लगभग चार दिन पहले शाम को मेरे स्वर्गीय मामा जी के बेटे रोहित का फ़ोन मेरे पास आता है, वो पूछता है “भैया, जबलपुर में बेड मिल जाएगा?” (कोरोना महामारी के दौरान इस सवाल का मतलब होता है कि क्या अस्पताल में वेंटीलेटर मिल पायेगा?”), मैंने कहा – पता करना पड़ेगा, क्यूंकि कल ही रोशन (मेरा मित्र जो पेशे से फ़िज़िओ है) ने मुझे बताया कि जबलपुर में एक भी बेड खाली नहीं था. फिर मैंने उससे पूछा – क्या हुआ? तो उसने बताया कि उसकी दोस्त रिया(परिवर्तित नाम) की 55 वर्षीय माता जी सिवनी के अस्पताल में भर्ती थीं, जहाँ ऑक्सीजन सिलेण्डर न होने की वजह उनसे कहा जा रहा है कि आप इन्हें कहीं और लेकर जाईये क्यूंकि इन्हीं कोरोना है और इन्हें ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ सकती है. उनकी बॉडी में ऑक्सीजन लेवल उस समय 85 के लगभग है.” ये कथन मेरी चिंता बढ़ाने के लिए काफ़ी था. बस यहाँ से कवायद शुरू हुई कि उन्हें ऑक्सीजन सिलेण्डर के साथ-साथ एक वेंटीलेटर उपलब्ध करवाने की. जिसमें मैं, मेरा भाई रोहित, मेरा मित्र रोशन लग जाते हैं. थोड़ी देर में तय होता है कि सिवनी से जबलपुर नज़दीक है, उन्हें यहाँ एम्बुलेंस के ज़रिये लाया जा सकता है. लेकिन वेंटीलेटर की उपलब्धता अब भी एक समस्या है. रोशन इस वक़्त शहडोल में है वो जबलपुर में एक एम्बुलेंस चालक से बात करके उसका नम्बर उपलब्ध करवाता है और उसे निर्देश देता है कि वो अपने वाहन में ऑक्सीजन सिलेण्डर लेकर सिवनी की तरफ चलना शुरू करे और रिया अपनी माता जी को सिवनी से लेकर निकले. धूमा पहुँचकर रिया के माँ को जबलपुर से भेजी गयी एम्बुलेंस में शिफ्ट करके उन्हें ऑक्सीजन लगा दी जायेगी और मेरे दोस्त की माँ जो नर्स हैं उनकी सलाह पर वो जबलपुर में आदर्श नगर स्थित एक अस्पताल में भर्ती करवाई जायेंगी(वहाँ अभी एक बेड खाली है लेकिन वेंटीलेटर की समस्या यहाँ भी है). इस सबके बीच में लगभग 28 वर्षीय रिया अपनी माँ के साथ अकेली है. उसने काफ़ी हिम्मत बाँधी हुई है और जब तक ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही थी उसने रोशन के निर्देश पर अपनी माँ को गहरी-गहरी साँस भरने के लिए कहा. ताकि फेफड़ों में प्राणवायु पहुँच सके और स्थिति संभाली जा सके. रात को लगभग 11:30 पर रिया जबलपुर पहुँचती है और अपनी माँ को जबलपुर स्थित उस अस्पताल में भर्ती करती है. जहाँ उनका चेक अप, सीटी स्कैन वगैरह और बाक़ी चीज़ें होती हैं. अस्पताल प्रबंधन उसके पास सीजीएचएस कार्ड होने के बावजूद अस्पताल की मुख्य शाखा में पचास हज़ार रुपये जमा करवाने के लिए कहता है. मुझे लगता है कि शायद अब सब कुछ ठीक हो जाएगा. लेकिन रात अभी शुरू ही हुई थी. लगभग एक-डेढ़ घंटे बाद सीटी स्कैन की रिपोर्ट आती है और रिया का फ़ोन मेरे पास आता है कि अस्पताल वाले कह रहे हैं कि उसकी माँ के लिए अन्य अस्पताल ढूँढा जाए. वो वहाँ के डॉक्टर से मेरी बात फोन पर करवाती है. डॉक्टर के मुताबिक़ यदि मरीज़ के फेफड़े काफ़ी संक्रमित हो चुके हैं. और यदि उनको एक घंटे बाद वायेऍफ़ऍफ़ की आवश्यकता पड़ती है और वो खाली नहीं मिलता है तो शायद तब तक देर हो जायेगी. देर होने का मतलब किसी अनहोनी से है. इसलिए वो कहता है कि मैं आपको इसलिए अभी से बता रहा हूँ ताकि आप समय से पहले व्यवस्था