हाल ही में न्यूज़ लौंड्री की वायरल हुई एक रिपोर्ट ने देश के हर नागरिक को सोचने पर मजबूर कर दिया है। न्यूज़ लॉन्ड्री की इस वायरल न्यूज़ रिपोर्ट के मुताबिक सत्ता में आने के 2,528 दिनों में मोदी सरकार ने कुल 23 अरब 3 करोड़ 44 लाख 40 हजार 961 रुपए सिर्फ प्रिंट मीडिया को दिए गए विज्ञापन पर खर्च किया। यानि प्रतिदिन जनता के टैक्स का करीब 71 लाख रुपये सिर्फ़ अखबारों को विज्ञापन देने पर खर्च हो रहा है। रिपोर्ट पिछले 9 सालों में हुए विज्ञापन के खर्च की राशि का अनुपात भी बताया गया है। इसमें 50% से ज्यादा राशि (16 अरब 71 करोड़ 12 लाख 11 हजार 741 रुपए) करीब 30 मीडिया संस्थानों को मिली और बाकी दूसरे अखबारों को। हर साल सरकारी विज्ञापन पाने वाले अखबारों की संख्या कुछ इस प्रकार है, जैसे 2015-16 में 8315 और 2022-23 में 3123। हालांकि इस विज्ञापन वाली सरकार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली की आम आदमी पार्टी के संस्थापक और दिल्ली के मुख्यमंत्री पर जनता के पैसे से विज्ञापन के जरिए अपने इमेज चमकाने पर खरी-खोटी सुना चुके हैं। लेकिन न्यूज़ लौंड्री की ये रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद सरकार की ओर से किसी ने कोई सफाई नहीं दी है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। सरकारें जो भी खर्च करती हैं वो आम जनता की कमाई के हिस्से से ही जुड़ा होता है। कभी सरकारी कोष में जमा धन इस्तेमाल होता है तो कभी अंतर्राष्ट्रीय बैंक से उधार ली हुई राशि। जैसे जेएनएनयूआरएम के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक ने लोन दिया था। चाहे ये लोन हो या विज्ञापन पर खर्च की गई राशि। राजनीतिक दल अपनी जेब से ये खर्च नहीं करते हैं। इसलिए सामाजिक जागरूकता फैलानी वाली संस्थाएँ आपको सोच समझकर अपना जनप्रतिनिधि चुनने के लिए कहती हैं। जो आपके बीच शुरू से रहा हो। जिसे आपका वोट मांगने के लिए महंगे प्रचार करने की आवश्यकता न पड़ी हो। ताकि आप भविष्य में होने वाले संभावित नुक्सानों से खुद को बचा सकें।
जनता के पैसे से प्रचार पा रहा है कौन? विज्ञापन वाली सरकार खुलासे पर मौन!
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