सागर, मध्यप्रदेश आबकारी विभाग में 42 वर्ष की सेवा देकर आज डेमन सिंह सूर्या उपायुक्त आबकारी संभागीय उड़नदस्ता, संभाग सागर, मध्यप्रदेश से आज सेवानिवृत्त हुए। वे जुलाई 2017 में दमोह से सागर स्थानांतरित होकर आबकारी उपनिरीक्षक के तौर पर आये और तब से यहीं सेवा देते रहे। कोरोना महामारी के चलते उनका विदाई समारोह किसी कार्यक्रम की तरह आयोजित न करके, बेहद सादे ढंग से और आवश्यक कर्मचारियों के बीच किया गया। उनका सेवानिवृत्ति का आदेश डॉ. प्रमोद कुमार झा उपायुक्त आबकारी, संभागीय उड़नदस्ता सागर ने ग्वालियर से ऑनलाइन जारी किया। अपनी सेवानिवृत्त के उपलक्ष्य में डेमन सिंह ने व्हाट्सएप पर एक भावुक संदेश पोस्ट किया।
“मेरे साथ-साथ मेरे सहयोगियों, मित्रों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों और मेरे बेटे के मित्रों ने सोचा था कि मेरे रिटायरमेंट का दिन बहुत यादगार बनाया जाएगा। क्योंकि हमारा परिवार छोटी-छोटी खुशियों को भी उत्सव के रूप में मनाता है। लेकिन कोरोना महामारी के चलते ऐसा करना सम्भव नहीं है। आज मेरी 42 साल की शासकीय सेवा का आख़िरी दिन है। इतने वर्षों तक मैंने कैसे कार्य किया ये मेरे सहयोगी और वरिष्ठ अधिकारी जानते हैं। मेरे ये 42 वर्ष कार्यस्थल पर कैसे थे ये तो वो ही तय करेंगे। लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ कि शासकीय सेवा के दौरान उन्होंने जो सहयोग बनाये रखा वो अविस्मरणीय रहेगा, इसके लिए उनका हृदय से आभार। ट्रांसफर की वजह से पूरे परिवार के साथ रहना कम हो पाया लेकिन मेरी पत्नि हमेशा एक मज़बूत साथी के तौर पर हर जगह साथ मौजूद रही। मैं तो ऑफिस चला जाया करता था लेकिन वो घर को घर बनाये रखने की ज़िम्मेदारी में डटी रहतीं थीं। अब आप जानते ही होंगे कि किराये के मकानों को घर बनाना कितना कठिन काम होता है। लेकिन इस काम को उन्होंने बख़ूबी किया। तो आज मेरी शासकीय सेवा के 42 वर्ष सफलतापूर्वक पूरे होने में उनका अभूतपूर्व योगदान है। इसके लिए मैं अपनी पत्नि को भी धन्यवाद देता हूँ। आप लगातार जिन लोगों के साथ काम कर रहे होते हैं वो भी आपका परिवार बन जाते हैं। और परिवार में कभी-कभार अनबन भी हो जाती है। लेकिन मैं इस मामले में ख़ुशक़िस्मत रहा। जहाँ-जहाँ जिनके साथ भी करने का मौक़ा मिला वहाँ आपसी सामंजस्य भी बना रहा। और यकीन मानिए परिवार से बिछड़ना किसी के लिए सरल नहीं होता। आपमें से अधिकतर लोग ये बात जानते हैं कि मैं स्पष्टवादी हूँ। इसलिए कभी मेरी कोई बात आपको चुभ गई हो तो उसे हृदय से लगाकर न रखें। क्योंकि मैंने कभी भी व्यक्तिगत तौर पर किसी की कोई आलोचना नहीं की। मेरी आलोचनाएँ सिर्फ़ कार्य से संबंधित ही रही हैं। रिटायरमेंट के बाद के सबके अपने-अपने प्लान्स होते हैं। मेरे भी हैं। बहुत बड़े नहीं हैं लेकिन मैं अब प्रकृति और परिवार के बीच रहना चाहता हूँ। वर्तमान समय कोरोना महामारी ने थोड़ा कठिन ज़रूर बना दिया है लेकिन ये भी समय है, गुज़र जाएगा। बस आप सभी हिम्मत बनाये रखिये और सतर्कता बरतते हुए, ख़ुदको सुरक्षित रखते हुए अपना काम करते रहिए। मेरी शुभकामनायें सदैव आपके साथ हैं। धन्यवाद… जय हिंद। 🙏🏼”
बताईं कुछ यादगार और ख़तरनाक घटनाएँ
अवैध शराब तस्कर का पीछा
सन 1980-81 को याद करते हुए सूर्या बताते हैं कि उस वक़्त वो जबलपुर में आबकारी विभाग में आरक्षक के पद पर थे। तब अपने विभाग के अन्य अधिकारियों और सिपाहियों के साथ एक तस्कर का पीछा कर रहे थे। वो एक जीप में बैठने की जगह न होने की वजह से पीछे लटके हुए थे। जब बीच में गाड़ियाँ धीरे हुईं तो वे विभाग की अन्य मेटाडोर पर सवार हो गए। थोड़ी आगे जाकर वो जीप एक मोड़ पर दुर्घटनाग्रस्त हो गई। जिसमें उनके साथी और अधिकारियों को काफ़ी गंभीर चोटें आई। तब एक पल के लिए उन्हें लगा कि ये नौकरी बेहद खतरनाक है। लेकिन फिर भी उन्होंने ये तय किया कि वो इसे जारी रखेंगे।
दबिश के दौरान दल पर हमला
जब 90 के दशक में आबकारी, पुलिस, एसएफ और होमगार्ड के जवान और अधिकारियों का एक दल जबलपुर के एक इलाके में अवैध शराब पकड़ने गया। तब अवैध शराब बनाने वालों ने बम, तलवार, सब्बल, लाठियों जैसे हथियारों से उनके दल पर हमला कर दिया था। जिसमें काफ़ी साथी घायल हुए थे।
सूर्या बताते हैं 90 के दशक में अवैध शराब बनाने वालों और तस्करी करने वालों से आये दिन आमना-सामना होता था। अवैध शराब बनाने वाले ज़मीन के अंदर, तालाब के अंदर एकदम फिल्मी तरीके से शराब छुपाने का काम करते थे। जिसे ढूँढना बहुत जोख़िम भरा होता था।
सूर्या की सेवानिवृत्ति पर उनके सहयोगियों ने जाहिर किया कि उन्होंने निष्ठापूर्वक और ईमानदारी से अपने 42 वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। उनकी सेवानिवृत्ति के अवसर पर परशुराम मिश्रा, मधु श्रीवास्तव, सुधीर साहू, राजेश राय, हीरा सिंह चौहान, रामप्रकाश उपस्थित थे।