफ्ते में कम से कम एक बार बाहर घुमाने ले जाए। शौर्य को इनमें से किसी भी बात से कोई ऐतराज़ नहीं है। वो अपनी तरफ से प्रयास करता। लेकिन कुछ करने पर जब कीर्ति उससे कहती कि वो ये सब उसके कहने की वजह से तो नहीं कर रहा है, तब वो कुछ कह नहीं पाता। शौर्य की इस रिश्ते से सबसे बड़ी उम्मीद है सुकून, जिसे वो हासिल करने के लिए वो सब करता जो उसके बस में है लेकिन कहीं न कहीं उससे कोई कमी रह जाती। इन सारी उधेड़-बन के बीच कीर्ति उसे शादी के लिए प्रपोज़ कर देती है। शौर्य उसे हाँ कह देता है। उसे लगता है कि ये चीजें हर रिश्ते में होती हैं। लेकिन इन वजहों से उस इंसान को अनदेखा नहीं किया जा सकता जो उससे बेहद और निस्वार्थ प्यार करता है। वैसे भी प्रेम का कोई लिखित संविधान नहीं है इसलिए वो अपने इस रिश्ते में किसी लिखित-अलिखित या सुने-सुनाए नियमों पर नहीं चलेगा। वो अपनी ओर से प्रेम भरा रिश्ता ही निभाएगा। वो कीर्ति की उन कोशिशों को तो बिलकुल भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता जहाँ वो खुदकों एक बेहतर इंसान बनाने की कोशिश में जुटी हुई है। अगर उसने आज कदम पीछे हटाए तो कीर्ति का खुद पर से भी भरोसा उठ जाएगा। और कीर्ति भी तो उस पर कितना यकीन करती है। शौर्य ने तय किया कि वो उन दोनों के के यकीन का मान रखेगा। उसने प्रेम में अपना कर्तव्य निभाया और प्रेम ने उसे एक खुशहाल रिश्ते का उपहार दिया। शौर्य सूरज को उगते हुए देखकर कीर्ति और उसके रिश्ते के बारे में सोच रहा है और मन ही मन यही प्रार्थना कर रहा है कि उसे कीर्ति के साथ रोज सुबह उगता हुआ सूरज देखने का मौका मिले। लेकिन कीर्ति है कहाँ? तभी कीर्ति ट्रैक सूट में पसीने से लथपथ कमरे में दाखिल होती है। वो अभी जॉगिंग करके लौटी है। शौर्य उसे पलटकर देखता है, वो जानता है कि कीर्ति सुबह-सुबह जब तक अपने दस हज़ार स्टेप्स पूरे न कर ले तब तक उसे सुकून नहीं मिलता। चाहे वो छुट्टियाँ ही क्यूँ न मना रही हो। कीर्ति शौर्य को बालकनी में खड़ा देखती है, जब वो बाहर उसके पास जाती है तो पड़ोस की बालकनी में एक लड़की को देखती है। और शौर्य को छेड़ते हुए कहती है, सूरज को देखने के बहाने किसी और के चाँद को ताका जा रहा है। शौर्य उसकी तरफ देखता है और मुस्कुरा देता है। वो कीर्ति का हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींच लेता है। वो दोनों पलटकर अपने साढ़े तीन साल के बेटे को देखते हैं जो अभी भी गहरी नींद में सो रहा है। कीर्ति शौर्य के कंधे पर सिर रखकर सूरज को देखने लगती है। सूरज को देखते-देखते उन दोनों के हाथ की कसाहट बढ़ती जाती है। आज बादलों के ऊपर आते हुए इस सूरज को देखते हुए शौर्य और कीर्ति के रिश्ते ने 5 साल पूरे कर लिए हैं।
“कटहल” कई तरह से सामाजिक मुद्दों पर चोट करती है लेकिन..
