मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की मुख्य पीठ जबलपुर में आज जस्टिस विवेक अग्रवाल ने कई अधिवक्ताओं को कंप्यूटर के माध्यम से बहस करने की हिदायत दी। ऐसा न करने पर उन्होंने अगली बार से उन अधिवक्ताओं के केस न सुनने की चेतावनी दी जो कंप्यूटर के ज़रिए अपने केस की बहस नहीं करेंगे। प्रतिदिन की तरह आज भी जस्टिस अग्रवाल अपने समक्ष प्रस्तुत किये जाने वाले प्रकरणों को सुन रहे थे, इस बीच कई बार ऐसे मौके आए जब उनके द्वारा एनेक्सर(संलग्न दस्तावेज़ या परिशिष्ट) पूछे जाने पर अधिवक्ता या तो गलत जवाब दे रहे थे या फिर अधिक समय ले रहे थे। इसी दौरान उन्होंने कई अधिवक्ताओं को कंप्यूटर के ज़रिए बहस करने के लिए कहा।
सूचना प्रौद्योगिकी ने दिन ब दिन के कार्यों को सरल बना दिया है। दस्तावेज़ से लेकर लेन-देन डिजिटली होने लगे हैं। वहीं बिल जमा करने से लेकर बैंकिंग व्यवस्था और न्यायालयों की सुनवाई तक कंप्यूटराइज्ड हो चुकी है। देश की जनता को इसका सबसे ज्यादा लाभ कोविड लॉकडाउन के दौरान मिला। न्यायालयीन प्रक्रिया में तेज़ी लाने में यह डिजिटलीकरण उपयोगी साबित हो रहा है। न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं द्वारा भी इस तकनीक को उपयोग में लाया जा रहा है। लेकिन अभी भी ऐसे अधिवक्ताओं की तादाद काफी है जो कंप्यूटर के ज़रिए बहस नहीं करते हैं।
सीआईएस है ई कोर्ट सेवा का आधार – केस इंफॉर्मेशन सॉफ्टवेयर (सीआईएस) ई कोर्ट सेवाओं का आधार है। यह फ्री एंड ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर (एफओएसएस) पर आधारित है, जिसे एनआईसी ने विकसित किया है। इसके द्वारा प्रत्येक मुक़दमे को एक विशिष्ट पहचान कोड प्रदान किया जाता है, जिसे सीएनआर नंबर और क्यूआर कोड कहते हैं। इससे राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) का विकास हुआ है, जो न्यायिक डेटा को भेजने-प्राप्त करने के लिए एक नई संचार पद्धति है।
कोविड में वीसी से सुने गए थे लगभग 50 लाख मामले – विदित हो कि केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के न्याय विभाग ने वर्ष 2020 में ई-कोर्ट, वर्चुअल लोक अदालत के कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए तंत्र भी उपलब्ध कराया। कोविड लॉकडाउन से लेकर 28.10.2020 तक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये देश भर की जिला अदालतों ने 35,93,831 मामलों और उच्च न्यायालयों ने 13,74,048 मामलों (कुल 49.67 लाख) की सुनवाई की।