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जड़ी-बूटियों से कर देते हैं कैंसर निःशुल्क इलाज

दुनिया की लाइलाज बीमारियों में से एक है कैंसर। जिसकी चपेट में आने के बाद रोगी की हालात बद से बदतर हो जाती है। अंग्रेज़ी चिकित्सा पद्धति यानि एलोपैथी में कैंसर के लिए इलाज तो उपलब्ध है लेकिन वो भी कैंसर को जड़ से समाप्त करने का दावा नहीं करता। हालाँकि इस इलाज के ज़रिये कई रोगियों ने कैंसर को हराया है तो कुछ इलाज के दौरान ही इतने कमज़ोर हो जाते हैं कि डॉक्टर भी हाथ खड़े कर लेते हैं। कीमोथेरेपी और रेडियेशन से मिलने वाला इलाज पीड़ादायक तो होता है लेकिन कैंसर जैसी ख़तरनाक बीमारी का सामना करने के लिए मरीज़ इस पीड़ा को सहने के लिए भी तैयार रहते हैं। मुश्किल होती है तो रोगी के परिजनों को जो अपने सामने मरीज़ की बनती-बिगड़ती हालत के उतार-चढ़ाव को देखते हैं।

लेकिन क्या विश्व की प्राचीनतम सभ्यता और चरक संहिता की जननी इस भारतभूमि पर कैंसर का इलाज उपलब्ध नहीं है? इस सवाल की खोज करते हुए हम पहुँचे मध्य प्रदेश के गाँव कान्हावाड़ी जो घोड़ाडोंगरी नामक रेलवे स्टेशन से लगभग 4-5 किलोमीटर दूर है। अगर आप सड़क के रास्ते आ रहे हैं तो आपको मध्यप्रदेश के बैतूल ज़िले में स्थिति कान्हावाड़ी गूगल मैप पर ढूंढना चाहिये। इस गाँव में पिछली कई पीढ़ियों से वैद्य बाबूलाल भगत के पूर्वज कैंसर और अन्य लाइलाज बीमारियों की आयुर्वेदिक दवाई देते आ रहे हैं। ख़ास बात ये है कि इसके लिए वो किसी भी तरह की कोई फ़ीस नहीं लेते। वो बस रोगियों से दवा को एकदम समय से देने और कड़ाई से परहेज़ करने के लिए कहते हैं। बाबूलाल के अन्य सहयोगी रोगियों को दवा वितरित करने में उनका सहयोग करते हैं। यहाँ आने वाले रोगियों की तादाद इतनी ज़्यादा होती है कि यहाँ के वैद्य को जड़ी-बूटियां पीसने का समय नहीं मिल पाता। इसलिए मरीज़ और उनके परिजनों को दवाई तैयार करने की विधि बताई जाती है और साबुत जड़ी-बूटियां ही दी जाती हैं। ऐसे में दवाईयों में स्टेरोइड होने की संभावना पूरी तरह ख़त्म हो जाती है। बाबूलाल सप्ताह में दो दिन यानि रविवार और मंगलवार को ही दवाई वितरित करते हैं और अन्य दिनों में वे कुछ जड़ी-बूटियाँ लेने स्वयं जाते हैं।

जब कोई मरीज स्वस्थ हो जाता है तो वो या उसके परिजन फोटो समेत अपनी बीमारी के ठीक होने का पत्र यहाँ भेंट करता है। वैसे तो यहाँ से इलाज करवाने वाले काफी लोगों ने बाबूलाल की दवा से ठीक होने का दावा किया है। उनमें से ही हम कुछ आपके लिए यहाँ लेकर आ रहे हैं। कैंसर पीड़ित मरीज के परिजन बताते हैं कि उनकी सास को कैंसर होने के बाद कीमोथेरेपी से गुज़रना पड़ा था, जिसके बाद वो बेहद कमजोर हो चुकी थीं। ऐसा लग रहा था कि अंग्रेजी इलाज का विपरीत असर हो रहा था। जब कीमो के बाद चिकित्सकों ने हाथ खड़े कर दिए तब वो अपनी सास को यहाँ लेकर आए जिसके बाद उन्हें स्थायी लाभ मिला। खैर, यहाँ कुछ लोग ये कह सकते हैं कि अंग्रेजी दवा ने अपना असर देर से दिखाया लेकिन एक अन्य मामले में सिवनी ज़िले की 65 वर्षीय महिला को पैंक्रियाटिक कैंसर के गंभीर लक्षण दिखने के बाद उसके परिजनों ने बिना देर किए यहाँ इलाज करवाना शुरू किया। शुरुआत में मरीज को बहुत कम आराम मिला। जिसका कारण वैद्य ने समय पर दवा का सेवन नहीं करना बताया। इसके बाद मरीज के परिजनों ने एकदम समय पर दवाईयों का सेवन सुनिश्चित किया। जिसके बाद प्रारम्भिक एक सप्ताह में मरीज स्वयं के दैनिक कार्यों को आसानी से सम्पन्न करने में सक्षम हो गया। लगभग 2 माह के इलाज में मरीज स्वस्थ हो गया। ऐसे यहाँ हज़ारों मामले हैं जिसमें मरीज़ों को लाभ मिला है। कई मामलों में दूसरी और तीसरी स्टेज के कैंसर में मरीज़ स्वस्थ हुए हैं और किसी में तो अंतिम स्टेज का कैंसर भी ठीक हुआ है। यहाँ सबके बारे में बताना संभव नहीं है।