हाल ही में हिन्दी सिनेमा की कुछ फिल्मों ने अपनी पटकथा के चलते लोगों के बीच चर्चा का विषय बनीं। इन फिल्मों में देश के ऐसे मुद्दों को उछला गया जिन्होंने लोगों के विचारों में उथल-पुथल मचा दी। कश्मीर फ़ाइल्स और केरला स्टोरी जैसी फ़िल्म्स ने ग्राउन्ड लेवल पर सक्रिय संगठनों से लेकर व्हाट्सएप पर मौजूद तथाकथित कट्टरपंथियों को चर्चा-बहस और आरोप-प्रत्यारोप का मौका दिया। इस दौरान जिस तथ्य को लेकर वैचारिक हमले किए जा रहे थे उसे कोर्ट ने केरला स्टोरी फ़िल्म प्रदर्शन के दौरान तथ्यों को सुधारकर पेश करने को कहा। लेकिन जिन्हें बोलने का मौका चाहिए, उन्होंने यहाँ भी बोलने का मौका ढूंढ लिया। फिल्म को कुछ राज्यों में टैक्स फ्री किया गया और कुछ राज्यों में इसकी मांग होती रही और कुछ राज्यों में ने कुछ संगठनों ने मुफ़्त में ये फिल्म लोगों को दिखाई। खासतौर से महिलाओं और लड़कियों को। इसके लिए लोगों से चन्दा भी एकत्रित किया गया और पूरे के पूरे शोज़ बुक किए गए। इसके चलते दोनों फिल्मों को बड़ा फ़ायदा हुआ।
इस सबके के बीच में इंटरनेट पर मौजूद एक ott प्लैट्फॉर्म netflix पर एक फिल्म आती है “कटहल”, जो बहुत छोटे-छोटे सामाजिक मुद्दों पर प्रहार करती है। ऐसे मुद्दे जो आज़ादी के पहले से आज भी मारे बीच सिर उठाए घूम रहे हैं। चाहे वो जात-पात हो, या निम्न या असहाय वर्ग की समस्याओं को नज़रअंदाज़ करना, या फिर राजनीतिक रसूख का गलत इस्तेमाल करना। लेकिन धार्मिक कट्टरवाद के सामने शायद ये सब समस्याएँ छोटी हैं। फिल्में समाज का आईना होती हैं। समाज में जो कुछ घटित हो रहा है उससे प्रेरित होती हैं। फिल्ममेकर्स क्रिएटिव लिबर्टी लेकर तथ्यों को तोड़-मरोड़कर भी पेश करते हैं। लेकिन आज जो अंधवाद चल रहा है, उसके पीछे चलने वाले लोगों को फिल्मों में केवल वो दिखता है जो वो देखना चाहते हैं और उन्हें फ़ैक्ट की तरह पेश करके लोगों को गुमराह भी करते हैं। खैर, कटहल में ऐसा कुछ नहीं है जिससे विभिन्न संगठन “quote” करके अपना अजेन्डा सेट कर सकें। इसलिए शायद ये फिल्म उन तक नहीं पहुँच पायी। यशोवर्धन मिश्रा द्वारा लिखित और सान्या मल्होत्रा के मुख्य किरदार वाली कठहल में हल्की-फुलकी कॉमेडी के बीच में आपको सामाजिक व्यंग्य भी मिलेंगे। फिल्म का प्लॉट एक विशेष प्रजाति के दो कटहलों की चोरी पर आधारित है। फिल्म में वो कटहल विजय राज के राजनैतिक करियर को बूस्ट करने के लिए बहुत ज़रूरी हैं। जिसके लिए पुलिस महकमे को उन्हें ढूँढने के पीछे लगा दिया जाता है। लेकिन ठहरिए, क्या पुलिस के पास चोरी हुए कटहल ढूँढने से ज़्यादा ज़रूरी काम नहीं है? ऐसे बहुत से सवाल और एक बड़ा ट्विस्ट इस फिल्म में मौजूद है। फिल्म का निर्देशन, आर्ट डिपार्ट्मन्ट की बारीकियाँ और कलाकारों का अभिनय दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ने में सफल हुए हैं।
जबलपुर के कलाकारों से भरी हुई है फ़िल्म – फिल्म में संस्कारधानी के रघुबीर यादव, आशुतोष द्विवेदी, अंशुल ठाकुर, भगवान दास पटेल (बी.डी. भैया), बी. के. तिवारी भी मौजूद हैं। हालांकि चारों छोटे-छोटे किरदार के लिए फिल्म में नज़र आते हैं। लेकिन किरदारों के बिना फिल्में अधूरी होती हैं। रघुबीर यादव लंबे समय से हिन्दी सिनेमा में काम कर रहे हैं। उनका अभिनय हमेशा की तरह बढ़िया है। पुलिस अधिकारी के तौर पर आशुतोष अपनी छाप छोड़ने में सफल हुए हैं। वहीं अंशुल ठाकुर ने भी अपने किरदार में जान डालने के लिए जो मेहनत की है वो दिखाई देती है। दोनों ही जबलपुर की नाट्यकला संस्थाओं से लंबे समय से जुड़े रहे हैं। फिल्म में नेहा सराफ़, आराधना परस्ते भी हैं जिनका जबलपुर के थिएटर्स से जुड़ाव रहा है। साथ ही संगीत के क्षेत्र की जानी-मानी हस्ती डॉ. तापसी नागराज की भी इस फिल्म में झलक दिखाई देती है।
