अन्याय के आगे झुकना मत
जितनी हो तपन पर थकना मत
कोई लाख बिछाए कांटे पर
किसी हाल में भी तू रुकना मत
जिसने तेरे पर काटे हैं
उसकी तो तू अब सुनना मत
जो सपना नहीं छलावा है
उस सपने को तू बुनना मत
जो जाल बिछाए बैठे है
उस जाल में तू अब फसना मत
जो दलदल लेकर बैठे हैं
उस दलदल में तू धसना मत
कोई लाख डराये तुझको पर
किसी हाल में भी तू डरना मत
और मौत तो एक दिन आनी है
पर मौत से पहले मरना मत
अन्याय के आगे झुकना मत
जितनी हो तपन पर थकना मत
कोई लाख बिछाए कांटे पर
किसी हाल में भी तू रुकना मत