मरीज़ों के अलावा यहाँ आने वाले ऐसे भी लोग हैं जो अपने ज़िले से सिर्फ मरीज लाने का काम करते हैं। यवतमाल के एक ड्राइवर पिछले आठ साल से 18 पेशेंट लेकर आ चुके हैं। जिन्होंने अपनी आँखों से सबको ठीक होते हुए देखा है उनमें से किसी को ब्रेस्ट केन्सर था, किसी को गाल का कैंसर का था। उनके लाये हुए मरीज़ ठीक होते रहे इस वजह से वो अब तक मरीज़ों को यहाँ लेकर आ रहे हैं।

वैद्य बाबूलाल भगत

कैंसर के अलावा अन्य असाध्य रोगों की भी देते हैं दवा – यहाँ आने वाले अधिकतर लोग ऐसा दावा करते हैं मेडिकल साइंस जिस बीमारी को पकड़ नहीं पाता ऐसे असाध्य बीमारियों का भी वैद्य बाबूलाल भगत इलाज करते हैं। इसके अलावा जिन दंपतियों को लंबे समय से संतान नहीं हुई है उसके लिए भी ये दवा देते हैं। वैद्य बाबूलाल कहते हैं कि कुछ दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ कठिनाई से उपलब्ध होते हैं इसलिए वे दवाईयों के नियमित और समय पर सेवन के लिए ज़ोर देते हैं ताकि मरीज़ों को शीघ्रता से लाभ हो।

प्राथमिक मीडिया की पड़ताल में ये बात सामने आयी कि मरीज और परिजन तमाम बीमारियों के ठीक होने का श्रेय वैद्य बाबूलाल भगत को देते हैं। यहाँ मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश से भी लोग आते हैं। लेकिन मार्केटिंग, विज्ञापन और प्रचार-प्रसार के दौर में आयुर्वेद पीछे छूटता जा रहा है। बड़ी-बड़ी दवा कंपनियां बुखार की दवाओं के प्रचार के लिए करोड़ों के उपहार ही बाँट देती हैं। वहीं वैद्य बाबूलाल मरीज़ों को निःशुल्क दवा दे रहे हैं। ऐसे में शासन को आयुर्वेद के द्वारा लोगों का उपचार करने वाले बाबूलाल जैसे वैद्यों को बढ़ावा देने के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए।

(अस्वीकरण- प्रस्तुत जानकारी देने में बेहद सावधानी बरती गई है। लेकिन मरीज़ के संबंध में कोई निर्णय या इलाज लेने से पहले विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इससे संबंधित जान-माल की हानि के लिए प्राथमिक मीडिया जिम्मेदार नहीं होगा।)

Chakreshhar Singh Surya
Chakreshhar Singh Suryahttps://www.prathmikmedia.com
चक्रेशहार सिंह सूर्या…! इतना लम्बा नाम!! अक्सर लोगों से ये प्रतिक्रया मिलती है। हालाँकि इन्टरनेट में ढूँढने पर भी ऐसे नाम का और कोई कॉम्बिनेशन नहीं मिलता। आर्ट्स से स्नातक करने के बाद पत्रकारिता से शुरुआत की उसके बाद 93.5 रेड एफ़एम में रेडियो जॉकी, 94.3 माय एफएम में कॉपीराइटर, टीवी और फिल्म्स में असिस्टेंट डायरेक्टर और डायलॉग राइटर के तौर पर काम किया। अब अलग-अलग माध्यमों के लिए फीचर फ़िल्म्स, ऑडियो-विज़ुअल एड, डॉक्यूमेंट्री, शॉर्ट फिल्म्स डायरेक्शन, स्टोरी, स्क्रिप्ट् राइटिंग, वॉईस ओवर का काम करते हैं। इन्हें लीक से हटकर काम और खबरें करना पसंद हैं। वर्तमान में प्राथमिक मीडिया साप्ताहिक हिन्दी समाचार पत्र और न्यूज़ पोर्टल के संपादक हैं। इनकी फोटो बेशक पुरानी है लेकिन आज भी इतने ही खुशमिज़ाज।
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