आदमी से आदमीयत दूसर कोसों हो गई है, हो सके तो इसकी हिफ़ाज़त कीजिए साब जी
उत्तर पश्चिमी दिल्ली के शाहबाद डेरी इलाके में हुई 16 वर्षीय लड़की कि निर्मम हत्या का विडिओ सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है। आरोपी की गिरफ़्तारी भी हो चुकी है। विडिओ में देखा जा सकता है कि हत्यारा लड़की पर पहले चाकू से दर्जनों वार करता है और उसके बाद जब लड़की मरणासन्न स्थिति में पहुँच जाती है तो उसे लात मारता है। फिर पत्थर उठाकर उस पर पटकता है। इतनी निर्ममता की वजह से उस लड़की की मौके पर ही मौत हो जाती है। वहाँ सिर्फ उसकी मृत्यु नहीं हुई। उससे एक-दो फ़िट की दूरी पर मानवीय संवेदनाएँ भी दम तोड़ रहीं थीं। क्यूंकि उस चहल-पहल भरी गली में उन तमाम आते-जाते लोगों पर वो एक लड़का भारी था, जो उसकी हत्या कर रहा था। इस घटना के बाद राजनीतिक दल और संगठन इस मामले में धार्मिक रोटी सेंकने में लगे हुए हैं। लेकिन किसी ने ये नहीं कहा कि वो लोग जो वहाँ मौजूद थे उनकी रीढ़ की हड्डी में इतना दम नहीं था कि उस लड़के पर टूट पड़ते? लोग एक चाकू से इतने खौफ़ज़दा थे कि वो उससे लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाए? जो संगठन इस मामले को धार्मिक रंग देने में व्यस्त हैं उन्हें उस क्षेत्र में जाकर पहले लोगों का ज़मीर जगाना चाहिए। उन्हें ये बताना चाहिए कि अगर पड़ोस के घर में आग लगी है तो उस आग को बुझाना चाहिए, न कि खड़े होकर तमाशा देखना चाहिए। अपराधियों के हौसले इसलिए बुलंद हैं क्यूंकि उन्हें पता है कि यहाँ तमाशा देखने वालों की तादाद ज़्यादा है। अगर आप खुद तमाशबीन हैं तो आप मदद की उम्मीद किससे करेंगे? किसी और के साथ होने वाली घटना में आप मूक दर्शक बने खड़े हैं तो आप अपनी बारी में मदद की उम्मीद किससे करेंगे? किसी शायर का शे’र है जो शायद
आदमी से आदमीयत दूसर कोसों हो गई है,
हो सके तो इसकी हिफ़ाज़त कीजिए साब जी
मेरे पिताजी मेरा वाईफाई इस्तेमाल करते हैं,उन्हें कैसे रोकूँ?
कहते हैं कि यदि आप किसी चीज़ के बारे में नहीं जानते हैं तो आपको उससे संबंधित प्रश्न पूछना चाहिए। क्यूंकि जीवन भर अज्ञानी बने रहने से अच्छा है पाँच मिनट के लिए मूर्ख कहलाना। इसका मतलब इंसान को प्रश्न पूछना चाहिए लेकिन कोरा के ये प्रश्न पढ़ने के बाद आपको लगने लगेगा कि “लोग ऐसे भी सवाल पूछते हैं? ऐसे सवाल पूछने पर टैक्स लगना चाहिए।”
आगे बढ़ने से पहले आपको कोरा के बारे में बता देते हैं। कोरा इंटरनेट पर मौजूद एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो यूज़र्स को सवाल पूछने और दूसरे यूज़र्स को सवाल का जवाब देने के मौका देता है। लेकिन यूज़र्स कभी-कभी ऐसे सवाल पूछ लेते हैं कि आप सवाल को 5 बार पढ़ते हैं और इसके बाद आपको समझ आता है कि आपने सवाल एकदम सही पढ़ा है। कोरा में ऐसे काफी सवाल पूछे जाते हैं जो बेतुके होते हैं। लेकिन कुछ सवाल इस बेतुकेपन की हद को भी पार कर जाते हैं। जैसे ये सवाल, मैं 22 साल का हूँ और घर के वाईफाई (इंटरनेट) का भूटान भी करता हूँ। लेकिन मेरे पिता लगातार उस वाईफाई को इस्तेमाल करते हैं, कभी भुगतान नहीं करते। मैं उन्हें उसका भुगतान करने तक वाईफाई इस्तेमाल करने से कैसे रोकूँ? इस सवाल को पढ़कर आपके दिमाग में जो चलर यह है वो आप कॉमेंट्स में बताईयेगा लेकिन यूज़र्स ने इसका जो जवाब दिया वो हम आपको बताते हैं, एक यूज़र ने अपने जवाब में लिखा कि “क्या तुम अपने पेरेंट्स के घर पर रहते हो? अगर हाँ तो क्या तुम उन्हें घर का किराया देते हो?”, एक अन्य यूजर ने लिखा कि “जिस बिजली से उस वाईफाई का राउटर चलता है, क्या तुम उसका किराया देते हो? एक यूज़र ने लिखा कि “इधर तो मैं भुगतान करता हूँ और आस-पड़ोस के लोग भी यूज़ करते हैं”