कर लें. मैं रिया को आश्वासन देता हूँ कि हम लोग कुछ करते हैं. मैं रोशन से बात करता हूँ कि हम फिर शून्य पर आकर खड़े हो गए हैं. वो शासन द्वारा जारी वेबसाइट में बेड्स की स्थिति देखता है लेकिन इस आँकड़े पर भरोसा करना मुश्किल है. क्यूंकि जिन अस्पतालों में बेड्स ख़ाली दिखा रहा है वहाँ बेड्स नहीं हैं. इस बात की तस्दीक थोड़ी देर बाद हो जाती है. जब मैं ख़ुद उसमें मौजूद रज़ा फेसिलिटी पर कॉल करता हूँ और वो बताते हैं कि उनका अस्पताल तो अभी शुरू भी नहीं हुआ ही और उन्हें पता भी नहीं है कि उनका नम्बर किसी वेबसाइट पर डाला गया है. इसके अलावा सुख सागर मेडिकल के जो नम्बर डाले गए हैं उसमें एक नम्बर शाम से बंद है और दूसरा कोई उठा नहीं रहा है. ये अस्पताल शहर से लगभग 15-20 किलोमीटर दूर है. इस दौरान और अस्पतालों में मेरी बात होती है लेकिन कहीं पर भी बेड उपलब्ध नहीं हैं. रिया से मैं दुबारा बात करके उसे स्थिति के बारे में अवगत करवाता हूँ, उसकी आवाज़ काँप रही है. वो रोने लगती है. मैं उसे हिम्मत बाँधने को कहता है. मेरे एक मित्र की माता जी जो पेशे से नर्स हैं, उनकी सलाह पर मैं रिया को उसकी माँ को लेकर ट्रू केयर हॉस्पिटल जाने के लिए कहता हूँ, जहाँ ऑक्सीजन मौजूद है लेकिन वेंटीलेटर नहीं. रात के 3-3:30 बजे होंगे. रिया को अस्पताल प्रबंधन आश्वासन देता है कि वे उसकी माँ का बेहतर से बेहतर इलाज करेंगे. वहाँ मौजूद कुछ लोग बताते हैं कि 70 प्रतिशत फेफड़े डेमेज होने के बाद भी काफ़ी केसेज़ इस हॉस्पिटल में सम्भाले जा चुके हैं. हालाँकि वहाँ मौजूद डॉक्टर से जब रिया ने मेरी बात करवाई तब डॉक्टर ने सलाह दी कि इनके बचने के चांसेज 30 से 40 प्रतिशत हैं क्यूंकि फेफड़े काफ़ी ख़राब हालत में हैं. इसके बाद भी अगर आप चाहें तो हम इनकी देखभाल कर सकते हैं. रिया और मेरे पास कोई विकल्प मौजूद नहीं था. क्यूंकि कोई भी अस्पताल इनकी नाज़ुक स्थिति में केस लेने के लिए तैयार नहीं होता है. रिया की माँ को भर्ती कर दिया गया लेकिन उसके बाद भी मैं बेड की तलाश करता रहा. मैंने रात को 3:30-3:45 के बीच स्थानीय covid कण्ट्रोल रूम में कॉल किया. उन्होंने फ़ोन उठाया. उनके पास भी वही चार्ट था जो मैं देख रहा था. उनके मुताबिक बेड उपलब्ध हैं लेकिन मैंने उन्हें कहा कि ज़्यादातर जगह मैं कॉल कर चुका हूँ. आप भी अपनी कोशिश करके देख लें. उन्होंने कॉल करके देखा और उन्हें भी असफलता हाथ लगी. विक्टोरिया हॉस्पिटल में उन्होंने कॉल किया तो वहाँ जिसने फ़ोन उठाया उसने कहा कि ICU के बेड्स भरे हुए वेंटीलेटर खाली है. इसका मतलब ये है कि ICU में किसी को ज़रूरत होगी तो वो लगा दिया जाएगा लेकिन उसके लिए ICU में भर्ती होना पड़ेगा. काफ़ी देर मशक्कत करने के बाद कुछ भी हासिल नहीं हुआ. मेरी नींद उड़ी हुई थी, मैंने सुख सागर मेडिकल हॉस्पिटल जाने का मन बनाया, क्यूंकि वहाँ के सारे नम्बर जो इन्टरनेट पर मौजूद थे वो बंद हो चुके थे और अन्य नम्बर पर कोई जवाब नहीं दे रहा है. मैंने मेरी दोस्त की माँ जो नर्स हैं उन्हें कॉल किया और कहा कि मैं सुख सागर जाकर बेड का पता लगाता हूँ. उन्होंने कहा कि वो पहले ही पता कर चुकी हैं, कहीं भी बेड उपलब्ध नहीं हैं. और उनकी बात ट्रू केयर हॉस्पिटल में हुई है, रिया की माँ की हालत