पिछले सप्ताह बुधवार को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के जस्टिस गुरपाल सिंह अहलुवालिया ने एक फैसला सुनाया जिसमें कहा गया कि, पत्नी के साथ बनाया गया शारीरिक सम्बन्ध धारा 377 के अंतर्गत अप्राकृतिक संबंध का अपराध नहीं है। यह फैसला दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अंतर्गत एक आपराधिक याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया जिसमें एक व्यक्ति पर उसकी पत्नी द्वारा आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत ज़ीरो एफ.आई.आर. पर मामला दर्ज करवाया गया था।
माननीय न्यायाधीश अहलुवालिया ने अपने फैसले में कहा कि समान लिंग के वयस्कों के बीच सहमति से किया गया यौन आचरण आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध की कोटि में नहीं आता।
अपने फैसले में यह भी स्पष्ट करते हुए कहा इन मामलों में पति-पत्नि के मध्य शारीरिक संबंध बनाने के लिए आपसी सहमति महत्त्वहीन है। जिस कारण से यह भारतीय दंड विधि की धारा 377 के अंतर्गत नहीं आता।
उन्होंने अपने फैसले में नवतेज सिंह जौहर विरुद्ध भारत संघ (union of India) का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि दोनों पक्षों की सहमति से एक ही लिंग या अलग लिंग के दो व्यक्तियों के बीच अप्राकृतिक यौन संबंध होता है, तो यह आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध नहीं होगा।
न्यायालय के फैसले के मुख्य बिंदु:
- धारा 375 में यह निष्कर्ष पहले ही दिया जा चुका है कि यदि कोई पत्नि पति विधिवत विवाह में संग रह रहे हैं तो फिर इस दौरान अपनी पत्नि के साथ स्थापित किया गया शारीरिक संबंध (जहाँ पत्नि की आयु पंद्रह वर्ष से कम न हो) बलात्संग की परिभाषा में नहीं आता।
- माननीय न्यायाधीश ने उमंग सिंघर बनाम मध्य प्रदेश शासन के निर्णय का उल्लेख करते हुए यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान प्रकरण में की गई एफआईआर 377 आईपीसी के अंतर्गत अपराध स्थापित नहीं करती। क्यूंकि पूर्व में किये हुए एफआईआर में कोई भी अप्राकृतिक संबंध के आरोप का उल्लेख नहीं किया गया था किन्तु इसके बाद की गई एफआईआर में इसे उल्लेखित किया गया, जो कि न्यायालय के विचार में आरोपों को गलत साबित करता है।
- उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही प्रथम दृष्ट्या सारे आरोप पति के खिलाफ़ हैं भी, तो भी इस मामले में किया हुआ अपराध आईपीसी 377 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
हालांकि इन मामलों से जुड़ा एक बड़ा प्रकरण माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है जिसमें यह पूछा गया है कि क्या मेरिटल रेप का अपवाद एक विवाहित महिला को अविवाहित महिलाओं के समान कानूनी उपायों से वंचित करके उसके समानता के अधिकार का क्या उल्लंघन करता है? (ऋषिकेष साहू बनाम कर्नाटक राज्य)
विदित हो कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग करने वाली याचिकाओं की एक श्रृंखला वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है। इसी दौरान गुजरात उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में हाल ही में कहा कि बलात्कार तो बलात्कार ही है, चाहे वह किसी व्यक्ति ‘पति’ द्वारा अपनी पत्नि के खिलाफ ही किया गया हो।
उपरोक्त निर्णय के बिंदुओं को सारांश में समझने के लिए देखिए अधिवक्ता शगुफ्ता रहमान का ये वीडियो
अस्वीकरण – यह समाचार मध्य प्रदेश के माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय को सटीक ढंग से समझाने का एक प्रयास है। इसका उद्देश्य पाठकों तक कानून संबंधी समाचारों को स्पष्ट रूप से पहुँचाना है। निर्णय को और बेहतर रूप से समझने के लिए विशेषज्ञ की सलाह लें। प्राथमिक मीडिया में प्रकाशित कानूनी समाचारों को कानूनी सलाह के रूप में न लें।