एक अन्य यूज़र द्वारा ये प्रश्न भी पूछा गया “मेरे 12 वर्षीय पुत्र की मृत्यु स्वयं उसके द्वारा सांस रोकने से हो गई, क्यूंकि मैंने उसे उसके जन्मदिन पर एक ऑपटिमस प्राइम” खिलौना नहीं दिलवाया। अब मैं क्या करूँ?“ इस सवाल के जवाब पर कुछ यूज़र्स ने उसे झूठा कहा, किसी ने कहा स्वयं सांस रोककर मरना एक झूठी अवधारणा है और एक यूज़र ने प्रश्नकर्ता को सिलसिलेवार तरीके से नौकरी के लिए अप्लाय करने की सलाह भी दी। उसका कहना था कि इंटरनेट पर इस तरह के ट्रोल क्वेश्चन करने से अच्छा है कहीं जॉब कर लो।
इन प्रश्नों पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें और अगर आपके पास भी कोई सवाल है तो पूछिए।
बाढ़ संबंधी आपदाओं से निपटने निगम ने कसी कमर, जारी किए हेल्पलाइन नंबर्स
मानसून के दौरान यदि बाढ़ एवं जलप्लावन जैसी कोई स्थिति बनती है, तो उससे त्वरित निपटने के लिए नगर निगम ने निगमायुक्त स्वप्निल वानखड़े के मार्गदर्शन में व्यापक कार्य योजना तैयार की गई है। जिसमें अग्नि शमन मुख्यालय के अंतर्गत बाढ़ आपदा नियंत्रण कक्ष की स्थापना की गई है। साथ ही बाढ़ आपदा संबंधी समस्याओं के निराकरण के लिए अग्निशमन विभाग, स्वास्थ्य विभाग, प्रकाश विभाग, एवं जल विभाग के कर्मचारियों के संयुक्त दल गठित किये गए हैं। उन्होंने बताया कि सहायक आयुक्त अंकिता जैन को बाढ़ आपदा नियंत्रण कक्ष की नोडल अधिकारी नियुक्त की गई हैं, इनके निर्देशन में प्रभारी अग्नि शमन अधिकारी कुशाग्र ठाकुर एवं प्रभारी सहायक अग्निशमन अधिकारी राजेन्द्र पटैल कार्य करेगें।
सर्प विशेषज्ञों के नंबर हुए जारी
वर्षाकाल में प्रायः रिहायशी क्षेत्रों में सर्प प्रवेश कर जाते हैं। इसलिए सर्प विशेषज्ञों की डयूटी भी संभागवार लगाई गयी है। जिसमें सर्प विशेषज्ञ मनीष कुलश्रेष्ठ संभाग क्रमांक 1,2,3,4 एवं 13 मोबाइल नं. 9425151570, हरेन्द्र शर्मा संभाग क्रमांक 7,8,9,10,11, एवं 15 मोबाइल नंम्बर 9826865563 एवं धनंजय घोष संभाग क्रमांक 5,6,12,14 एवं 16 मोबाइल नंम्बर 9926339202 नाम शामिल हैं।
इमरजेन्सी हेल्पलाइन नंबर जारी
अतिवृष्टि के दौरान जलप्लावन संभावित क्षेत्रों में बचाव एवं रेस्क्यू कार्य हेतु 25 नाव एवं गोताखोरों की भी व्यवस्था रहेगी साथ ही बाढ़ आपदा और अन्य आकस्मिक घटनाओं-दुर्घटनाओं की तुरंत जानकारी देने आम नागरिकों के लिए नगर निगम द्वारा दूरभाष नम्बर 0761-2610917, 4023227 एवं इमरजेंसी हेल्पलाइन 101 (24×7) जारी किए गए हैं।
इसके अलावा समस्त संभागीय अधिकारी संभाग स्तरीय बाढ़ आपदा नियंत्रण कक्ष की स्थापना तथा संभाग स्तरीय बाढ़ नियंत्रण दल का गठन करेगें। साथ ही संभाग अंतर्गत जलप्लावन संभावित क्षेत्र तथा पुनर्वास योग्य खेत्र चिन्हित कर इसी सूचना बाढ़ नियंत्रण कक्ष में देगें तथा अतिवृष्टि या अन्य बाढ़ संबंधी परिस्थितियों में संभागीय अधिकारी बाढ़ आपदा नियंत्रण कक्ष के सम्पर्क में रहेगें। अतिवृष्टि के दौरान जल प्लावन की स्थिति निर्मित होने पर जल निकासी एवं पंप हाउट हेतु सकर मशीन, जेट मशीन, फायर वाहन ऑपरेटर सहित उपलब्ध रहेगें।
आपदा प्रबंधन के लिए आवश्यकता पड़ने पर अधिकारियों से कर सकते हैं सम्पर्क:
