संस्कारधानी में बदमाशों के हौसले किस कदर बुलंद हैं उसका जलता हुआ उदाहरण परसों एक सितंबर की रात के लगभग डेढ़ बजे सदर के आर सी ग्राउन्ड में देखने को मिला। जहाँ असामाजिक तत्वों ने लॉ एंड ऑर्डर का मज़ाक उड़ाते हुए कैंट थानांतर्गत पेन्टीनाका के समीप अधिवक्ता की कार को आग के हवाले कर दिया। क्या ये घटना अचानक हुई है? या इसका कारण 28 जुलाई 2023 की तारीख में छुपा है?
अगर आपकी याददाश्त प्रचार और ध्यान भटकाने वाले मुद्दों से प्रभावित नहीं है तो जुलाई महीने में कैंट थानांतर्गत वाजपेयी कम्पाउन्ड में सफाई कर्मियों द्वारा आवारा श्वानों को ज़हर देकर मारने की घटना याद होगी। जिसके बाद नेत्रा नामक एक युवती ने उस कृत्य पर आपत्ति लेते हुए ज़हर देने वाले व्यक्तियों पर कैंट थाना में एफ़ आई आर दर्ज करवाने की कोशिश की। जिसमें वो राकेश नाम के एक कर्मचारी की कथित धमकी का भी ज़िक्र करती है। ये कथित धमकी राकेश ने उसकी आपत्ति पर प्रतिक्रिया देते हुए कुछ ऐसे दी – “जहाँ चाहे रिपोर्ट कर दो मेरा कुछ नहीं होगा।“ कैंट थाना पुलिस ने इस मामले में वास्तविक कार्यप्रणाली से हटकर पहले अन्वेषण करने और उसके बाद रिपोर्ट दर्ज करने की बात कहते हुए एफआईआर दर्ज करने में काफी टालमटोली की।
एक महीने पहले तोड़ा गया कार का कांच: युवती नेत्रा और उनके भाई वरुण जो कि पेशे से अधिवक्ता भी हैं, श्वानों की ज़हरखुरानी वाले मामले को लेकर बेहद गंभीर रहे जिसके चलते वो थाने के चक्कर लगाते रहे। इस बीच तीस जुलाई को दोपहर साढ़े बारह बजे कैलाश उर्फ राकेश काछी ने नेत्रा को जान से मारने की कथित धमकी भी दी। इसके बाद उसी रात सवा सात बजे सदर के आर सी ग्राउन्ड में एक ओर खड़े होने वाले चौपहिया वाहनों के बीच उनकी कार की खिड़की के शीशे को निशाना बनाया गया। जिसकी एफ आई आर नेत्रा के भाई यानि अधिवक्ता वरुण द्वारा रात दस बजे के लगभग कैंट थाना में दर्ज करवायी जाती है। अगले दिन 31 जुलाई 2023 को पुलिस अधीक्षक जबलपुर को सी आर पी सी 154(3) के तहत एक ज्ञापन में उपरोक्त घटनाओं का हवाला देकर नेत्रा द्वारा परिवार की सुरक्षा और आरोपियों पर कार्यवाही की मांग की जाती है।
पुलिस की निष्क्रियता के चलते पहुँचे न्यायालय: लगभग तीन दिन तक भी पुलिस द्वारा परिवार को किसी तरह की सुरक्षा तो दूर उसका आश्वासन भी नहीं दिया जाता। न ही कोई ठोस कार्यवाही होती हुई दिखाई देती है। इसके बाद चार अगस्त 2023 को सी आर पी सी 156(3) के तहत पीड़ित पक्ष प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष उपरोक्त मामलों में पुलिस की कार्यवाही को चुनौती देते हुए कहता है कि पुलिस किस आधार पर बिना एफ आई आर दर्ज किये कार्यवाही कर रही है? जिसके बाद मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस से स्टेट्स रिपोर्ट पेश करने को कहा जाता है।
क्या खुले में शराब पिलाने और अतिक्रमण की शिकायत से खफा हैं आरोपी? – चार अगस्त 2023 को पीड़ितगण अनुविभागीय अधिकारी राँझी के समक्ष सी आर पी सी 133 के तहत एक आवेदन देते हैं और नादां जोसफ़, कैलाश उर्फ राकेश काछी और अशोक स्वामी पर सदर के आर सी ग्राउन्ड में पार्किंग के समीप अतिक्रमण कर खुले में शराब पिलाने वाले अवैध कार्य पर कार्यवाही की मांग करते हैं। ये वही जगह है जहाँ पीड़ितों की कार का कांच तोड़ा गया था। आवेदन पर कार्यवाही करते हुए एसडीएम राँझी