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EXCLUSIVE | डिंडौरी के एडवोकेट सम्यक जैन सहित प्रदेश के तीन युवाओं की पिटीशन पर मप्र के जंगलों में लगी आग के मामले में हाईकोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार से मांगा जवाब

एडवोकेट सम्यक, जबलपुर के लॉ स्टूडेंट मनन अग्रवाल और एडवोकेट धीरज तिवारी ने 06 अप्रैल को मप्र हाईकोर्ट में लगाई थी याचिका

मुख्य न्यायाधीश मो. रफीक और न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन की खंडपीठ ने नोटिस जारी कर जवाब देने के लिए दिया 04 हफ्ते का समय


डिंडौरी | डिंडौरी के एडवोकेट सम्यक जैन, जबलपुर के लॉ स्टूडेंट मनन अग्रवाल और एडवोकेट धीरज तिवारी की रिट पिटीशन पर जिले सहित मप्र के जंगलों में लगी आग पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार से जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश मो. रफीक और न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन की खंडपीठ ने सरकार को नोटिस जारी करते हुए स्पष्टीकरण के लिए 04 हफ्ते का समय दिया है। कोर्ट ने तीनों युवाओं की याचिका पर संज्ञान लेते हुए केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव, मध्यप्रदेश सरकार के मुख्य सचिव, मप्र वन विभाग के प्रधान सचिव और वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक को नोटिस भेजा है। पत्र के अनुसार मार्च महीने के अंत से ही डिंडौरी जिले के बजाग, शहपुरा, शाहपुर व अमरपुर ब्लॉक सहित बांधवगढ़ नेशनल पार्क, अनूपपुर, शहडोल, अमरकंटक आदि के वन क्षेत्र काे आग की लपटों ने नष्ट कर दिया था। इससे वनसंपदा को बहुत हानि हुई और पर्यावरण के लिए उपयोगी जीवों का विनाश हो गया था। युवा याचिकाकर्ताओं ने पत्र में उल्लेख किया था कि इस भीषण आग की वजह सरकार से पूछकर मामले की सख्त जांच कराई जाए। हाईकोर्ट ने युवाओं की मंशा को समझा और याचिका स्वीकृत कर केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस भेजा। कोर्ट ने अंशुमन सिंह को एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) भी नियुक्त कर दिया है। युवाओं ने हाईकोर्ट से निवेदन किया था कि भयावह अग्निकांड की स्वतंत्र न्यायिक जांच कराई जाए।

क्या थे जनहित याचिका के प्रमुख अभिकथन
याचिका में सम्यक, मनन और धीरज ने कहा था, “मौसम विज्ञान विभाग की लगातार चेतावनी और संबंधित वन अधिकारियों को उपग्रहों से उपलब्ध जानकारी के बावजूद सरकार ने समयबद्ध तरीके से कोई ऐहतियाती कदम नहीं उठाए। जंगल और पेड़ भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 का अनिवार्य हिस्सा हैं। बिना सोचे-समझे पेड़ों की कटाई या आगजनी प्रकृति के लिए विनाशकारी है। यह कृत्य पीढ़ी की समानता के खिलाफ है और न केवल मनुष्यों बल्कि अनंत वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के अस्तित्व के लिए हानिहारक भी है।” युवाओं ने जंगलों का महत्व बताने के लिए विभिन्न धार्मिक ग्रंथों का हवाला भी दिया था।
जांच के लिए विशेष समिति गठित करने की मांग
एडवोकेट सम्यक, मनन और धीरज ने मामले की निष्पक्ष और त्वरित जांच के लिए विशेष समिति गठित करने की मांग की थी, जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। उनका पक्ष था कि अगर इतने गंभीर प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच नहीं हुई तो भविष्य में जंगलों की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं ली जा सकेगी। साथ ही वनसंपदा सहित मनुष्य और बेशुमार जीव-जंतुओं का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक ने पिटीशन पर विचार करते हुए 13 मई को इसे जनहित याचिका के रूप में पंजीकृत करने का आदेश दिया था। फिर 17 मई को कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर 04 हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।

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