निगमायुक्त स्वप्निल वानखड़े ने बताया कि जलप्लावन एवं बाढ़ जैसी स्थिति से निपटने के लिए मुख्यालय के साथ-साथ सभी 16 संभागों में टीमें तैयार रहेंगी जिसके अंतर्गत मुख्यालय के फायर ऑफिस में मशीनरी संशाधनों के साथ-साथ तीन शिफ्टों में 24 घंटे अलग अलग टीमें तैयार रहेगीं वहीं 16 संभागों में भी संभाग स्तर पर तीन शिफ्टों में 24 घंटे प्राकृतिक आपदा से निपटने और लोगों को राहत पहुॅंचाने के लिए टीमें तैनात रहेंगी। इसके लिए निगमायुक्त स्वप्निल वानखड़े ने सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देश जारी किये हैं और सभी को 24 घंटे अलर्ट रहने के निर्देश भी दिये हैं। वानखड़े ने बताया कि आपदा प्रबंधन के लिए आवश्यकता पड़ने पर निम्न अधिकारियों से नागरिक सम्पर्क कर सकते हैं। जिसमें
सहायक आयुक्त अंकिता जैन मोबाइल नम्बर 8225928069,
प्रभारी अग्निशमन अधिकारी कुसाग्र ठाकुर मोबाइल नम्बर 9893986939,
प्रभारी सहायक अग्निशमन अधिकारी राजेन्द्र पटैल मोबाइल नम्बर 9425160341,
लोककर्म विभाग संबंधी कार्य, भवन शाखा आदि प्रभारी अधीक्षण यंत्री अजय शर्मा मोबाइल नम्बर 9425150843,
कार्यपालन यंत्री आर.के. गुप्ता मोबाइल नम्बर 9407339891,
जल विभाग संबंधी कार्य कार्यपालन यंत्री कमलेश श्रीवास्तव मोबाइल नम्बर 9425180673,
प्रभारी सहायक यंत्री रविन्द्र ठाकुर मोबाइल नम्बर 9685043538,
वाहन एवं संसाधन उपलब्ध कराने का कार्य कार्यपालन यंत्री जी.एस. मरावी मोबाइल नम्बर 9770313416,
उपयंत्री देवेन्द्र सिंह चौहान मोबाइल नम्बर 9827826490,
स्वास्थ्य संबंधी कार्य कार्यपालन यंत्री भूपेन्द्र सिंह बघेल मोबाइल नम्बर 9893263054,
प्रकाश विभाग संबंधी कार्य कार्यपालन यंत्री नवीन लोनारे मोबाइल नम्बर 9425163317,
सहायक आयुक्त संभव मनु अयाची मोबाइल नम्बर 7000598519,
प्रभारी सहायक यंत्री संदीप जायसवाल मोबाइल नम्बर 9826157492,
विस्थापन स्िल एवं उसके अंतर्गत मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराने का कार्य सहायक आयुक्त अंकिता जैन मोबाइल नम्बर 8225928069,
प्रभारी शासकीय योजना राकेश तिवारी मोबाइल नम्बर 9826342464,
विस्थापितों के लिए परिवहन की व्यवस्था सी.ई.ओ. जेसीटीएसएल सचिन विश्वकर्मा मोबाइल नम्बर 9425413007,
अतिक्रमण संबंधी कार्य प्रभारी अपर आयुक्त मानवेन्द्र सिंह राजपूत मोबाइल नम्बर 7000368647,
उपायुक्त मनोज श्रीवास्तव मोबाइल नम्बर 7024322555,
सहायक अतिक्रमण निरोधक अधिकारी सागर बोरकर मोबाइल नम्बर 9755937121
एवं उद्यान संबंधी कार्य के लिए प्रभारी उद्यान अधिकारी आदित्य शुक्ला मोबाइल नम्बर 8770993228
के नाम शामिल है।
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एसपी विद्यार्थी द्वारा गठित “शक्ति टास्क फ़ोर्स” महिलाओं की मदद के लिए एक्शन मोड में
“शक्ति टास्क फ़ोर्स” ने आज नशा करके महिलाओं से विवाद करने वाले दो युवकों को पकड़ा और एक नाबालिक लड़की सुपुर्द की उसके परिजनों को
आधारताल क्षेत्र में मंदिर के समीप गाँजा का नशा करते हुए दो युवकों को महिलाओं से बहस करना काफी महंगा पड़ गया। उन महिलाओं ने उनकी शिकायत पुलिस में कर दी जिसके तुरंत बाद ही “शक्ति टास्क फोर्स” ने उन युवकों को पकड़कर आधारताल पुलिस के सुपुर्द कर दिया। इसी तरह शोभापुर काली मंदिर के पास 2 नाबालिक बालक-बालिकाओं से पूछताछ करने के बाद जब उनके माता पिता से संपर्क किया गया तो पता चला कि बालिका सुबह घर से बिना बताये निकली है। जिसकी तलाश परिवारजन कर रहे हैं। इसके बाद बालिका को परिजनो के पहुंचने पर उनके सुपुर्द किया गया।
उक्त कार्यवाही में उप निरीक्षक संध्या तिवारी के नेतृत्व में प्रधान आरक्षक ब्रजेश भदौरिया, आरक्षक मनीष कुमार, जितेन्द्र सिंह, महिला आरक्षक रजनी शिवहरे, मनीष पटेल, नगर सैनिक सुमन की सराहनीय भूमिका रही।