द्वारा तीनों को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाता है। इसके बाद दस अगस्त को कैंट प्रेसीडेंट और सीईओ को अतिक्रमण पर कार्यवाही के संबंध में हिदायत दी जाती है। एक सितंबर को नेत्रा के भाई वरुण द्वारा अतिक्रमण के संबंध में दिए गए आवेदन पर कार्यवाही के संदर्भ में जानकारी लेने पर पता चलता है कि अतिक्रमण हटाने के लिए उनके दल को सुरक्षा मुहैया कराने के उद्देश्य से आगामी पाँच सितंबर के दिन कैंट बोर्ड द्वारा पुलिस बल की मांग की गई है। इसी एक सितंबर को रात डेढ़ बजे वरुण की कार को रात के लगभग डेढ़ बजे बदमाशों द्वारा जला दिया जाता है। जिसे दमकल विभाग की गाड़ी मौके पर पहुंचकर बुझाती है।
कैंट पुलिस का सिस्टम – इस आगजनी की एफआईआर करवाने वरुण अपनी बहिन नेत्रा के साथ उसी रात सवा दो बजे के लगभग कैंट थाना जाते हैं तो लगभग रात साढ़े तीन बजे तक एफआईआर लिखने में टालमटोली की जाती है। जिसका कारण वहाँ मौजूद पुलिसकर्मी द्वारा ये दिया जाता है कि इंचार्ज अधिकारी पेट्रोलिंग में व्यस्त हैं। काबिल अधिकारी मौजूद नहीं होने की वजह से पीड़ितों को थाने में होते हुए भी शिकायत ऑनलाइन दर्ज करनी पड़ती है। जबकि इसके पूर्व कैंट पुलिस ने एफआईआर पहले रजिस्टर करने और फिर जांच करने का सिस्टम फॉलो नहीं किया था।
लगायी हाई कोर्ट में याचिका – घटना की भयानकता के मद्देनजर अधिवक्ता वरुण द्वारा दो सितंबर जबलपुर स्थित माननीय उच्च न्यायालय में नेत्रा की ओर से एक रिट पिटीशन लगायी जाती है जिस पर उच्च न्यायालय द्वारा तुरंत संज्ञान लेते हुए उक्त पूरे मामले में की गई कार्यवाही की पूरी जानकारी पुलिस को कल यानि चार नवंबर तक पेश करने के लिए कहा गया है।
घटना छोड़ गई कई सवाल – ऑफिसर ऑफ कोर्ट कहे जाने वाले अधिवक्ताओं के साथ हुई ये पूरी घटना पुलिस की कार्यप्रणाली से लेकर क्षेत्र के जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों पर सवालिया निशान लगाती है। सदर के आर सी ग्राउन्ड में बाकी गाड़ियों को छोड़कर सिर्फ इन्हीं अधिवक्ता या इनके परिवार के वाहनों को ही निशाना क्यूँ बनाया जा रहा है? क्या आरोपीगण और अतिक्रमणकर्ता खुद पर होने वाली कार्यवाही के डर से बौखलाए हुए हैं? क्या कार को क्षति पहुँचाने वाले तत्त्वों को किसी रसूखदार व्यक्ति का संरक्षण प्राप्त है? कांच तोड़ने से लेकर आगजनी तक पहुँचे अपराधियों के हौसले और कितने बढ़ेंगे? पुलिस आखिर किस घटना के इंतज़ार में ठोस कार्यवाही करने से बचती रही?
और ये उदासीन सिस्टम! – इतनी बड़ी घटना होने के बावजूद क्षेत्र के विधायक अशोक रोहाणी या उनके कार्यालय के कर्मचारी अथवा भाजपा कार्यकर्ताओं को अपनी विधानसभा के इन पीड़ित अधिवक्ताओं की सुध लेने का ध्यान भी नहीं है। पुलिस के अंदर भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा महेंद्र चावला बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के संदर्भ में दिए गए विटनेस प्रोटेक्शन स्कीम 2018 को लागू करने का जज़्बा नदारद दिखाई देता है। साथ ही केंद्र सरकार का भी एड्वोकेट प्रोटेक्शन ऐक्ट के बिल को लेकर काफी ढुलमुल रवैया भी देखने को मिल रहा है। न्यायिक प्रशासन में अहम भूमिका निभाने वाले अधिवक्ताओं के साथ जब इस तरह की गंभीर घटनाएँ हो रही है, तब ऐसे में आम नागरिक की सुरक्षा और सुनवाई की स्थिति का अंदाज़ा आप लगा सकते हैं।