पहले से बेहतर है. ऑक्सीजन लगी हुई और वो स्टेबल हैं. उन्होंने कहा कि अगर आवश्यकता पड़ेगी तो बेड के लिए सुबह फिर से ख़ोजबीन शुरू की जायेगी और शायद दोपहर तक बेड मिल भी जाए. उसने बात करके मुझे थोड़ी राहत मिली. मैं सुबह 4 बजे के लगभग सो गया. मेरी नींद सुबह 9 बजे खुली. रिया के 6 मिस्ड कॉल थे. उससे बात की तो उसने बताया कि डॉक्टर अभी तक राउंड पर नहीं आये हैं लेकिन अभी उनकी हालत ठीक है. क्या उन्हें अभी भी दूसरे हॉस्पिटल ले जाना चाहिए. मुझसे बात करने के दौरान ही डॉक्टर वहाँ पर आये और उन्होंने उनकी हालत देखकर बताया कि वो अब खतरे से बाहर हैं. दोपहर होते-होते उन्हें दूसरे वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया. यानि अब उनके हालत ख़तरे से बाहर है. अस्पताल में ही उन्हें रेम्डेसिविर इंजेक्शन भी उपलब्ध करवा दिया गया. जो कल तक ख़त्म हो चुका था. इस पूरी भागदौड़ में कल रिया भूखी रह गयी थी. आज उसने खाना खाया तो उसे एसिडिटी हो गयी. जिसकी दवाई वो ले रही थी. मैंने उसे अपनी माँ को प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट करने के लिए कहा जहाँ वो भी आराम कर सके. चूँकि वो पूरे समय अपनी माँ के साथ रही इसलिए सतर्कता के तौर पर उसे हमने कुछ दवाईयाँ उपलब्ध करवाईं जो उसे covid से लड़ने में साथ देंगी.
इस घटना के बारे में सोचता हूँ तो लगता है कि अगर रिया पढ़ी-लिखी न होती, मैं,रोशन और रोहित फोन पर उसे कोआर्डिनेट नहीं कर रहे होते. मेरे दोस्त की माता जी जो नर्स हैं अगर वो सम्पर्क में नहीं होतीं तो रिया की हिम्मत टूट जाती. शाम को जब उसे सिवनी के हॉस्पिटल ने ऑक्सीजन न होने की बात कही, तबसे लेकर सुबह तक का उसका वक़्त कितना कठिन रहा होगा. ये covid के केस से जुड़ा मेरा पहला अनुभव था. रिया जैसी परिस्थिति से न जाने कितने लोग गुज़रते होंगे. जहाँ कभी कोई सही राह दिखाने के लिए मौजूद होता होगा और कभी नहीं भी होता होगा. ऐसे मैं मरीज़ और उनके परिजनों पर क्या गुज़रती होगी. इस घटना के बाद रोशन ने मुझे कॉल किया. उसने बताया कि covid में उसका एक जूनियर जो जबलपुर में फ़िज़िओथेरेपी सेण्टर चलाता है वो वेंटीलेटर न मिलने की वजह से गुज़र गया. एक और अन्य मित्र के पिताजी भी गुज़र गए. उसने मुझसे पूछा कि दिल्ली में जो स्वास्थ्य सुविधायें वो यहाँ क्यूँ नहीं हैं? वहाँ और रायपुर में जैसे इनडोर स्टेडियम्स को अस्थायी रूप से अस्पताल में बदला गया है वैसा यहाँ क्यूँ नहीं होता? कहाँ हैं यहाँ के जनप्रतिनिधि? विधायक? सांसद? क्या कर रहे हैं ये मध्य प्रदेश की जनता के लिए? पुलिसकर्मी, स्वास्थ्यकर्मी कोरोना की चपेट में आकर काल के ग्रास में समा रहे हैं और ये? ये क्या कर रहे हैं? उसने ये कहकर मुझे ये सवाल पूछने के लिए प्रेरित किया कि हम अपने परिवार के साथ स्थिति ख़राब होने का इंतज़ार क्यूँ करें? क्या हम अपने शहर की स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर करने के लिए प्रयास नहीं कर सकते? क्या हम ज़िम्मेदारों से जवाब नहीं माँग सकते? इसलिए आप उन्हें कॉल ज़रूर करें. कॉल पर जवाब न मिले तो मेसेज करें, नम्बर बंद मिले तो वर्तमान नम्बर ढूँढें लेकिन आप उनसे सवाल जरुर पूछें.
(प्रस्तुत आलेख सम्पादक के साथ हुई सत्य घटना का विवरण है)