विदित हो कि जबलपुर को छेड़छाड़ मुक्त करने और महिलाओं के लिये सुरक्षित शहर बनाने की दृष्टि से जबलपुर पुलिस अधीक्षक तुषार कांत विद्यार्थी की पहल पर ‘‘शक्ति टास्क फोर्स ‘‘ का गठन किया गया है। साथ ही महिलायें और बालिकायें निर्भय होेकर अपने घरों से निकल सकें इसलिए महाविद्यालयों/स्कूल/अन्य शैक्षणिक संस्थानों/कोचिंग स्थानों/सार्वजनिक स्थलों- आटो/बस स्टैण्ड, चौपाटी, पर्यटन स्थल, गार्डन, मॉल, इत्यादि भीड़-भाड़ वाले संभावित स्थान, जहाँ पर महिलाओं/बालिकाओं के साथ दुव्यवहार की घटनायें घटित हो सकती है, वहाँ लगातार प्रातः 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक और शाम 5 बजे से रात्रि 9 बजे तक भ्रमण करते हुये समझाईश दी जा रही है।
वहीं ‘‘शक्ति टास्क फोर्स‘‘ को और बेहतर बनाने जबलपुर एसपी तुषार कांत विद्यार्थी पहले ही हेल्पलाईन नम्बर 75876-32990 जारी कर चुके हैं। जो कि पुलिस कन्ट्रोलरूम जबलपुर में ड्यूटी अधिकारी के डेस्क पर रहता है। इस पर फोन करके महिलायें एवं बेटियाँ संपर्क करके सहायता मांग सकती हैं।
उक्त हेल्प लाईन नम्बर पर छेड़छाड़, छींटाकशी या महिलाओं से सम्बंधित किसी भी प्रकार की कोई सूचना मिलने पर तत्काल कन्ट्रोलरूम ड्यूटी अधिकारी के द्वारा शक्ति टास्क फोर्स के प्रभारी अधिकारी को प्रातः 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक तथा शाम 5 बजे से रात्रि 9 बजे तक दी जाती है इसके पश्चात अन्य समय में सम्बंधित थाना प्रभारी एवं राजपत्रित अधिकारी को सूचना से अवगत कराया जाता है, इस हेतु एक रजिस्टर संधारित किया गया है। जिसमें प्राप्त होने वाली सूचनाओं को लिखा जाता है एवं सूचना पर क्या कार्यवाही की गयी इसका भी उल्लेख किया जाता है।
इस हेल्पलाइन नंबर को सेव कर लें और इस खबर को अधिक से अधिक महिलाओं और बालिकाओं को भेजें ताकि वे भी इस हेल्पलाइन नंबर को सेव कर सकें।
वक़्त
कुदरत के इशारों को पढ़ने में उसे बहुत दिलचस्पी रही है। इसलिए वो अपने आसपास हो रही घटनाओं को बेहद गंभीरता से देखता और उस घटना के पीछे छिपे संकेतों को पढ़ने की कोशिश करता। कुछ समय से उसे घड़ी में समय जोड़ी में दिख रहा है। जैसे वो दिन या रात में कभी भी अपनी कलाई पर बंधी डिजिटल घड़ी या लैपटॉप के स्क्रीन की ओर देखता उसे समय 02:02 या 13:13 इस तरह की जोड़ियों में दिखता। वो इस संकेत को समझने की चेष्टा करता। चूंकि वो स्वयं अकेला है यानि उसका कोई जोड़ीदार नहीं है इसलिए उसे लगता कि समय उसे जोड़ी बनाने के संकेत दे रहा है। हालांकि उसे वयस्कता के पायदान को पार किए 7 वर्ष का समय बीत चुका है। तो उसने डेटिंग एप्स पर अपनी प्रोफाइल बनाकर जोड़ीदार ढूँढने के इरादे स्पष्ट कर दिए। कुछ लोगों के bio में दिए गए विवरण को पढ़कर उसने उन्हें राइट स्वाइप भी कर दिया। चूंकि कुदरत का इशारा है इसलिए वो रोज़ इठकर डेटिंग एप्स देखता और बहुत गंभीरता से दूसरों की प्रोफाइल पढ़ता और राइट स्वाइप कर देता। ये सिलसिला एक महीने तक लगतार चला। लेकिन उसे अब तक किसी ने राइट स्वाइप नहीं किया था। डेटिंग एप्स के मुताबिक अगर आपने किसी को राइट स्वाइप किया है और दूसरा भी तुम्हें राइट स्वाइप कर दे, तब जाकर आप उसे और वो तुम्हें मेसेज भेज सकता है।
एक महीने की साधना किसी काम नहीं आई। उसने एप्स हटा दिए। हालांकि उसे अभी भी जोड़ी में ही समय दिखता है लेकिन वो वक़्त के इशारे को अनदेखा करके अपने काम में लग गया। एक दिन अपनी सोशल वर्किंग के दौरान ही उसे दूसरे ग्रुप की सोशल ऐक्टिविस्ट टकरायी। दोनों ने एक-दूसरे को मोबाईल नंबर भी दिए। उन दोनों की बात शुरू एक-दूसरे की मदद करने से हुई और कुछ दिनों बात दोनों एक-दूसरे में रुचि लेने लगे। संयोग से जो उसे मिली थी उसने भी अपने घड़ी में वक़्त के जोड़ी में दिखने की बात बतायी। दोनों एक-दूसरे से लगातार मिलने लगे। काफी