उत्तर पश्चिमी दिल्ली के शाहबाद डेरी इलाके में हुई 16 वर्षीय लड़की कि निर्मम हत्या का विडिओ सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है। आरोपी की गिरफ़्तारी भी हो चुकी है। विडिओ में देखा जा सकता है कि हत्यारा लड़की पर पहले चाकू से दर्जनों वार करता है और उसके बाद जब लड़की मरणासन्न स्थिति में पहुँच जाती है तो उसे लात मारता है। फिर पत्थर उठाकर उस पर पटकता है। इतनी निर्ममता की वजह से उस लड़की की मौके पर ही मौत हो जाती है। वहाँ सिर्फ उसकी मृत्यु नहीं हुई। उससे एक-दो फ़िट की दूरी पर मानवीय संवेदनाएँ भी दम तोड़ रहीं थीं। क्यूंकि उस चहल-पहल भरी गली में उन तमाम आते-जाते लोगों पर वो एक लड़का भारी था, जो उसकी हत्या कर रहा था। इस घटना के बाद राजनीतिक दल और संगठन इस मामले में धार्मिक रोटी सेंकने में लगे हुए हैं। लेकिन किसी ने ये नहीं कहा कि वो लोग जो वहाँ मौजूद थे उनकी रीढ़ की हड्डी में इतना दम नहीं था कि उस लड़के पर टूट पड़ते? लोग एक चाकू से इतने खौफ़ज़दा थे कि वो उससे लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाए? जो संगठन इस मामले को धार्मिक रंग देने में व्यस्त हैं उन्हें उस क्षेत्र में जाकर पहले लोगों का ज़मीर जगाना चाहिए। उन्हें ये बताना चाहिए कि अगर पड़ोस के घर में आग लगी है तो उस आग को बुझाना चाहिए, न कि खड़े होकर तमाशा देखना चाहिए। अपराधियों के हौसले इसलिए बुलंद हैं क्यूंकि उन्हें पता है कि यहाँ तमाशा देखने वालों की तादाद ज़्यादा है। अगर आप खुद तमाशबीन हैं तो आप मदद की उम्मीद किससे करेंगे? किसी और के साथ होने वाली घटना में आप मूक दर्शक बने खड़े हैं तो आप अपनी बारी में मदद की उम्मीद किससे करेंगे? किसी शायर का शे’र है जो शायद
आदमी से आदमीयत दूसर कोसों हो गई है,
हो सके तो इसकी हिफ़ाज़त कीजिए साब जी