वक़्त साथ बिताने लगे। एक दिन वो बोली कि उसे आईएएस की कोचिंग करने दिल्ली जाना है। ये सुनकर वो थोड़ा हताश हुआ लेकिन उसने खुशी-खुशी उसे जाने दिया। वहाँ जाकर वो व्यस्त हो गई। अब दोनों की बात सोशल मीडिया एप्स के ज़रिए ही होती। वो उधर पढ़ने में लगी रही और ये इधर सोशल वर्किंग में ही जुटा रहा। एक-दूसरे से बातचीत भी कम हो गई और धीरे-धीरे बंद भी। उसे जोड़ी में समय दिखना भी बंद हो गया। उसे गए तीन साल हो गए। वो दिल्ली से अब तक नहीं लौटी। हालांकि पिछले तीन सालों में उसकी दाढ़ी काफी बढ़ गई। जिसे बीच-बीच में वो ट्रिम करता रहता। रिज़ल्ट आया तो उसका और उसके बैच के कुछ लोगों का आईएएस में सिलेक्शन हो गया। ये उसे बधाई देने के लिए कॉल करता रहा लेकिन उसने फोन नहीं उठाया। इसलिए इसने बधाई का मेसेज छोड़ दिया। जिसका कोई जवाब कभी नहीं आया। वो वापिस शहर आई, इसका पता उसे शहर के एक अखबार में दिए इंटरव्यू से पता चला। वो उसे बधाई देने उसके घर गया लेकिन वो घर पर नहीं मिली। कुछ महीनों बाद उसे अपने एक दोस्त से पता चला कि उसने अपने ही एक बैचमेट से शादी कर ली, जिसका इस साल आईएएस में सिलेक्शन हुआ है। वो काफी दुखी हुआ। फिर सोचने लगा कि उसने शायद कुदरत के इशारे को गलत अर्थों में लिया। या फिर उसने उन्हें देखकर वही समझा जो वो समझना चाहता था। खैर, अब उसने डिजिटल की जगह डायल वाले घड़ी ले ली और लैपटॉप के टाइम दिखाने वाले हिस्से पर काला टेप लगा दिया। अब वो अपने आसपास घटने वाली चीजों को मन में ट्रांसलेट नहीं करता और न ही समझने की कोशिश करता। बहुत सालों बाद एक घोटाले के खुलने पर आईएएस दंपति के घर पर छापे पड़ने और गिरफ़्तारी की खबर आई तो न्यूज़ चैनल्स ने उस लड़के को घेर लिया। उसकी दाढ़ी काफी बढ़ चुकी है। अब वो ठीक से पहचान में भी नहीं आता है। न्यूज़ चैनल वालों ने जब उससे पूछा कि उसने दो बड़े अधिकारियों के भ्रष्टाचार के बारे में कैसे पता चला। तो वो बस मुस्कुराया और बोला, अगर कोई व्यक्ति छोटी बेईमानी करता है तो पता चल जाता है कि अगर भविष्य में उसे मौका तो मिला तो वो बड़ी बेईमानी जरूर करेगा। इन्टरव्यू देकर वो घर के अंदर गया और अलमारी में रखी अपनी डिजिटल घड़ी को लेकर अपनी कलाई में बांध लेता है। बरसों से लैपटॉप पर चिपके और कमजोर पड़ चुके काले टेप को भी वो हटा देता है। उसका इंटरव्यू न्यूज चैनल्स में प्रसारित होने के बाद उसके मोबाईल पर रात 01:01 पर एक मेसेज आता है, जिसमें लिखा है “सॉरी”।
खुशियों का पासवॉर्ड – खुश रहना है तो बीती बातों को कहो अलविदा और दिल से कर दो माफ़
रविवार को सदर के गैरीसन ग्राउन्ड में हजारों व्यक्ति खुशियों का पासवॉर्ड ढूँढने शिवानी दीदी के पास पहुँचे। इस सभा में सभा में जनप्रतिनिधि, भारतीय सेना के जवान, प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी, युवा, विद्यार्थी और सामान्य जनता मौजूद रही। बी के शिवानी दीदी के व्याख्यान हैप्पीनेस अनलिमिटेड को सुनने लोग देर तक सभा में जमे रहे।
शिवानी दीदी ने अपने व्याख्यान में बताया कि अगर हमारे घर परिवार में कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से अस्वस्थ है तो उसके प्रति चिंता का भाव न रखते हुए शुभ चिंतन का भाव रखना चाहिये और उसको मनसा से शक्ति और दुआए देना चाहिए, कहते भी है कि कई बार जहां पर दवाए काम नहीं करती है वहा पर दुआएँ काम कर जाती हैं। हमे अपने प्रति और अपने परिवार और आस पास के सभी व्यक्तियों के प्रति सदैव शुभ चिंतन ही करना चाहिए। यह शुभ चिंतन हमें अनेक परेशानियों से बचा कर के आन्तरिक आनंद की अनुभूति करवाएगा।
उन्होंने आगे कहा कि आने वाले पांच दिन के लिए हम सब यह प्रतिज्ञा कर ले कि जिसने भी हमें दुःख दिया हो उसको भी दिल से दुआए देते रहेंगे – साथ ही हम अपने प्रति दूसरों के द्वारा हुई गलतियां जो हमारे मन में गाँठ बन कर लगी हुई हैं, उसके लिए उस व्यक्ति को क्षमा कर देंगे और जिस व्यक्ति का हमने दिल दुखाया हो उस से क्षमा मांग लेंगे। हम हर बीती हुई बात को अब जिन्दगी में फुल स्टॉप लगा देंगे और हर क्षण की नवीनता का अनुभव करेंगे।
शिवानी दीदी ने सबको बतलाया कि प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के सेवा केन्द्रों में जा कर निशुल्क राजयोग का प्रशिक्षण प्राप्त किया जा सकता है और राजयोग अपना कर अपने जीवन में हर परिस्थिति में अचल रह कर के जीवन के आनन्द का अनुभव किया जा सकता है। साथ ही जीवन में आने वाली परिस्थिति हमें मजबूत बनाने के लिए आती है और हमें भी परिस्थिति को साक्षी हो कर के देखने का अभ्यास करना चाहिए ताकि हम किसी घटना से अटेच अफेक्ट न हो कर के जीवन को परफेक्ट बना सके।
कार्य्रकम में स्थानीय विधायक अशोक रोहाणी, महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नू , नगरनिगम अध्यक्ष रिंकू विज, नेता प्रतिपक्ष कमलेश अग्रवाल समेत अन्य जनप्रतिनिधि और गणमान्य नागरिक मौजूद रहे। ब्रह्माकुमारीज इंदौर जोन की निदेशिका बी के हेमलता दीदी ने सभी का शब्दों से स्वागत किया और जबलपुर नगर में इस अप्रतिम कार्यक्रम के आयोजन पर अपनी शुभकामनाएँ दीं। स्थानीय सेवा केंद्र की संचालिका बी के विमला दीदी जी ने प्रशासन, सेवाधारियों, जनप्रतिनिधियों और कार्यक्रम में पधारे श्रोताओं का आभार व्यक्त किया। कार्य्रकम का संचालन बी के बाला बहन ने किया।
अ रैंडम डे इन अ रिलेशनशिप
कल रात दोनों की फोन पर बहुत लड़ाई हुई। उसे लगता है कि उसका किसी और के साथ चक्कर चल रहा है। बात इतनी आगे पहुँच गई कि उसने उससे एक हफ्ते तक बात न करने की कसम खा ली। इतना मन-मुटाव होने के बाद भी दोनों फोन रखने के लिए राज़ी नहीं थे। शायद उन दोनों को उम्मीद थी कि कोई न कोई मनाने की पहल शुरू करेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। आखिरकार एक-दूसरे की शक्ल ज़िंदगी भर न देखने और मर भी जाऊँ तो बात न करने की बात पर सेटलमेंट हुआ। दोनों ने फोन रख दिया और सोने चले गए। लेकिन सोने से पहले अपने-अपने तकियों को आसुओं से गीला भी कर दिया। सुबह दोनों की नींद देर से और आगे-पीछे ही खुली। उसने उसको मेसेज करके गुड मॉर्निंग विश किया। उसने भी उसको जवाब में गुड मॉर्निंग कहा। थोड़ी देर में दोनों ऑफिस के लिए तैयार भी हुए। उसने उसको उसके घर से पिक किया और रोज़ की तरह ऑफिस के बाहर नाश्ते के लिए पोहे की दुकान पर रुके। उसने उसके पोहे में प्याज नहीं डलवायी। उसे उसके खाने की पसंद नापसंद के बारे में पता है। दोनों ने एक-दूसरे से अब तक कोई बात नहीं की। दोनों अपने-अपने दफ्तरों में अपने कामों में लग गए। दिन में दोनों ऑफिस के पास की कैन्टीन में लंच पर मिले। एक टेबल पर साथ बैठकर खाना खाया लेकिन कोई बात नहीं की। लंच करके वापिस अपने-अपने काम पर भी लौट गए। शाम को काम खत्म करके पार्किंग में मिले और साथ ही वापिस चल पड़े। रास्ते में एक कार अचानक ही उसकी गाड़ी के सामने आ गई। उसने झट से ब्रेक दबाया। इससे उसको झटका लगा। उसने उससे सॉरी कहा। उसने भी उससे सॉरी कहा। इसके बाद उसने डिनर के लिए पूछा। उसने हाँ कह दिया। रात को दोनों खाने पर फिर मिले, एक-दूसरे के पसंदीदा रंगों के लिबास पहने हुए। इस दफा दोनों एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगे। इसके बाद उसकी उससे खाने के टेबल पर खाने के पहले, खाने दौरान और खाने के बाद बिल आने तक बहुत सारी बातें हुईं।